रायपुर: ओशो रायपुर के शासकीय दूधाधारी वैष्णव स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. कालिदास संस्कृत हॉस्टल में ओशो को एक कमरा दिया गया था. जहां रहने के दौरान वे पढ़ाई करते थे उसके बाद महाविद्यालय में जाकर कक्षा लेते थे.
कैसे बने रजनीश से ओशो: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया कि "जब ओशो संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर थे. तब उन्होंने संन्यास नहीं लिया था. उस दौरान वे अपने मूल नाम चंद्र मोहन जैन के नाम से जाने जाते थे. बाद में उनका तबादला जबलपुर कर दिया गया. समय के साथ उनके जीवन में भारी बदलाव आया और वे आचार्य रजनीश और ओशो के नाम से पहचाने जाने लगे.
ओशो के कमरे में रहने वाले हितेश ने बताया अनुभव: महाविद्यालय परिसर स्थित कालिदास संस्कृत हॉस्टल के जिस कमरे में ओशो रुके हुए थे. उनके जाने के बाद एक छात्र को उस कमरे में रुकने का मौका मिला. वह हॉस्टल के उसी कमरे में रुका था, जिसमें ओशो रुके हुए थे. उसी बेड पर सोता था, जिस पर ओशो कभी सोया करते थे. उस छात्र का नाम है हितेश शर्मा. आखिर उस कमरे मैं रहने के बाद हितेश को किस तरह की अनुभूति हुई. इसकी जानकारी खुद हितेश ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान विस्तार से दी.
"नंबर कम आने पर किया हॉस्टल में शिफ्ट": ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान हितेश शर्मा ने बताया कि "साल 2006 में ज्योतिष शास्त्र की पढ़ाई के लिए उसने संस्कृत महाविद्यालय रायपुर में एडमिशन लिया था. जहां फर्स्ट ईयर में उसका परसेंटेज काफी कम रहा, 49% अंक प्राप्त किए थे. वहीं सेकंड ईयर में परसेंटेज और कम हो गया, इस साल 47% अंक मिले. लगातार गिरते परसेंट की वजह से वह काफी परेशान था, क्योंकि 12वीं में उसके 82 परसेंट आये थे और सेकंड ईयर में 45% हो गया.
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हॉस्टल में हितेश मिला था कमरा नंबर 12: हितेश ने बताया कि "हितेश को वेद विभाग के अध्यक्ष राम किशोर मिश्र ने हॉस्टल में रहकर पढ़ने की सलाह दी. मिश्र ने कहा कि हॉस्टल में रहकर पढ़ोगे, तो तुम्हें पढ़ाई का अच्छा वातावरण मिलेगा और उसमें परसेंटेज में भी इजाफा होगा. कॉलेज परिसर में संस्कृत कालिदास छात्रावास है. वहां उन्हें कमरा नंबर 12 एलॉट हुआ. यह कमरा काफी लंबे समय से बंद था. हितेश ने बताया कि "उस दौरान गरियाबंद का रहने वाला अमितेश शुक्ल मेरा मित्र था. अमितेश शुक्ल बीए व्याकरण का छात्र था. हम दोनों को कमरा नंबर 12 में रहने लगे."
पॉजिटिव एनर्जी वाला था कमरा: हितेश ने बताया कि "उस कमरे की बनावट अलग थी. हम जिस पलंग पर सोते थे, वहां लगा दर्पण देखते थे, कुछ अजीब सा महसूस होता था. लेकिन हमें लगता था कि काफी सालों से कमरा बंद है, इसलिए ऐसा लग रहा होगा. कुछ समय बाद वहां एक काफी सीनियर विद्यार्थी पहुंचे और उन्होंने बताया कि जिस कमरे में तुम रह रहे हो, उसमें कभी ओशो रहा करते थे. यह पता चलते ही हम भौचक्के रह गए. लेकिन बाद में हमे वहां रहने की आदत पड़ गई और सब सामान्य हो गया."
हितेश का कहना है कि "वह कमरा बड़ा शानदार था, जिसमें हमें बहुत पॉजिटिव मिलती थी. उस फाइनल ईयर में हॉस्टल में रहने के दौरान मेरा परसेंटेज भी बढ़ गया था. उस दौरान मैंने ओशो की कई किताबें उसी टेबल और पलंग पर बैठ कर पढ़ी, जिस पर कभी ओशो बैठा करते थे. उस दौरान मुझे काफी अच्छा लगता था. आज भी संस्कृत महाविद्यालय में उनकी कई स्मृति लाइब्रेरी में है. मुझे गर्व है कि मैं उस संस्कृत महाविद्यालय का छात्र हूं, जहां कभी ओशो पढ़ा करते थे."
चंद्रमोहन जैन था ओशो का मूल नाम: ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 एमपी के रायसेन जिले के कुचवाड़ा गांव में हुआ था. ओशो का मूल नाम चंद्र मोहन जैन है. उनके पिता का नाम बाबूलाल और माता का नाम सरस्वती जैन है. उनके कुल 11 संताने थे जिनमें ओशो सबसे बड़े थे. उनके अन्य नाम आचार्य रजनीश, ओशो रजनीश इत्यादि भी है.पूरी दुनिया में प्रसिद्ध ‘ओशो’ ने अपनी शिक्षा जबलपुर में पूरी की और बाद में वे जबलपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे. वर्ष 1957 में संस्कृत के लेक्चरर के तौर पर रजनीश ने रायपुर स्थित संस्कृत महाविद्यालय में सेवाएं दी थी.