रायपुर / हैदराबाद : ओशो का जन्म मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा में 11 दिसंबर 1931 को हुआ था.ओशो का बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन life of osho rajneesh था. ओशो ने अपनी पढ़ाई जबलपुर से पूरी की थी. फिर जबलपुर विश्वविद्यालय से ही अपनी पहली नौकरी लेक्चरर के रुप में शुरु की. उसके बाद उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर धर्म और विचारधारा पर प्रवचन देना शुरु किया. यहीं से उनका ओशो बनने का सफर शुरु हुआ. जो उनकी मौत के साथ ही खत्म हुआ. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ी और नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. ओशो के इस आंदोलन की पूरे देश में खूब चर्चा हुई. क्योंकि ये पारम्परिक सन्यांस विधि से बिल्कुल अलग था. ओशो का कहना था कि मेरा सन्यास ऐसा है जो आपको सबकुछ करने की छूट देता है. उनकी इस वैचारिक क्रांति को बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद किया और बड़ी संख्या में लोग ओशो के खिलाफ खड़े भी popular saint of India Osho हुए.
भारत सरकार ने उठाया था सख्त कदम : 1981 में भारत सरकार की आलोचना और धर्म और राजनीतिक विषयों पर बोलने का कारण उन्हें पूना में आश्रम चलाने में मुश्किल हुई. इस दौरान ओशो के अनुयायियों की संख्या इतनी हो गई थी कि आश्रम छोटा पड़ने Pune Ashram of Osho लगा.ये वो समय था जब ओशो की लोकप्रियता बढ़ रही थी लेकिन शरीर साथ नहीं दे रहा था. आखिरकार उन्होंने अमेरिका जाने का फैसला किया. इसके बाद ओशो ने अमेरिका जाकर लोगों को प्रवचन देना शुरु किया. देखते ही देखते अमेरिका में भी ओशो के भक्तों की संख्या लाखों की तादाद में पहुंच Story of Osho गई.
ओशो से डर गया था अमेरिका : अमेरिका में ओशो के साथ भक्तों का हुजूम चलने लगा.इसी के साथ ही कई विवाद जुड़े . ओशो महंगी घड़िया, रोल्स रॉयस कारें और डिजाइनर कपड़ों की वजह से चर्चा में आए. दूसरी तरफ उनके भक्तों ने वहां के शहर के एक बहुत बड़े इलाके को खरीद लिया. वहां रहने से लेकर आश्रम तक की सारी व्यवस्थाएं कर दी. इस बीच उन्होंने उस इलाके को अलग शहर बनाने का भी ऐलान भी कर दिया . जिसके नाम वह रजनीशपुरम रखकर रजिस्टर्ड कराना चाहते थे. इतना सब होने के कारण अमेरिका की सरकार को ओशो से खतरा महसूस होने लगा. आखिरकार बाद में सरकार ने ओशो कई आरोप लगाकर उन्हें अमेरिका से निष्काषित कर Osho Rajneesh and controversy दिया.
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भारत में ली अंतिम सांस : 1985 में ओशो अमेरिका से भारत वापस आ गए और उन्होंने फिर से अपने पूना के आश्रम में प्रवचन देना शुरु कर दिया.इसके बाद उन्होंने विश्व भ्रमण का निर्णय लिया.लेकिन विश्व शक्ति अमेरिका के दवाब के कारण कई देशों ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया.आखिरकार 19 जनवरी 1990 को ओशो का पुणे में निधन हो Death of Acharya Rajneesh गया. ऐसा कहा जाता है कि अमेरिकी जेल में रहने के दौरान ओशो को धीमा जहर दिया गया था.लेकिन इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मौजूद Osho death mysteryहैं.