रायपुर : इस उपन्यास को लिखने का मन महेंद्र कुमार ठाकुर के मन में कॉलेज में पढ़ने के दौरान आया था. स्टूडेंट लाइफ के दौरान उन्होंने कई चीजों को देखा और समझा. सरकारी नौकरी में इस चीज को गहराई से समझा और जाना महेंद्र सिंह ठाकुर कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सबसे पहले मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ में लेखापाल के पद पर पदस्थ हुए थे. उसके बाद बागबाहरा सरायपाली और बिलासपुर जैसी जगहों पर अर्थशास्त्र और हिंदी के प्राध्यापक की नौकरी भी की.
कैसे लिखा उपन्यास : धमतरी में 14 महीने तक नायब तहसीलदार भी रहे. उसके बाद सेल टैक्स विभाग में अधिकारी के पद पर तैनात हुए. उसी दौरान उनके मन में आया कि उनकी नौकरी गलत जगह पर लगी है. वहीं से उनके मन में उपन्यास को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे. उसी समय उन्होंने अपने मन में उठ रहे विचारों को अपनी कलम से लिखने का मन बनाया और लिख डाली एक डिप्टी कमिश्नर की डायरी नामक उपन्यास.
उपन्यासकार महेंद्र कुमार ठाकुर ने बताया कि "वर्तमान समय में लोग रिश्वत शब्द का इस्तेमाल ना करके दान दक्षिणा चढ़ावा या भेंट कहकर संबोधित करते हैं. जो आज के इस सिस्टम में प्रचलित है. प्राचीन समय में ऋषि मुनि को दिया जाने वाला दक्षिणा ऋषिवत आचरण कहलाता था. जो आधुनिक दौर में रिश्वत हो गया है. वर्तमान परिस्थिति में लोग रिश्वत लेना गलत नहीं मानते लेकिन अगर पकड़ा जाते हैं, तो यही रिश्वत शब्द गलत हो जाता है. और लोग इसे गलत मानने लगते हैं.''
सरकारी आदेश को पूरा करने की सजा : महेंद्र कुमार ठाकुर ने बताया कि "उन्हें विभाग की तरफ से सन 1986 में उन्हें 1 साल के दौरान 84 लाख टैक्स पकड़ने का आदेश मिला. विभाग के वरिष्ठ अधिकारी टैक्स वसूली के लिए नहीं जाने देते थे. जांच करने के लिए परमिशन लेना भी काफी मुश्किल काम था.'' विभाग के अधिकारी छुट्टी पर चले गए. उसके बाद महेंद्र कुमार ठाकुर ने कलेक्टर से परमिशन लेकर टैक्स पकड़ने निकल पड़े.''
इनाम की जगह मिली वॉर्निंग : 1 सप्ताह के दौरान उन्होंने 2 करोड़ 30 लाख रुपये का टैक्स पकड़ा. जबकि उन्हें टारगेट 84 लाख रुपए का मिला था. ऐसे में सेल टैक्स विभाग अधिकारी को पुरस्कार और शाबाशी देने के बजाय विभागीय जांच के आदेश करने के साथ ही विभाग ने निलंबन आदेश तक जारी करने की सोच डाली थी. जबकि टैक्स पकड़ने जाने से पहले कमिश्नर और एडिशनल कमिश्नर को जानकारी देने के बाद कार्रवाई हुई थी.
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महेंद्र कुमार ठाकुर ने आगे बताया कि विभाग के इस रवैया से वे काफी परेशान और आहत हुए थे. सरकारी सिस्टम में एक चैनल के माध्यम से अधिकारियों तक पैसा पहुंचता है. इस बात का उल्लेख भी इन्होंने अपने उपन्यास डिप्टी कमिश्नर की डायरी में किया है. उन्होंने अपने ट्रांसफर के लिए जब एप्लीकेशन लगाया था, तो उसमें उन्होंने लिखा था कि विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण शासकीय हित में काम ना कर पाने के फलस्वरूप ट्रांसफर हेतु अपने विषय में लिखा था.
उन्होंने बताया कि '' एक डिप्टी कमिश्नर की डायरी नामक उपन्यास किसी एक व्यक्ति को टारगेट करके नहीं लिखा गया है, बल्कि ऐसे कैरेक्टर हर सरकारी विभाग और दफ्तर में है. उन्हीं प्रवृत्ति को लेकर इस उपन्यास को लिखा गया. उपन्यास में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि ईमानदार और शरीफ जिनका जुनून पागलों की तरह होता है. ऐसे अधिकारी सरकारी विभागों में नहीं के बराबर मिलेंगे या फिर ऐसे अधिकारियों सच्चाई और ईमानदारी की राह पर काम करने ही नहीं दिया जाता है.''