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छत्तीसगढ़ का ऐसा 'गरिमागृह' जो ट्रांसजेंडर्स को सीखा रहा रोजगार के गुर, बना रहा आत्मनिर्भर

रायपुर में एक 'गरिमागृह' शेल्टर होम खोला गया है. जहां किन्नरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के स्किल्स सिखाए जा रहे हैं. जिसमें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, ब्यूटीशियन और मेहंदी के काम शामिल हैं. साथ ही इन्हें सरकारी नौकरियों के लिए तैयार किया जा रहा है.

transgender in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में 'मितवा' संगठन
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Published : Aug 8, 2021, 6:49 PM IST

Updated : Aug 9, 2021, 6:44 AM IST

रायपुर: सामाजिक ढांचे में जेंडर की पहचान हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. समाज में थर्ड जेंडर को लेकर जो धारणा है वह उन्हें आम लोगों के बीच घुलने-मिलने नहीं देता. ट्रांसजेंडर को पहचान मिले, वह भी आत्मनिर्भर बने इसके लिए सरकार और कई सामाजिक संगठनों ने प्रयास किए हैं. इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ में 'मितवा' नामक एक गैर सरकारी संगठन केंद्र सरकार की मदद से ट्रांसजेंडर को मुख्यधारा में जोड़ने की दिशा में काम कर रहा है.

मितवा की इस पहल के तहत रायपुर में एक 'गरिमागृह' शेल्टर होम खोला गया है. जहां किन्नरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के स्किल्स सिखाए जा रहे हैं. जिसमें सिलाई कढ़ाई बुनाई, ब्यूटीशियन, मेहंदी के काम शामिल हैं. साथ ही इन्हें सरकारी नौकरियों के लिए तैयार किया जा रहा है.

मितवा से बदलेगी ट्रांसजेंडर्स की किस्मत

राजधानी रायपुर में इस शेल्टर होम की शुरुआत इसी साल 1अप्रैल को हुई थी. यहां इस वक्त 23 ट्रांसजेंडर रह रहे हैं और आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा यहां मध्य प्रदेश, उड़ीसा, चंडीगढ़ से भी ट्रांसजेंडर यहां रहकर प्रशिक्षण ले रहे हैं.

अंशिका के लाइफ में आया बदलाव

गरिमागृह' शेल्टर होम में रह रही अंशिका छुरा ने बताया वह 3 महीने यहां रह रही हैं. उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है. वह बहुत सी चीजें यहां सीख रही हैं जिसमें डांस, सिलाई, शामिल है. इसके साथ ही वह कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी भी कर रही हैं.

अंशिका ने बताया कि पहले सुबह और रात कब हो जाती थी पता नहीं चलता था. वह सुबह रुपए कलेक्शन के लिए निकलती थी और शाम को घर आती थी. इस तरह जीवन गुजर रहा था, लेकिन यहां आने पर उसे लगा कि वह कुछ सीखेगी और आगे बढ़ेगी. अंशिका ने कहा, 'पुरानी जिंदगी छोड़ कर इस जिंदगी में आई तो बहुत अच्छा लगा. मैं पुलिस बनना चाहती हूं, मैं कोशिश करूंगी कि पुलिस में भर्ती हो सकूं.'

अंशिका ने अपनी बीती जिंदगी की दुखभरी कहानी बताते हुए कहा, 'मेरे ट्रांसजेंडर होने के बारे में जब मेरे परिवार में पता चला तो परिवार का रिएक्शन बहुत ही गंदा था. घरवाले मुझे डांटते थे, मारते, चिल्लाते थे. कुछ समय बाद घर के लोगों ने मुझे स्वीकार किया और अब मैं यहां पर रहकर प्रशिक्षण ले रही हूं.'

अब नीलम की कहानी पढ़िए

अशिका की तरह गरिमा शेल्टर होम में नीलम दांडी भी रह रही हैं. वह 2 महीने से यहां हैं और मेकअप का काम सीख रही है. इसके साथ ही वह सिलाई, डांस और पढ़ाई भी करती है. नीलम ने बताया, 'उसे यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है. मैं जब से यहां आई हूं, तब से बहुत अच्छा लगता है. यहां खाना और रहन-सहन भी बहुत अच्छा है, जो जरूरत की आवश्यकता हैं वह भी चीजें मिलती हैं.'

नीलम ने बताया कि पहले वह लोगों से रुपए मांग कर अपना जीवन चला रही थी, लेकिन यहां पर आकर पूरी लाइफ बदल गई है. उसकी दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई है और वह बहुत सारी चीजें सीख रही हैं.

गरिमा गरीब की संचालक ने क्या कहा?

गरिमागृह की संचालक विद्या राजपूत ने बताया कि, किन्नरों को समाज में जल्दी एक्सेप्ट नहीं किया जाता. परिवार के लोग तक उन्हें एक्सेप्ट नहीं करते. ऐसी परिस्थिति में उनके पास अपनी जिंदगी बिताने के लिए कोई रास्ता नहीं रहता. मजबूरन वह भीख मांगती हैं. यहां शेल्टर होम में उन्हें प्रशिक्षण के साथ-साथ आगे बढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है.

विद्या राजपूत ने बताया कि यहां रहने वाले हर एक सदस्य की पूरी दिनचर्या का रूटीन बनाया गया है. सबसे पहले सुबह उठकर सभी योगा करते हैं. योगा के बाद पीटी, दौड़ और अन्य एक्सरसाइज की जाती है. फिर सामूहिक पूजा अर्चना होती है. उसके बाद पहली क्लास कत्थक की होती है. फ्री टेलरिंग और ब्यूटीशियन की क्लास होती है. उसके बाद लंच ब्रेक होता है. इसके साथ ही क्रिएटिव क्लास भी समय-समय पर आयोजित होती है. शाम के फिर डांस क्लास होती है. उन्होंने कहा कि यहां रहने वाली जिन बच्चियों को जिस विधा में रुचि है वह उसे सीखती हैं. जिन्हें इन सब में रुचि नहीं है वे पढ़ाई करते हैं और जर्नल नॉलेज के साथ-साथ प्रतियोगी एग्जाम की तैयारियां भी करते हैं.

रायपुर: सामाजिक ढांचे में जेंडर की पहचान हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. समाज में थर्ड जेंडर को लेकर जो धारणा है वह उन्हें आम लोगों के बीच घुलने-मिलने नहीं देता. ट्रांसजेंडर को पहचान मिले, वह भी आत्मनिर्भर बने इसके लिए सरकार और कई सामाजिक संगठनों ने प्रयास किए हैं. इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ में 'मितवा' नामक एक गैर सरकारी संगठन केंद्र सरकार की मदद से ट्रांसजेंडर को मुख्यधारा में जोड़ने की दिशा में काम कर रहा है.

मितवा की इस पहल के तहत रायपुर में एक 'गरिमागृह' शेल्टर होम खोला गया है. जहां किन्नरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह के स्किल्स सिखाए जा रहे हैं. जिसमें सिलाई कढ़ाई बुनाई, ब्यूटीशियन, मेहंदी के काम शामिल हैं. साथ ही इन्हें सरकारी नौकरियों के लिए तैयार किया जा रहा है.

मितवा से बदलेगी ट्रांसजेंडर्स की किस्मत

राजधानी रायपुर में इस शेल्टर होम की शुरुआत इसी साल 1अप्रैल को हुई थी. यहां इस वक्त 23 ट्रांसजेंडर रह रहे हैं और आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा यहां मध्य प्रदेश, उड़ीसा, चंडीगढ़ से भी ट्रांसजेंडर यहां रहकर प्रशिक्षण ले रहे हैं.

अंशिका के लाइफ में आया बदलाव

गरिमागृह' शेल्टर होम में रह रही अंशिका छुरा ने बताया वह 3 महीने यहां रह रही हैं. उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है. वह बहुत सी चीजें यहां सीख रही हैं जिसमें डांस, सिलाई, शामिल है. इसके साथ ही वह कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी भी कर रही हैं.

अंशिका ने बताया कि पहले सुबह और रात कब हो जाती थी पता नहीं चलता था. वह सुबह रुपए कलेक्शन के लिए निकलती थी और शाम को घर आती थी. इस तरह जीवन गुजर रहा था, लेकिन यहां आने पर उसे लगा कि वह कुछ सीखेगी और आगे बढ़ेगी. अंशिका ने कहा, 'पुरानी जिंदगी छोड़ कर इस जिंदगी में आई तो बहुत अच्छा लगा. मैं पुलिस बनना चाहती हूं, मैं कोशिश करूंगी कि पुलिस में भर्ती हो सकूं.'

अंशिका ने अपनी बीती जिंदगी की दुखभरी कहानी बताते हुए कहा, 'मेरे ट्रांसजेंडर होने के बारे में जब मेरे परिवार में पता चला तो परिवार का रिएक्शन बहुत ही गंदा था. घरवाले मुझे डांटते थे, मारते, चिल्लाते थे. कुछ समय बाद घर के लोगों ने मुझे स्वीकार किया और अब मैं यहां पर रहकर प्रशिक्षण ले रही हूं.'

अब नीलम की कहानी पढ़िए

अशिका की तरह गरिमा शेल्टर होम में नीलम दांडी भी रह रही हैं. वह 2 महीने से यहां हैं और मेकअप का काम सीख रही है. इसके साथ ही वह सिलाई, डांस और पढ़ाई भी करती है. नीलम ने बताया, 'उसे यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है. मैं जब से यहां आई हूं, तब से बहुत अच्छा लगता है. यहां खाना और रहन-सहन भी बहुत अच्छा है, जो जरूरत की आवश्यकता हैं वह भी चीजें मिलती हैं.'

नीलम ने बताया कि पहले वह लोगों से रुपए मांग कर अपना जीवन चला रही थी, लेकिन यहां पर आकर पूरी लाइफ बदल गई है. उसकी दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई है और वह बहुत सारी चीजें सीख रही हैं.

गरिमा गरीब की संचालक ने क्या कहा?

गरिमागृह की संचालक विद्या राजपूत ने बताया कि, किन्नरों को समाज में जल्दी एक्सेप्ट नहीं किया जाता. परिवार के लोग तक उन्हें एक्सेप्ट नहीं करते. ऐसी परिस्थिति में उनके पास अपनी जिंदगी बिताने के लिए कोई रास्ता नहीं रहता. मजबूरन वह भीख मांगती हैं. यहां शेल्टर होम में उन्हें प्रशिक्षण के साथ-साथ आगे बढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है.

विद्या राजपूत ने बताया कि यहां रहने वाले हर एक सदस्य की पूरी दिनचर्या का रूटीन बनाया गया है. सबसे पहले सुबह उठकर सभी योगा करते हैं. योगा के बाद पीटी, दौड़ और अन्य एक्सरसाइज की जाती है. फिर सामूहिक पूजा अर्चना होती है. उसके बाद पहली क्लास कत्थक की होती है. फ्री टेलरिंग और ब्यूटीशियन की क्लास होती है. उसके बाद लंच ब्रेक होता है. इसके साथ ही क्रिएटिव क्लास भी समय-समय पर आयोजित होती है. शाम के फिर डांस क्लास होती है. उन्होंने कहा कि यहां रहने वाली जिन बच्चियों को जिस विधा में रुचि है वह उसे सीखती हैं. जिन्हें इन सब में रुचि नहीं है वे पढ़ाई करते हैं और जर्नल नॉलेज के साथ-साथ प्रतियोगी एग्जाम की तैयारियां भी करते हैं.

Last Updated : Aug 9, 2021, 6:44 AM IST
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