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raipur latest news कुम्हार और बंसोड़ परिवार की हालत खराब, मुश्किल से निकलता है खर्च - कुम्हार और बंसोड़ परिवार की हालत खराब

raipur latest news छत्तीसगढ़ में मिट्टी और बांस से बनीं चीजों का खूब इस्तेमाल किया जाता है. शादी और समारोह में अक्सर मिट्टी और बांस से बनीं चीजों की बिक्री बढ़ जाती है. लेकिन सीजन खत्म होने के बाद इनके कारीगरों के सामने रोजी रोटी की समस्या पैदा हो जाती है.सरकारी मदद नहीं मिलने से कई बार इन्हें अपनी जेब से पैसा लगाकर लागत बचानी पड़ती है.

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Published : Nov 16, 2022, 3:30 PM IST

Updated : Nov 16, 2022, 7:24 PM IST

रायपुर : पूरे साल में कई ऐसे पर्व और त्योहार आते हैं. जिसमें मिट्टी से बनी चीजें और बांस की चीजों का उपयोग किया जाता है. मिट्टी से बनी हुई चीजों का निर्माण कुम्हार परिवार करते हैं. वहीं बांस की चीजों को लिए बंसोड़ समाज के लोग जाने जाते हैं. लेकिन मौजूदा समय में कुम्हार और बंसोड़ परिवार बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. पुश्तैनी धंधा होने के कारण ये अपने काम तो जारी रखे हुए हैं. लेकिन इस धंधे को आगे जारी रखने के लिए इन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है. जिसके कारण इनकी हालत खराब होती जा रही है. (Potter and Bansod family trouble in raipur )

मिट्टी की मूर्ति बनाकर जीवनयापन
मिट्टी की मूर्ति बनाकर जीवनयापन
कुम्हार और बंसोड़ परिवार की हालत खराब : कुम्हार परिवारों के द्वारा मिट्टी से बनाए गए कई तरह के खिलौने, बर्तन दीये, कलश और मिट्टी से बनाए गए गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं पर्व और त्योहार के समय खूब बिकते हैं. उसके बाद इन सामानों को खरीदने के लिए कोई ग्राहक नहीं मिलते. ठीक इसी तरह बंसोड़ परिवार के बांस और बांस से बनी हुई टोकनी सुपा और अन्य चीजें केवल शादी के सीजन या फिर किसी फंक्शन में उपयोग में लाया जाता है. उसके बाद बांस से बनी हुई, इन चीजों की बिक्री ना के बराबर रहती है.सिर्फ बांस से बनीं चीजों का इस्तेमाल मृत शरीर के क्रिया कर्म में लगता है.
बांस का सामान बनाती महिला
बांस का सामान बनाती महिला
बांस की कीमत बढ़ी लेकिन आमदनी नहीं : बांस के सामान बनाने वाली कस्तूरी बंसोड़ बताती है कि "कई पीढ़ियों से उनका परिवार बांस से कई तरह की सामग्री बनाकर उसे बेचने का काम करती है. इसी धंधे के भरोसे उनका परिवार चलता है. सरकारी मदद के नाम पर आज से 10 साल पहले शासकीय दर पर प्रति बांस 50 से 70 रुपए में मिलता था. लेकिन आज प्रति बॉस की कीमत 200 से 250 रुपए है. बांस की सामग्री बनाने में काफी मेहनत लगता है. लेकिन मेहनत के हिसाब से बंसोड़ परिवारों को आमदनी नहीं होती. लेकिन मजबूरन पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे, इस पुश्तैनी धंधे को आज भी कर रहे हैं. और जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं."

ये भी पढ़ें- राज्यपाल अनुसूईया उइके ने गौरव दिवस के लिए पीएम मोदी को दिया धन्यवाद



पुश्तैनी धंधा के कारण कर रहे काम : वहीं मिट्टी के सामान बनाने वाले कुम्हार परिवार गिरिवर चक्रधारी और मोहन चक्रधारी ने बताया कि "पुश्तैनी धंधा होने के कारण उन्हें आज भी मिट्टी से सामानों को बनाना पड़ रहा है. वर्तमान समय में मिट्टी के दाम बढ़ने के साथ ही अन्य दूसरे सामानों के दाम में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन मेहनत के हिसाब से इन्हें भी मजदूरी नहीं मिल पाती. कुम्हार परिवार भी बंसोड़ परिवार की तरह पुश्तैनी धंधा होने के कारण इसे जैसे तैसे संचालित कर रहा है. कुम्हार परिवारों को भी सरकार की तरफ से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिलती. कई बार इन परिवारों को कर्ज लेकर मिट्टी के सामान बनाकर बाजार में बेचना होता है. मिट्टी से बने इन्हीं सामानों को बेचकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने को मजबूर है."raipur latest news

रायपुर : पूरे साल में कई ऐसे पर्व और त्योहार आते हैं. जिसमें मिट्टी से बनी चीजें और बांस की चीजों का उपयोग किया जाता है. मिट्टी से बनी हुई चीजों का निर्माण कुम्हार परिवार करते हैं. वहीं बांस की चीजों को लिए बंसोड़ समाज के लोग जाने जाते हैं. लेकिन मौजूदा समय में कुम्हार और बंसोड़ परिवार बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. पुश्तैनी धंधा होने के कारण ये अपने काम तो जारी रखे हुए हैं. लेकिन इस धंधे को आगे जारी रखने के लिए इन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है. जिसके कारण इनकी हालत खराब होती जा रही है. (Potter and Bansod family trouble in raipur )

मिट्टी की मूर्ति बनाकर जीवनयापन
मिट्टी की मूर्ति बनाकर जीवनयापन
कुम्हार और बंसोड़ परिवार की हालत खराब : कुम्हार परिवारों के द्वारा मिट्टी से बनाए गए कई तरह के खिलौने, बर्तन दीये, कलश और मिट्टी से बनाए गए गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं पर्व और त्योहार के समय खूब बिकते हैं. उसके बाद इन सामानों को खरीदने के लिए कोई ग्राहक नहीं मिलते. ठीक इसी तरह बंसोड़ परिवार के बांस और बांस से बनी हुई टोकनी सुपा और अन्य चीजें केवल शादी के सीजन या फिर किसी फंक्शन में उपयोग में लाया जाता है. उसके बाद बांस से बनी हुई, इन चीजों की बिक्री ना के बराबर रहती है.सिर्फ बांस से बनीं चीजों का इस्तेमाल मृत शरीर के क्रिया कर्म में लगता है.
बांस का सामान बनाती महिला
बांस का सामान बनाती महिला
बांस की कीमत बढ़ी लेकिन आमदनी नहीं : बांस के सामान बनाने वाली कस्तूरी बंसोड़ बताती है कि "कई पीढ़ियों से उनका परिवार बांस से कई तरह की सामग्री बनाकर उसे बेचने का काम करती है. इसी धंधे के भरोसे उनका परिवार चलता है. सरकारी मदद के नाम पर आज से 10 साल पहले शासकीय दर पर प्रति बांस 50 से 70 रुपए में मिलता था. लेकिन आज प्रति बॉस की कीमत 200 से 250 रुपए है. बांस की सामग्री बनाने में काफी मेहनत लगता है. लेकिन मेहनत के हिसाब से बंसोड़ परिवारों को आमदनी नहीं होती. लेकिन मजबूरन पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे, इस पुश्तैनी धंधे को आज भी कर रहे हैं. और जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं."

ये भी पढ़ें- राज्यपाल अनुसूईया उइके ने गौरव दिवस के लिए पीएम मोदी को दिया धन्यवाद



पुश्तैनी धंधा के कारण कर रहे काम : वहीं मिट्टी के सामान बनाने वाले कुम्हार परिवार गिरिवर चक्रधारी और मोहन चक्रधारी ने बताया कि "पुश्तैनी धंधा होने के कारण उन्हें आज भी मिट्टी से सामानों को बनाना पड़ रहा है. वर्तमान समय में मिट्टी के दाम बढ़ने के साथ ही अन्य दूसरे सामानों के दाम में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन मेहनत के हिसाब से इन्हें भी मजदूरी नहीं मिल पाती. कुम्हार परिवार भी बंसोड़ परिवार की तरह पुश्तैनी धंधा होने के कारण इसे जैसे तैसे संचालित कर रहा है. कुम्हार परिवारों को भी सरकार की तरफ से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिलती. कई बार इन परिवारों को कर्ज लेकर मिट्टी के सामान बनाकर बाजार में बेचना होता है. मिट्टी से बने इन्हीं सामानों को बेचकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने को मजबूर है."raipur latest news

Last Updated : Nov 16, 2022, 7:24 PM IST
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