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छत्तीसगढ़: सुनवाई में तेजी के बावजूद POCSO कोर्ट में कई केस पेंडिंग

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Published : Mar 25, 2021, 11:06 PM IST

Updated : Mar 26, 2021, 10:18 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के खिलाफ हो रहे लैंगिक उत्पीड़न(Sexual harassment) केस की सुनवाई के लिए पॉक्सो कोर्ट शुरू करने का निर्देश दिया है. छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में पॉक्सो न्यायालय बनाया गया है. फिलहाल पॉक्सो कोर्ट, जिला सत्र न्यायालय में ही संचालित हो रहे हैं. सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति भी की गई है. छत्तीसगढ़ में कुल 51 कोर्ट में पॉक्सो एक्ट से जुड़े केस में सुनवाई हो रही है.

Crimes against minors , Pending cases in Raipur pocso Court
रायपुर पॉक्सो न्यायालय

रायपुर: समय के साथ-साथ बच्चों के साथ छेड़छाड़, बलात्कार, लैंगिक उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रहीं हैं. घटना होने के बाद मामला थाने पहुंचता है. फिर थाने से सुनवाई के लिए पॉक्सो कोर्ट ले जाया जाता है. बच्चों को कोर्ट ले जाना, गवाही लेना और गवाही के आधार पर आरोपियों को सजा दिलाना एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें पुलिस, वकील से लेकर न्यायाधीश सभी को एक अलग परिस्थिति से गुजरना होता है. उन्हें पीड़ित बच्चों से ना सिर्फ आरोपी से संबंधित जानकारी निकालना और सबूत जुटाना होता है बल्कि जितनी जल्दी हो सके न्याय भी करना होता है ताकि बच्चों को बार-बार थाने और कोर्ट के चक्कर न काटना पड़े.

पॉक्सो एक्ट पर खास रिपोर्ट

राजधानी रायपुर में कितने कोर्ट और पेंडिंग केस

राजधानी रायपुर में न्यायाधीश राजीव कुमार और न्यायाधीश राधिका सैनी यानी 2 न्यायाधीश पास्को से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हैं. इसके अलावा रायपुर जिले में ST-SC के लिए एक अलग कोर्ट है. जिसमें एसटीएससी से संबंधित पास्को के मामले सुनवाई के लिए पहुंचते हैं. प्रदेश के अन्य जिलों में भी एक-एक पाक्सो कोर्ट है, जिसमें लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित मामलों की सुनवाई होती है.

रायपुर स्थित पॉक्सो न्यायालय की बात की जाए तो यहां पर मार्च 2021 की स्थिति में न्यायाधीश राधिका सैनी की कोर्ट में करीब 222 मामले और न्यायाधीश राजीव कुमार की कोर्ट में 215 मामले लंबित हैं.

Special report on Poxo Act
पॉक्सो कोर्ट की संख्या

क्या है पॉक्सो एक्ट

पॉक्सो कानून यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (Protection of Children from Sexual Offences-POCSO) हिंदी में इसे लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 कहा जाता है. इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है. इस मामले की सुनवाई भी अन्य मामलों की अपेक्षा काफी जल्दी होती है. न्यायालय एक निश्चित समय में फैसला सुनाता है. पॉक्सो में आरोपी के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है. दोषी पाए जाने पर 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई जाती है.

Special report on Poxo Act
छत्तीसगढ़ में स्थिति

पॉक्सो से संबंधित मामले देखने वाले वकील नरेंद्र तामेश्वर बताते हैं कि इन न्यायालय में पहुंचने वाले बच्चों के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में सुनवाई की जाती है. बच्चों की मनोदशा, उनकी उम्र और पढ़ाई के अनुसार उनसे सवाल जवाब किया जाता है. यदि बच्चा कुछ बताने की स्थिति में नहीं है तो ऐसी स्थिति में बच्चे की मां सुनवाई के दौरान न्यायालय में बच्चे की बात रखने के लिए उपस्थित रहती है.

तय समयसीमा के अंदर सुनवाई

पॉक्सो से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि बच्चों के मन पर इसका विपरीत प्रभाव ना पड़े. पॉक्सो से संबंधित मामले देखने वाली संध्या शर्मा की मानें तो रायपुर जिला न्यायालय में स्थित पॉक्सो कोर्ट में करीब 8 से 10 मामले हर महीने पहुंचते हैं. इन मामलों की सुनवाई भी जल्दी-जल्दी की जाती है. एक मामले में न्यायालय ने 38 दिन में ही अपना फैसला सुना दिया था.

Special report on Poxo Act
सुनवाई की प्रक्रिया

सुनवाई के दौरान भी रखा जाता है ध्यान

एडवोकेट नरेंद्र तामेश्वर बताते हैं कि न्यायालय में पॉक्सो से संबंधित मामले सुनने वाले जज बड़े ही साधारण और सहज तरीके से बच्चों से बात करते हैं. कई बार तो जज बच्चों को अपने पास बैठाकर और उनके साथ घुल-मिल कर बातचीत करते हैं. अपनी सुनवाई को अंतिम मुकाम तक ले जाते हैं. नरेंद्र की मानें तो वर्तमान में पॉक्सो न्यायालय में पहुंचने वाले मामलों में तय समयसीमा के अंदर सुनवाई पूरी कर न्यायाधीश द्वारा अपना फैसला सुना दिया जाता है.

हालांकि कुछ मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी ना होना, सबूतों का अभाव, साक्ष्य जुटाने में हो रही देरी की वजह से फैसला सुनाने में देरी भी होती है लेकिन ज्यादातर मामलों में कोर्ट की कोशिश होती है कि तय समयसीमा में ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाया जा सके.

Special report on Poxo Act
पॉक्सो कोर्ट की संख्या

जल्द न्याय दिलाने की कोशिश

न्यायधीश के लिए एक महत्वपूर्ण जवाबदारी यह भी होती है कि किसी बेगुनाह को सजा ना हो, क्योंकि सारा दारोमदार बच्चे की गवाही पर टिका हुआ होता है. ऐसे ही बच्चों को न्याय दिलाने के लिए पॉक्सो न्यायालय बनाया गया है. न्यायाधीश की कोशिश होती है कि पीड़ित को जल्द से जल्द न्याय मिल सके. इसलिए मामले की सुनवाई के लिए न्यायालय द्वारा जल्दी-जल्दी पेशी दी जाती है.

बहरहाल बच्चों के साथ हो रहे बलात्कार, छेड़छाड़, लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के लिए सरकार और न्यायालय द्वारा अपने अपने स्तर पर कई ठोस कदम उठाए गए हैं. कई जगहों पर सही क्रियान्वयन हो रहा है. वहीं कुछ जगह इनमें कुछ खामियां भी देखने को मिलती हैं. बावजूद इसके बच्चों के साथ हो रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार प्रयास जारी है.

समाज की भी अहम भूमिका

यह प्रयास इन तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. इसमें कहीं ना कहीं समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. समाज को भी आज बच्चों के साथ हो रहे इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए आगे आना होगा. उन्हें भी सजग और जागरूक होना होगा. तभी ऐसे मामलों के दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी और उनमें डर भी होगा. जिससे वे इस तरह के अपराध को करने से पहले सौ बार सोचेंगे.

रायपुर: समय के साथ-साथ बच्चों के साथ छेड़छाड़, बलात्कार, लैंगिक उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रहीं हैं. घटना होने के बाद मामला थाने पहुंचता है. फिर थाने से सुनवाई के लिए पॉक्सो कोर्ट ले जाया जाता है. बच्चों को कोर्ट ले जाना, गवाही लेना और गवाही के आधार पर आरोपियों को सजा दिलाना एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें पुलिस, वकील से लेकर न्यायाधीश सभी को एक अलग परिस्थिति से गुजरना होता है. उन्हें पीड़ित बच्चों से ना सिर्फ आरोपी से संबंधित जानकारी निकालना और सबूत जुटाना होता है बल्कि जितनी जल्दी हो सके न्याय भी करना होता है ताकि बच्चों को बार-बार थाने और कोर्ट के चक्कर न काटना पड़े.

पॉक्सो एक्ट पर खास रिपोर्ट

राजधानी रायपुर में कितने कोर्ट और पेंडिंग केस

राजधानी रायपुर में न्यायाधीश राजीव कुमार और न्यायाधीश राधिका सैनी यानी 2 न्यायाधीश पास्को से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हैं. इसके अलावा रायपुर जिले में ST-SC के लिए एक अलग कोर्ट है. जिसमें एसटीएससी से संबंधित पास्को के मामले सुनवाई के लिए पहुंचते हैं. प्रदेश के अन्य जिलों में भी एक-एक पाक्सो कोर्ट है, जिसमें लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित मामलों की सुनवाई होती है.

रायपुर स्थित पॉक्सो न्यायालय की बात की जाए तो यहां पर मार्च 2021 की स्थिति में न्यायाधीश राधिका सैनी की कोर्ट में करीब 222 मामले और न्यायाधीश राजीव कुमार की कोर्ट में 215 मामले लंबित हैं.

Special report on Poxo Act
पॉक्सो कोर्ट की संख्या

क्या है पॉक्सो एक्ट

पॉक्सो कानून यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (Protection of Children from Sexual Offences-POCSO) हिंदी में इसे लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 कहा जाता है. इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है. इस मामले की सुनवाई भी अन्य मामलों की अपेक्षा काफी जल्दी होती है. न्यायालय एक निश्चित समय में फैसला सुनाता है. पॉक्सो में आरोपी के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है. दोषी पाए जाने पर 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा सुनाई जाती है.

Special report on Poxo Act
छत्तीसगढ़ में स्थिति

पॉक्सो से संबंधित मामले देखने वाले वकील नरेंद्र तामेश्वर बताते हैं कि इन न्यायालय में पहुंचने वाले बच्चों के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में सुनवाई की जाती है. बच्चों की मनोदशा, उनकी उम्र और पढ़ाई के अनुसार उनसे सवाल जवाब किया जाता है. यदि बच्चा कुछ बताने की स्थिति में नहीं है तो ऐसी स्थिति में बच्चे की मां सुनवाई के दौरान न्यायालय में बच्चे की बात रखने के लिए उपस्थित रहती है.

तय समयसीमा के अंदर सुनवाई

पॉक्सो से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि बच्चों के मन पर इसका विपरीत प्रभाव ना पड़े. पॉक्सो से संबंधित मामले देखने वाली संध्या शर्मा की मानें तो रायपुर जिला न्यायालय में स्थित पॉक्सो कोर्ट में करीब 8 से 10 मामले हर महीने पहुंचते हैं. इन मामलों की सुनवाई भी जल्दी-जल्दी की जाती है. एक मामले में न्यायालय ने 38 दिन में ही अपना फैसला सुना दिया था.

Special report on Poxo Act
सुनवाई की प्रक्रिया

सुनवाई के दौरान भी रखा जाता है ध्यान

एडवोकेट नरेंद्र तामेश्वर बताते हैं कि न्यायालय में पॉक्सो से संबंधित मामले सुनने वाले जज बड़े ही साधारण और सहज तरीके से बच्चों से बात करते हैं. कई बार तो जज बच्चों को अपने पास बैठाकर और उनके साथ घुल-मिल कर बातचीत करते हैं. अपनी सुनवाई को अंतिम मुकाम तक ले जाते हैं. नरेंद्र की मानें तो वर्तमान में पॉक्सो न्यायालय में पहुंचने वाले मामलों में तय समयसीमा के अंदर सुनवाई पूरी कर न्यायाधीश द्वारा अपना फैसला सुना दिया जाता है.

हालांकि कुछ मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी ना होना, सबूतों का अभाव, साक्ष्य जुटाने में हो रही देरी की वजह से फैसला सुनाने में देरी भी होती है लेकिन ज्यादातर मामलों में कोर्ट की कोशिश होती है कि तय समयसीमा में ही सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाया जा सके.

Special report on Poxo Act
पॉक्सो कोर्ट की संख्या

जल्द न्याय दिलाने की कोशिश

न्यायधीश के लिए एक महत्वपूर्ण जवाबदारी यह भी होती है कि किसी बेगुनाह को सजा ना हो, क्योंकि सारा दारोमदार बच्चे की गवाही पर टिका हुआ होता है. ऐसे ही बच्चों को न्याय दिलाने के लिए पॉक्सो न्यायालय बनाया गया है. न्यायाधीश की कोशिश होती है कि पीड़ित को जल्द से जल्द न्याय मिल सके. इसलिए मामले की सुनवाई के लिए न्यायालय द्वारा जल्दी-जल्दी पेशी दी जाती है.

बहरहाल बच्चों के साथ हो रहे बलात्कार, छेड़छाड़, लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के लिए सरकार और न्यायालय द्वारा अपने अपने स्तर पर कई ठोस कदम उठाए गए हैं. कई जगहों पर सही क्रियान्वयन हो रहा है. वहीं कुछ जगह इनमें कुछ खामियां भी देखने को मिलती हैं. बावजूद इसके बच्चों के साथ हो रहे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार प्रयास जारी है.

समाज की भी अहम भूमिका

यह प्रयास इन तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. इसमें कहीं ना कहीं समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. समाज को भी आज बच्चों के साथ हो रहे इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए आगे आना होगा. उन्हें भी सजग और जागरूक होना होगा. तभी ऐसे मामलों के दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी और उनमें डर भी होगा. जिससे वे इस तरह के अपराध को करने से पहले सौ बार सोचेंगे.

Last Updated : Mar 26, 2021, 10:18 AM IST
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