रायपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में हुई झीरम घाटी नक्सली हमले ( jhiram valley naxalite attack) की 25 मई को नौवीं बरसी है. इस घटना में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कई कद्दावर नेताओं के साथ 32 लोग शहीद हुए थे. पिछले नौ सालों में इस मामले की जांच के लिए कई एजेंसियां और कमेटी बनाई गईं, लेकिन आज तक शहीद परिवारों को न्याय नहीं मिल पाया है. घटना की जांच को लेकर एक बार फिर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर (Political allegations and counter-allegations in Chhattisgarh) शुरू हो गया है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी पर साधा निशाना: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 25 मई 2013 में हुए झीरम घाटी नक्सल घटना को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है. मुख्यमंत्री बघेल ने सोमवार को रायपुर से दंतेवाड़ा रवाना होने से पहले हेलीपैड पर कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) से केस वापस लेने की बात होती है तो भारत सरकार उसकी जानकारियां हमें नहीं देती. शहीद के परिजनों द्वारा दूसरी एफआइआर दर्ज की जाती है, तो एनआइए कोर्ट चली जाती है. राज्य शासन द्वारा गठित आयोग की जांच को रोकने के लिए नेता प्रतिपक्ष हाईकोर्ट चले जाते हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि बीजेपी झीरम घाटी कांड की जांच में अड़ंगा लगाकर उसका सच सामने नहीं आने देना चाहती.
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का पलटवार: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान पर छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रतिक्रिया दी है. नेता प्रतिपक्ष कौशिक ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर पलटवार किया है. धरमलाल कौशिक ने सवाल किया, कि प्रदेश की सरकार आखिर झीरम मामले की जांच रिपोर्ट को ओपन क्यों नहीं करना चाहती. कौशिक ने कहा कि जांच की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जांच प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया जा चुका है. सरकार की जवाबदारी थी कि जांच प्रतिवेदन को विधानसभा के पटल पर रखते और उसके बाद विधि सम्मत कार्रवाई करते. छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार द्वारा आनन-फानन में दूसरी जांच कमेटी का गठन किया गया. जांच के बिंदुओं में परिवर्तन किया गया. ऐसी स्थिति में पहले पेश की गई जांच प्रतिवेदन की वैधानिक स्थिति क्या होगी? कौशिक ने बताया कि इस मामले में कोर्ट ने स्टे लगा दिया है. छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने आरोप लगाया कि जिनकी जवाबदारी दोषियों पर कार्यवाही करने की थी, पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने की थी, खुद वे ही इस मामले को दबाना चाहते हैं.
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झीरम घाटी मामला: छत्तीसगढ़ के इतिहास में, 25 मई को काला दिवस के रूप में याद किया जाता है. इसी दिन बस्तर इलाके की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेताओं को अपनी गोलियों से छलनी कर दिया था. नौ साल पहले 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला किया था. एम्बुश लगाकर नक्सलियों द्वारा किये गए हमले में प्रदेश की पहली पंक्ति के कई कांग्रेसी नेताओं समेत 32 लोगों की मौत हो गई थी. नक्सलियों के हमले में शहीद होने वालों में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल, नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा जैसे कद्दावर नेता भी शामिल थे.
एनआइए की रिपोर्ट: प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम मामले की जांच के लिए एसआइटी का गठन किया गया. इसमें 10 सदस्य थे. सूत्रों के मुताबिक कानूनी दांव पेंच की वजह से जांच शुरू ही नहीं हो पाई. झीरम हमले की जांच केंद्रीय एजेंसी एनआइए ने भी की थी. एनआईए ने विशेष अदालत में फाइनल रिपोर्ट पेश की थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि झीरम हमला दहशत फैलाने के लिए किया गया था. प्रदेश के कांग्रेसी नेता इस जांच रिपोर्ट से इत्तिफाक नहीं रखते. कांग्रेसी इस घटना के पीछे राजनीतिक षड्यंत्र मानते है.
कई एजेंसियां रहीं जांच में शामिल: झीरम घाटी नक्सल घटना की शुरुवाती जांच छत्तीसगढ़ पुलिस ने की. मगर कांग्रेस ने सीबीआइ जांच की मांग की तब एनआइए को जांच सौंप दी गई. इसके साथ ही भाजपा सरकार ने न्यायिक जांच आयोग का भी गठन किया. राज्य में कांग्रेस की सरकार ने जांच के लिए एसआईटी का गठन किया. कांग्रेस सरकार ने जांच में नए बिंदुओं को शामिल करते हुए न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल बढ़ाया और नए सदस्यों की नियुक्ति की.
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जांच एजेंसियों को लेकर, कांग्रेस-बीजेपी में मतभेद : बस्तर के दरभा इलाके में हुई झीरम घाटी कांड के बाद, केंद्र की सरकार ने झीरम मामले की जांच के निर्देश दे दिए. केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए को जांच की जिम्मेदारी दी गई. राज्य सरकार ने भी जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में साल 2013 में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया. जून 2021 तक आयोग द्वारा रिपोर्ट पेश नहीं किया गया. जांच आयोग को सितंबर महीने तक रिपोर्ट देने का अंतिम मौका दिया गया. इसी बीच जस्टिस मिश्रा का ट्रांसफर हो गया. अंततः आयोग के सचिव ने, तैयार रिपोर्ट को प्रदेश की राज्यपाल को सौंप दिया. तब प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने इस पर आपत्ति दर्ज की थी. कांग्रेस नेताओं के मुताबिक इससे पहले विभिन्न मामलों में सात-आठ जांच आयोग का गठन राज्य सरकार की तरफ से किया गया. कांग्रेसी नेताओं के मुताबिक, मान्य परिपाटी ये है कि जांच आयोग की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी जाती है. फिर एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ इसे विधानसभा में पेश किया जाता रहा है, लेकिन झीरम जांच में ऐसा नहीं हुआ. इसको लेकर सीएम भूपेश बघेल ने भी ऐतराज जताया था.
सीएम ने उठाए थे सवाल-गुडसा उसेंडी से क्यों नहीं की गई पूछताछ? एनआईए की जांच पर भी सीएम भूपेश बघेल ने सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि कई बार हमने केंद्र से यह जांच वापस मांगी. इस केस में भारत सरकार किसको बचाना चाहती है. केंद्र सरकार से केस डायरी वापस मांगी, राज्य सरकार ने ही उसे NIA को दिया था और NIA जांच पूरी कर चुकी थी. कई बार पत्राचार के बाद गृह मंत्री के साथ कई बैठकों के बाद भी केंद्र सरकार ने केस वापस नहीं किया. मुख्यमंत्री बघेल ने कहा था " हमें तो न्याय चाहिए. आप जांच नहीं कर सकते तो हमें जांच करने दीजिए". सीएम ने कहा था कि खुद NIA कोर्ट ने कहा था कि सरेंडर के बाद आंध्र प्रदेश की जेल में बंद नक्सली नेता गुडसा उसेंडी का बयान लिया जाना चाहिए. उसके बाद भी NIA ने आज तक गुडसा उसेंडी से पूछताछ क्यों नहीं की?
पीसीसी चीफ ने भी उठाए थे सवाल: झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच के लिए गठित आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपने पर छत्तीसगढ़ पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने कहा था कि जांच रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपकर नियम का उल्लंघन किया गया है. यह राज्यपाल को सौंपना ठीक नहीं है. मरकाम ने सवाल किए थे कि आयोग को तीन महीने में रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन इसे तैयार करने में 8 साल लग गए. इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है, जिसे छिपाने का प्रयास किया जा रहा है. मरकाम ने कहा था कि झीरम कांड देश का सबसे बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र था. NIA की जांच भी संदिग्ध थी.
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कांग्रेस सरकार ने आयोग का बढ़ाया था कार्यकाल: छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद फरवरी 2020 में कांग्रेस की सरकार ने झीरम घाटी, मामले की जांच के लिए, एसआईटी का गठन किया. राज्य शासन ने पूर्व में मामले की जांच करने वाली केंद्रीय एजेंसी एनआईए से दस्तावेज भी मांगे लेकिन दस्तावेज नहीं मिल पाए. भूपेश बघेल की सरकार ने जस्टिस प्रशान्त मिश्रा के एकल सदस्यीय जांच आयोग की रिपोर्ट, राज्यपाल को सौंपे जाने के बाद, आयोग के पुराने जांच के बिंदुओं में कुछ नए सवालों को शामिल करते हुए सेवानिवृत जस्टिस सतीशचन्द्र अग्निहोत्री और जस्टिस मिन्हाजुद्दीन को नया सदस्य बनाकर न्यायिक जांच आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया था.
आयोग के कामकाज पर हाई कोर्ट ने लगाया रोक: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने लगभग 9 वर्ष पहले, बस्तर की झीरम घाटी में हुए नक्सल हमले की जांच के लिए भूपेश सरकार द्वारा गठित दो सदस्यीय जांच आयोग के कामकाज पर अगले आदेश तक रोक लगा दिया. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने विधानसभा में विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया था. धरमलाल कौशिक की ओर से उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी के अलावा विवेक शर्मा एवं अभिषेक गुप्ता ने नए जांच आयोग की वैधानिकता पर सवाल उठाए. और कहा था कि घटना के बाद गठित उच्च न्यायालय के सीटिंग जज न्यायमूर्ति प्रशान्त मिश्रा के एकल सदस्यीय जांच आयोग की राज्यपाल को सौंपी गई. रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखे बगैर नए आयोग का गठन करना गलत हैं.