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Navratri 2021: चौथे दिन माता कुष्मांडा की व्रत, जानें पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के 'कुष्मांडा' रूप की पूजा की जाती है. अपनी मंद मुस्‍कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति करने के कारण देवी के इस रूप को कुष्मांडा कहा गया. ऐसी मान्‍यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना, इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया.

माता कुष्मांडा
माता कुष्मांडा
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Published : Oct 6, 2021, 8:56 PM IST

रायपुर: देवी सर्वभूतेषु कुष्मांडा माता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था. तब कुष्मांडा माता (Kushmanda Mata) के प्रभाव से ही सृष्टि का प्रादुर्भाव और संचालन हुआ. माता संपूर्ण ब्रह्मांड की देवी मानी जाती है. कुष्मांडा माता आठ भुजाओं से युक्त है. अतः माता अष्टभुजा देवी भी कहलाती है. माता कुष्मांडा को कुम्हड़ा बहुत ही प्रिय है.

अतः इस दिन कुम्हड़े की बलि दी जाती है. इस दिन कुम्हड़े का भोग माता को विधि विधान पूर्वक मंत्रों के साथ लगाकर प्रसाद के रूप में कुम्हड़े को ग्रहण करना चाहिए. अनेक स्थानों पर कुम्हड़े की सब्जी के साथ भोग भंडारा भी किया जाता है. सच्चे मन से और पवित्र हृदय से माता कुष्मांडा की पूजा करने पर मन की कामनाएं पूर्ण होती है. माता कुष्मांडा कर्म की अधिष्ठात्री देवी हैं. जीवन को सुगम बनाने वाली देवी मानी गई है. माता के पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है.

माता कुष्मांडा की पूजा करने से अवरोध होते हैं दूर

विशाखा नक्षत्र तृतीय योग शुभ योग विषकुंभ योग के सुंदर योग में माता के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाएगी. सायंकाल में अति शुभ रवि योग भी बन रहा है. माता कुष्मांडा को शहद रोली कुमकुम सिंदूर परिमल अबीर और नाना प्रकार के विविध औषधि गुणों से युक्त पदार्थों का भोग लगाया जाता है. माता कुष्मांडा की कृपा से बिगड़े कार्य बन जाते हैं. मार्ग में आने वाले अवरोध समाप्त हो जाते हैं.

पारिवारिक जीवन में निखार आता है. इस दिन सुपात्र व्यक्तियों को दान करना बहुत शुभ माना गया है. आज के दिन कलश की विधान पूर्वक पूजा होनी चाहिए. कलश का दीपक किसी भी रूप में बुझने ना पाए. धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होते हैं. माता कुष्मांडा के अनुग्रह से जीवन में सुख शांति और उन्नति की कामनाएं पूर्ण होती है. यह पर्व विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है. भद्रा की निवृत्ति शाम 4:54 के उपरांत है. वैसे माता की शक्तियों के आगे भद्रा आदि जैसी चीजें बहुत ही नगण्य में हो जाती है. इस शुभ दिन अन्नप्राशन नामकरण आदि संस्कार करना शुभ होता है.

रायपुर: देवी सर्वभूतेषु कुष्मांडा माता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था. तब कुष्मांडा माता (Kushmanda Mata) के प्रभाव से ही सृष्टि का प्रादुर्भाव और संचालन हुआ. माता संपूर्ण ब्रह्मांड की देवी मानी जाती है. कुष्मांडा माता आठ भुजाओं से युक्त है. अतः माता अष्टभुजा देवी भी कहलाती है. माता कुष्मांडा को कुम्हड़ा बहुत ही प्रिय है.

अतः इस दिन कुम्हड़े की बलि दी जाती है. इस दिन कुम्हड़े का भोग माता को विधि विधान पूर्वक मंत्रों के साथ लगाकर प्रसाद के रूप में कुम्हड़े को ग्रहण करना चाहिए. अनेक स्थानों पर कुम्हड़े की सब्जी के साथ भोग भंडारा भी किया जाता है. सच्चे मन से और पवित्र हृदय से माता कुष्मांडा की पूजा करने पर मन की कामनाएं पूर्ण होती है. माता कुष्मांडा कर्म की अधिष्ठात्री देवी हैं. जीवन को सुगम बनाने वाली देवी मानी गई है. माता के पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है.

माता कुष्मांडा की पूजा करने से अवरोध होते हैं दूर

विशाखा नक्षत्र तृतीय योग शुभ योग विषकुंभ योग के सुंदर योग में माता के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाएगी. सायंकाल में अति शुभ रवि योग भी बन रहा है. माता कुष्मांडा को शहद रोली कुमकुम सिंदूर परिमल अबीर और नाना प्रकार के विविध औषधि गुणों से युक्त पदार्थों का भोग लगाया जाता है. माता कुष्मांडा की कृपा से बिगड़े कार्य बन जाते हैं. मार्ग में आने वाले अवरोध समाप्त हो जाते हैं.

पारिवारिक जीवन में निखार आता है. इस दिन सुपात्र व्यक्तियों को दान करना बहुत शुभ माना गया है. आज के दिन कलश की विधान पूर्वक पूजा होनी चाहिए. कलश का दीपक किसी भी रूप में बुझने ना पाए. धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होते हैं. माता कुष्मांडा के अनुग्रह से जीवन में सुख शांति और उन्नति की कामनाएं पूर्ण होती है. यह पर्व विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है. भद्रा की निवृत्ति शाम 4:54 के उपरांत है. वैसे माता की शक्तियों के आगे भद्रा आदि जैसी चीजें बहुत ही नगण्य में हो जाती है. इस शुभ दिन अन्नप्राशन नामकरण आदि संस्कार करना शुभ होता है.

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