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netaji subhash chandra bose jayanti 2023: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का ऐसा करिश्माई नेतृत्व, जिसने युवा दिलों पर किया राज - netaji subhash chandra bose jayanti 2023

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति और उनके ऊर्जा से ओत प्रोत विचारों ने युवाओं को दिशा दी. (netaji subhash chandra bose jayanti 2023) इसी के दम पर न सिर्फ आजादी की लड़ाई लड़ी गई बल्कि अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाई गईं. आजादी के मतवालों के साथ ही उनके विचारों ने कई भारतीयों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है. (Story of Subhash Chandra Bose) पूरा देश इस 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मनाएगा.

netaji subhash chandra bose
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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Published : Jan 3, 2023, 4:25 PM IST

रायपुर/हैदराबाद: नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 'आजाद हिंद फौज' के संस्थापक के रूप में जाना जाता है. netaji subhash chandra bose नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्रसिद्ध नारा है 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'. 18 अगस्त, 1944 को ताइवान के एक अस्पताल में एक विमान दुर्घटना में जलने के बाद नेताजी की मृत्यु हो गई थी. 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों का डिजिटल संस्करण सार्वजनिक किया, जो दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) में मौजूद हैं. Story of Subhash Chandra Bose नेताजी असाधारण नेतृत्व कौशल और करिश्माई वक्ता के साथ सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी माने जाते हैं. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई योगदान दिए.

स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामकृष्ण से प्रभावित था उनका जीवन: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक (ओडिशा) में एक बंगाली परिवार में हुआ था.netaji subhash chandra bose उनकी माता का नाम प्रभाती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था. उनके पिता कटक में वकील थे, जिन्हें राय बहादुर की उपाधि मिली थी. सुभाष चंद्र बोस ने प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (वर्तमान स्टीवर्ट हाई स्कूल) से स्कूली शिक्षा हासिल की और प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया. Story of Subhash Chandra Bose किशोरावस्था में वे स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण से प्रभावित हुए. इसके बाद परिवार वालों ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया. 1920 में उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की. अप्रैल 1921 में भारत में राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रभावित होने के बाद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गए.

यह भी पढ़ें: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री ने कहा- मजार, मस्जिद और ईदगाह इस्लाम के पूजा स्थल नहीं

आंदोलन के साथी चितरंजन दास को बनाया राजनीतिक गुरु: नेताजी सुभाष चंद्र बोस असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए, जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी. आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने बोस को चितरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी. आगे चलकर चितरंजन दास नेताजी के राजनीतिक गुरु बने. इसके बाद वह बंगाल कांग्रेस स्वयंसेवकों के युवा शिक्षक और कमांडेंट बन गए. उन्होंने 'स्वराज' अखबार की भी शुरुआत की.

1938 में चुने गए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष: 1927 में जेल से रिहा होने के बाद बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और जवाहरलाल नेहरू के साथ भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1938 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, जिसने व्यापक औद्योगीकरण की नीति तैयार की. बोस का संकल्प 1939 में आया जब उन्होंने पुनर्मिलन के लिए गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी को हराया और गांधी के समर्थन की कमी के कारण इस्तीफा दे दिया.

वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे नेताजी: ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था, जो 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा। वे कांग्रेस में अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे. फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्वों को साथ लाना था, ताकि वह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सकें.

यह भी पढ़ें: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम जानी जाएगी छत्तीसगढ़ पुलिस एकेडमी

आजाद हिंद फौज को दोबारा खड़ा किया: सुभाष चंद्र बोस 1941 में भारत से निकलकर जर्मनी चले गए और देश की आजादी के लिए काम करने लगे. 1943 में वह भारतीय स्वतंत्रता लीग का नेतृत्व करने के लिए सिंगापुर आए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिंद फौज) का पुनर्निर्माण करके इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रभावी साधन बनाया. आजाद हिंद फौज में लगभग 45,000 सैनिक थे, जो युद्ध-बंदियों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीय ही थे. 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत (आज़ाद हिंद) की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की.

अंग्रेजों को खदेड़ने 1944 में उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर हमला: सन् 1944 की शुरुआत में, आज़ाद हिंद फौज (INA) की तीन इकाइयों ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए हमले में भाग लिया. आजाद हिन्द फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक शाहनवाज खान के अनुसार, जिन सैनिकों ने भारत में प्रवेश किया था, वो जमीन पर लेट गए. भावुक होकर सभी ने मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को चूमा. हालांकि, आज़ाद हिंद फ़ौज की ओर से भारत को आज़ाद कराने का प्रयास विफल रहा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान के सबसे महान नेताओं में से एक नेताजी सुभाषचंद्र बोस जापान के आत्मसमर्पण करने के कुछ ही दिनों बाद एक हवाई दुर्घटना में मारे गए.

रायपुर/हैदराबाद: नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 'आजाद हिंद फौज' के संस्थापक के रूप में जाना जाता है. netaji subhash chandra bose नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्रसिद्ध नारा है 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'. 18 अगस्त, 1944 को ताइवान के एक अस्पताल में एक विमान दुर्घटना में जलने के बाद नेताजी की मृत्यु हो गई थी. 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 गोपनीय फाइलों का डिजिटल संस्करण सार्वजनिक किया, जो दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) में मौजूद हैं. Story of Subhash Chandra Bose नेताजी असाधारण नेतृत्व कौशल और करिश्माई वक्ता के साथ सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी माने जाते हैं. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई योगदान दिए.

स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामकृष्ण से प्रभावित था उनका जीवन: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक (ओडिशा) में एक बंगाली परिवार में हुआ था.netaji subhash chandra bose उनकी माता का नाम प्रभाती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था. उनके पिता कटक में वकील थे, जिन्हें राय बहादुर की उपाधि मिली थी. सुभाष चंद्र बोस ने प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (वर्तमान स्टीवर्ट हाई स्कूल) से स्कूली शिक्षा हासिल की और प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया. Story of Subhash Chandra Bose किशोरावस्था में वे स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण से प्रभावित हुए. इसके बाद परिवार वालों ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया. 1920 में उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की. अप्रैल 1921 में भारत में राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रभावित होने के बाद उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गए.

यह भी पढ़ें: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री ने कहा- मजार, मस्जिद और ईदगाह इस्लाम के पूजा स्थल नहीं

आंदोलन के साथी चितरंजन दास को बनाया राजनीतिक गुरु: नेताजी सुभाष चंद्र बोस असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए, जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी. आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने बोस को चितरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी. आगे चलकर चितरंजन दास नेताजी के राजनीतिक गुरु बने. इसके बाद वह बंगाल कांग्रेस स्वयंसेवकों के युवा शिक्षक और कमांडेंट बन गए. उन्होंने 'स्वराज' अखबार की भी शुरुआत की.

1938 में चुने गए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष: 1927 में जेल से रिहा होने के बाद बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और जवाहरलाल नेहरू के साथ भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1938 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, जिसने व्यापक औद्योगीकरण की नीति तैयार की. बोस का संकल्प 1939 में आया जब उन्होंने पुनर्मिलन के लिए गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी को हराया और गांधी के समर्थन की कमी के कारण इस्तीफा दे दिया.

वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे नेताजी: ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था, जो 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा। वे कांग्रेस में अपने वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते थे. फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्वों को साथ लाना था, ताकि वह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सकें.

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आजाद हिंद फौज को दोबारा खड़ा किया: सुभाष चंद्र बोस 1941 में भारत से निकलकर जर्मनी चले गए और देश की आजादी के लिए काम करने लगे. 1943 में वह भारतीय स्वतंत्रता लीग का नेतृत्व करने के लिए सिंगापुर आए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिंद फौज) का पुनर्निर्माण करके इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रभावी साधन बनाया. आजाद हिंद फौज में लगभग 45,000 सैनिक थे, जो युद्ध-बंदियों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीय ही थे. 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत (आज़ाद हिंद) की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की.

अंग्रेजों को खदेड़ने 1944 में उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर हमला: सन् 1944 की शुरुआत में, आज़ाद हिंद फौज (INA) की तीन इकाइयों ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए हमले में भाग लिया. आजाद हिन्द फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक शाहनवाज खान के अनुसार, जिन सैनिकों ने भारत में प्रवेश किया था, वो जमीन पर लेट गए. भावुक होकर सभी ने मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को चूमा. हालांकि, आज़ाद हिंद फ़ौज की ओर से भारत को आज़ाद कराने का प्रयास विफल रहा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान के सबसे महान नेताओं में से एक नेताजी सुभाषचंद्र बोस जापान के आत्मसमर्पण करने के कुछ ही दिनों बाद एक हवाई दुर्घटना में मारे गए.

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