रायपुर: करवा चौथ को लेकर अब छत्तीसगढ़ में भी रौनक दिखने लगी है. कोरोना काल के बाद भी लोग बाजारों में खरीददारी करते नजर आ रहे हैं. करवा चौथ का व्रत पहले छत्तीसगढ़ में कम लोग ही मनाते थे. लेकिन अब टीवी सीरियल और दूसरे माध्यमों के जरिए छत्तीसगढ़ में भी करवा चौथ मनाने का प्रचलन अब बढ़ गया है. करवा चौथ को लेकर बाजारों में पूजा सामाग्री भी मिलने लगी है. करवा चौथ और दूसरे त्यौहार को लेकर लोगों ने ज्वेलर्स और कपड़ा दुकानों में अभी से खरीदारी शुरू कर दी है.
करवा चौथ व्रत को लेकर सराफा व्यापारी का कहना है कि इस व्रत को लेकर महिलाएं काफी उत्सुक हैं. महिलाएं सराफा दुकानों में गहने खरीद रही हैं. इसके अलावा कपड़ा दुकानों में भी महिलाओं की भीड़ देखी जा सकती है. 4 नवंबर बुधवार को करवा चौथ का व्रत किया जाएगा. सराफा व्यापारियों का कहना है कि करवा चौथ व्रत के बाद ही 14 नवंबर को दिवाली का पर्व आने वाला है. जिसकी वजह से बाजारों में कोरोना महामारी के बाद भी रौनक दिख रही है.
करवा चौथ के लिए बाजार तैयार
बाजारों से पूजन सामग्री खरीदने वालों की भीड़ बाजार से गायब है. करवा चौथ के व्रत में चंदन, शहद, अगरबत्ती, फूल, कच्चा दूध, शक्कर, घी, दही, मिठाई, गंगाजल, कुमकुम, चावल, सिंदूर, मेहंदी, बिंदी, चुनरी, मिट्टी का करवा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी इत्यादि सामान बाजार में उपलब्ध है.
करवा चौथ पूजन का समय
पंडित अरुणेश शर्मा ने बताया कि करवा चौथ का व्रत कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस व्रत में शिव परिवार सहित चंद्र देवता की पूजा की जाती है. करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाओं के लिए काफी खास होता है. इस दिन का महिलाएं बेसब्री से इंतजार करती हैं. इस व्रत को रखने के पीछे महिलाओं का मकसद पति की लंबी उम्र की कामना होती है. करवा चौथ के इस व्रत को चंद्रोदय के बाद तोड़ा जाता है. मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ती होती है. करवा चौथ के व्रत के लिए पूजा का मुहूर्त शाम 5 बजकर 30 मिनट से शाम 7 बजे तक रहेगा. इसके बाद रात 8 बजकर 11 मिनट में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद महिलाएं करवा चौथ का यह व्रत तोड़ती हैं.
करवा चौथ व्रत के नियम
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है और चंद्रमा निकलने के बाद खत्म होता है. सुहागन महिलाएं चांद को अर्ध्य देने के बाद छन्नी में दीया रखकर चंद्रमा की पूजा करती हैं और फिर इसी छलनी से पति को देखती हैं. इसके बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना दिनभर का निर्जला व्रत तोड़ती हैं.
क्यों होती है चंद्रमा का पूजा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूती प्रदान करता है. चंद्रमा को लंबी उम्र, सुख और शांति का कारक माना गया है. इनकी पूजा से वैवाहीक जीवन खुशहाल बना रहता है.
करवा चौथ व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी करवा नाम की एक बेटी थी. एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के परिवार में व्रत रखा गया. रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उसे भी भोजन करने के लिए कहा. लेकिन उसने मना कर दिया. उसने कहा कि वह चांद को अर्ध्य देकर ही भोजन करेगी. सुबह से भूखी प्यासी बहन की हालत भाइयों से देखी नहीं जा रही थी. इस कारण सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ पर एक दीप प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला व्रत तोड़ लो. चांद निकल आया बहन.
करवा अपने भाई की चतुराई को समझ नहीं पाई और उसने खाने का निवाला मुंह में रख लिया. जैसे ही उसने निवाला खाया उसके पति की मृत्यु की सूचना मिली. दुख के कारण वह अपने पति के शव को लेकर 1 साल तक बैठी रही. शव के ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही. अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि विधान से करवा चौथ का व्रत किया. जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो उठा. तभी से हर सुहागन महिला करवा चौथ का व्रत पूरे नियम के साथ रखती आ रही हैं.