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इसलिए भगवान शिव को कहा जाता है त्रिपुरान्तक, शिव धनुष से जुड़ी है ये कहानी

रायपुर (Raipur) के संग्रहालय (Museum) में कलचुरी काल (Kalchuri period) में निर्मित भगवान शिव (God shiv) की त्रिपुरान्तक रूप की मूर्ति रखी हुई है. यह मूर्ति छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) से प्राप्त हुई है, जिसे राजधानी रायपुर के संग्रहालय में रखा गया है. ऐसा माना जाता है कि राक्षसों के तीनों पुर यानी कि नगर को नाश करने के लिए भगवान शिव ने पहली बार धनुष-बाण चलाया था जिसके कारण भगवान शिव को त्रिपुरान्तक (Tripurantak) का रूप धारण करना पड़ा था.

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शिव धनुष से जुड़ी है ये कहानी
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Published : Nov 5, 2021, 3:36 PM IST

Updated : Nov 5, 2021, 4:55 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) के संग्रहालय (Museum) में कलचुरी काल (Kalchuri period)में निर्मित भगवान शिव(God shiv) की त्रिपुरान्तक रूप की मूर्ति रखी हुई है, जो आकर्षण का केंद्र है. इस तरह की मूर्ति बहुत कम ही पाई जाती है. दरअसल, यह मूर्ति छत्तीसगढ़ से प्राप्त हुई है, जिसे राजधानी रायपुर के संग्रहालय में रखा गया है. ऐसा माना जाता है कि राक्षसों के तीनों पुर यानी कि नगर को नाश करने के लिए भगवान शिव ने पहली बार धनुष-बाण चलाया था जिसके कारण भगवान शिव को त्रिपुरान्तक (Tripurantak) का रूप धारण करना पड़ा था.

भगवान शिव को कहा जाता है त्रिपुरान्तक

कल्याण सुंदरमूर्ति में शिव पार्वती के विवाह का असल चित्रण

यूं पड़ा शिव धनुष नाम

वहीं, इस विषय में ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान इतिहासकार (Historian) और पुरातत्वविद (Archaeologist) डॉक्टर हेमू यदु (Dr. Hemu Yadu) ने बताया कि भगवान शिव ने तीन राक्षसों के पुर (नगर) का विनाश करने के लिए त्रिपुरान्तक (Tripurantak) का रूप धारण किया था. जिसके बाद उन्होंने पहली बार उन्होंने धनुष चलाए थे. इस धनुष बाण का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है. इसी शिव धनुष को भगवान राम ने तोड़कर माता सीता से शादी रचाई थी. बताया जाता है कि तीन राक्षसों के तीन अलग-अलग पुर थे, जिसमें सोना,चांदी और लोहे का किला था. तीनों को एक लाइन में रखकर भगवान शिव ने पहली बार धनुष का प्रयोग किया था, जिसे शिव धनुष (Shiva Dhanush) के नाम से जाना जाता है.

ये है त्रिपुरारी कहलाने की कथा

कहा जाता है कि भगवान शिव के त्रिपुरारी कहलाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है. शिव पुराण की मानें तो जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्यराज तारकासुर का वध किया तो उसके 3 पुत्र तारकक्ष, विमलाकक्ष और विधुन्नमाली अपने पिता की मृत्यु पर बहुत दुखी हुए. उन्होंने देवताओं और भगवान शिव से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की ठानी और कठोर तपस्या के लिए ऊंचे पर्वतों पर चले गए. अपनी घोर तपस्या के बल पर राक्षस के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा जी को प्रसन किया और उनसे अमर होने का वरदान मांगा था. लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं तुम्हें यह वरदान नहीं दे सकता. मुझसे कोई दूसरा वरदान मांग लो.

ब्रह्मा ने दिया था वरदान

जिस पर तारकासुर के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप हमारे लिए 3 नगर का निर्माण करवाइए और इन नगर के अंदर बैठे-बैठे हम पृथ्वी का भ्रमण आकाश मार्ग से करते रहें. 1 हजार साल के बाद यह नगर एक जगह आकर मिले तो सभी पुर या नगर एक हो जाए. अगर उस समय कोई देवता नगर को केवल एक ही बार में नष्ट कर दें, तो वही हमारी मृत्यु का कारण बने. जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने तीनों को यह वरदान दे दिया. ब्रह्मा जी ने मयदानव को प्रगट करके उनसे तीन पुरी का निर्माण करवाया. कहा जाता है कि राक्षस तारकक्ष का नगर सोने का था, विमला कक्ष का नगर चांदी का था और विधुन्नमाली राक्षस का नगर लोहे का बना हुआ था जिसे भगवान शिव ने त्रिपुरान्तक रूप धारण कर धनुष-बाण चलाकर एक तीर से ही तीनों नगर को नष्ट कर दिया था.

रायपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) के संग्रहालय (Museum) में कलचुरी काल (Kalchuri period)में निर्मित भगवान शिव(God shiv) की त्रिपुरान्तक रूप की मूर्ति रखी हुई है, जो आकर्षण का केंद्र है. इस तरह की मूर्ति बहुत कम ही पाई जाती है. दरअसल, यह मूर्ति छत्तीसगढ़ से प्राप्त हुई है, जिसे राजधानी रायपुर के संग्रहालय में रखा गया है. ऐसा माना जाता है कि राक्षसों के तीनों पुर यानी कि नगर को नाश करने के लिए भगवान शिव ने पहली बार धनुष-बाण चलाया था जिसके कारण भगवान शिव को त्रिपुरान्तक (Tripurantak) का रूप धारण करना पड़ा था.

भगवान शिव को कहा जाता है त्रिपुरान्तक

कल्याण सुंदरमूर्ति में शिव पार्वती के विवाह का असल चित्रण

यूं पड़ा शिव धनुष नाम

वहीं, इस विषय में ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान इतिहासकार (Historian) और पुरातत्वविद (Archaeologist) डॉक्टर हेमू यदु (Dr. Hemu Yadu) ने बताया कि भगवान शिव ने तीन राक्षसों के पुर (नगर) का विनाश करने के लिए त्रिपुरान्तक (Tripurantak) का रूप धारण किया था. जिसके बाद उन्होंने पहली बार उन्होंने धनुष चलाए थे. इस धनुष बाण का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है. इसी शिव धनुष को भगवान राम ने तोड़कर माता सीता से शादी रचाई थी. बताया जाता है कि तीन राक्षसों के तीन अलग-अलग पुर थे, जिसमें सोना,चांदी और लोहे का किला था. तीनों को एक लाइन में रखकर भगवान शिव ने पहली बार धनुष का प्रयोग किया था, जिसे शिव धनुष (Shiva Dhanush) के नाम से जाना जाता है.

ये है त्रिपुरारी कहलाने की कथा

कहा जाता है कि भगवान शिव के त्रिपुरारी कहलाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है. शिव पुराण की मानें तो जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्यराज तारकासुर का वध किया तो उसके 3 पुत्र तारकक्ष, विमलाकक्ष और विधुन्नमाली अपने पिता की मृत्यु पर बहुत दुखी हुए. उन्होंने देवताओं और भगवान शिव से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की ठानी और कठोर तपस्या के लिए ऊंचे पर्वतों पर चले गए. अपनी घोर तपस्या के बल पर राक्षस के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा जी को प्रसन किया और उनसे अमर होने का वरदान मांगा था. लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं तुम्हें यह वरदान नहीं दे सकता. मुझसे कोई दूसरा वरदान मांग लो.

ब्रह्मा ने दिया था वरदान

जिस पर तारकासुर के तीनों पुत्रों ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप हमारे लिए 3 नगर का निर्माण करवाइए और इन नगर के अंदर बैठे-बैठे हम पृथ्वी का भ्रमण आकाश मार्ग से करते रहें. 1 हजार साल के बाद यह नगर एक जगह आकर मिले तो सभी पुर या नगर एक हो जाए. अगर उस समय कोई देवता नगर को केवल एक ही बार में नष्ट कर दें, तो वही हमारी मृत्यु का कारण बने. जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने तीनों को यह वरदान दे दिया. ब्रह्मा जी ने मयदानव को प्रगट करके उनसे तीन पुरी का निर्माण करवाया. कहा जाता है कि राक्षस तारकक्ष का नगर सोने का था, विमला कक्ष का नगर चांदी का था और विधुन्नमाली राक्षस का नगर लोहे का बना हुआ था जिसे भगवान शिव ने त्रिपुरान्तक रूप धारण कर धनुष-बाण चलाकर एक तीर से ही तीनों नगर को नष्ट कर दिया था.

Last Updated : Nov 5, 2021, 4:55 PM IST
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