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अच्छी पहल: जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों को मिलेगा 'न्याय'

बस्तर रेंज के 7 जिले कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और राजनांदगांव में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के खिलाफ दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है. जिससे जेलों में लंबे समय से बंद आदिवासियों को रिहा किया जा सकता है.

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Published : May 17, 2019, 3:09 PM IST

Updated : May 17, 2019, 3:45 PM IST

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में अनुसूचित जाति-जनजाति के खिलाफ वर्षों से दर्ज प्रकरण को लेकर सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है. छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल मामलों में सालों से बिना ट्रायल के जेलों में बंद आदिवासियों के मामले की समीक्षा के लिए गठित कमेटी ने अब काम शुरू कर दिया है. सरकार ने इसके लिए एक रिडायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई है.

छत्तीसगढ़ के जेलों में बंद निर्दोष आदिवासी होंगे रिहा!

22 जून को होगी अगली बैठक
छत्तीसगढ़ सरकार ने उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में गठित कमेटी की बैठकों का दौर शुरू हो गया है. साथ ही तमाम तरह के प्रकरणों को लेकर कमेटी के सदस्य अब एक प्रकरण की समीक्षा कर रिपोर्ट बना रहे हैं. कमेटी में रिटायर्ड जज के अलावा पुलिस और नक्सल विशेषज्ञ भी शामिल हैं. बस्तर रेंज के 7 जिले कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और राजनांदगांव में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के खिलाफ दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है. समिति की अगली बैठक 22 जून को होगी.

निर्दोष आदिवासी जेल में बंद!
आदिवासियों के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि आदिवासियों को जेल में इसलिए भी रहना पड़ता है कि क्योंकि उनकी मदद के लिए कोई नहीं आ पाता. सालों से आदिवासियों के लिए काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि इस तरह से आदिवासियों की रिहाई से प्रदेश ही नहीं देश इसका लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि जब कभी कोई बड़ी घटना होती है, पुलिस 1 आरोपी की जगह 50 लोगों को जेल में डाल देती है. इनमें से ज्यादातर आदिवासी ऐसे हैं जिनको हिंदी भी नहीं आती है, जो कभी शहर भी नहीं आए हैं उनको यह भी नहीं पता कि वकील से किस तरह से बात करना है. ऐसे में बहुत सारे ऐसे निर्दोष लोग जेलों में बंद हैं, जिनको वहां नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार अगर इनके रिहाई के लिए कदम उठा रही है तो यह स्वागत योग्य कदम है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में अनुसूचित जाति-जनजाति के खिलाफ वर्षों से दर्ज प्रकरण को लेकर सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है. छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल मामलों में सालों से बिना ट्रायल के जेलों में बंद आदिवासियों के मामले की समीक्षा के लिए गठित कमेटी ने अब काम शुरू कर दिया है. सरकार ने इसके लिए एक रिडायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाई है.

छत्तीसगढ़ के जेलों में बंद निर्दोष आदिवासी होंगे रिहा!

22 जून को होगी अगली बैठक
छत्तीसगढ़ सरकार ने उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में गठित कमेटी की बैठकों का दौर शुरू हो गया है. साथ ही तमाम तरह के प्रकरणों को लेकर कमेटी के सदस्य अब एक प्रकरण की समीक्षा कर रिपोर्ट बना रहे हैं. कमेटी में रिटायर्ड जज के अलावा पुलिस और नक्सल विशेषज्ञ भी शामिल हैं. बस्तर रेंज के 7 जिले कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और राजनांदगांव में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के खिलाफ दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है. समिति की अगली बैठक 22 जून को होगी.

निर्दोष आदिवासी जेल में बंद!
आदिवासियों के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि आदिवासियों को जेल में इसलिए भी रहना पड़ता है कि क्योंकि उनकी मदद के लिए कोई नहीं आ पाता. सालों से आदिवासियों के लिए काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि इस तरह से आदिवासियों की रिहाई से प्रदेश ही नहीं देश इसका लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि जब कभी कोई बड़ी घटना होती है, पुलिस 1 आरोपी की जगह 50 लोगों को जेल में डाल देती है. इनमें से ज्यादातर आदिवासी ऐसे हैं जिनको हिंदी भी नहीं आती है, जो कभी शहर भी नहीं आए हैं उनको यह भी नहीं पता कि वकील से किस तरह से बात करना है. ऐसे में बहुत सारे ऐसे निर्दोष लोग जेलों में बंद हैं, जिनको वहां नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार अगर इनके रिहाई के लिए कदम उठा रही है तो यह स्वागत योग्य कदम है.

Intro:1605 RPR GOVT ON AADIWASI RIHAI PROCESS SPECIAL

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में अनुसूचित जाति वर्ग के रहवासियों के खिलाफ सालों से दर्ज प्रकरणों को लेकर अब सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है। छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल मामलों में सालों से बिना ट्रायल के जिलों में पड़े आदिवासियों के मामले की समीक्षा के लिए गठित कमेटी से अब काम शुरू कर दिया है। इसके बाद अब ऐसे आदिवासियों के लिए राहत की खबर है जो फर्जी मामलों में सालों से जेल में बंद है। इन आदिवासियों को सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी कमेटी के नेतृत्व में मंथन के बाद रिहाई पर मुहर लगाएगी।Body:वीओ

छत्तीसगढ़ के भोले-भाले आदिवासियों के लिए अब राहत की खबर है, जो सालों से ऐसे कई तरह के प्रकरणों में जेलों में बंद हैं जिनसे उनका नाता ही नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगो के विरुद्ध दर्ज प्रकरणों पर समीक्षा कर रही है। इसमें कई ऐसे आदिवासी सालों से जेल में है जो फर्जी मामलों में बंद है। छत्तीसगढ़ सरकार ने उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश ए.के. पटनायक की अध्यक्षता में गठित कमेटी की बैठकों का दौर शुरू कर दी है। साथ ही तमाम तरह के प्रकरणों को लेकर इस कमेटी के सदस्य अब एक प्रकरण की समीक्षा कर रिपोर्ट बना रही हैं। इस कमेटी में ना केवल रिटायर्ड न्यायाधीश बल्कि पुलिस और नक्सल विशेषज्ञ भी शामिल है। बैठक में बस्तर रेंज के 7 जिलों कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और राजनांदगांव जिले में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के विरुद्ध दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है। कमेटी से जुड़े वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की भी माने तो इसमें तमाम तरह के प्रकरणों की अलग-अलग समीक्षा की जा रही है। किस स्थिति में यह प्रकरण बने हैं और इसमें किन लोगों को सजा भी दी गई है या नहीं। अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के विरुद्ध दर्ज प्रकरणों में भारतीय दंड विधान की धाराओं के साथ ही स्थानीय विशेष अधिनियम के तहत भी समीक्षा की जा रही है। सभी प्रकरणों के अवलोकन और विचार-विमर्श के बाद समिति की ओर से अलग अलग प्रकरणों के गुण- दोष के आधार पर जल्द ही रिपोर्ट बनाई जा रही है. समिति की अगली बैठक 22 जून को होगी. इस समिति में यह बात ध्यान रखा जा रहा है कि न्यायोचित कार्रवाई समयबद्ध कार्ययोजना के साथ जल्द से जल्द किया जा सके.

बाइट पी. सुंदरराज डीआईजी, नक्सल

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प्रदेश के दुरंचल इलाकों में रह रहे आदिवासियों को जो वर्षों से जेल में बंद है और बाद में कई तरह से निर्दोष साबित हो रहे हैं। उनके लिए यह राहत की खबर है।
आदिवासियों के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों का भी मानना है कि भोले आदिवासियों को जेल में इसलिए भी रहना पड़ता है कि क्योंकि उनकी मदद के लिए कोई नहीं आ पाता है। सालों से आदिवासियों के लिए काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि इस तरह से आदिवासियों की रिहाई से ना केवल प्रदेश को बल्कि पूरे देश को इसका लाभ मिलेगा। सभी को मालूम है कि जब कभी कोई बड़ी घटना होती है तो पुलिस 1 का नाम लेकर 50 लोगों को जेल में डाल देती है। इनमें से ज्यादातर आदिवासी ऐसे हैं जिनको हिंदी भी नहीं आती है, जो कभी शहर भी नहीं आए हैं उनको यह भी नहीं पता कि वकील से किस तरह से बात करना है तो ऐसे में बहुत सारे ऐसे निर्दोष लोग जेलों में बंद हैं जिनको वहां नहीं होना चाहिए। सरकार अगर इनके रिहाई के लिए कदम उठा रही है तो वह बेहद स्वागत योग्य कदम है। पिछली सरकार ने कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के बाद 2012 में गठित निर्मला बुच कमेटी तो बना दी लेकिन इसके लिए कोई पहल नहीं की। हमें उम्मीद है कि नई सरकार इस मामले को बेहद गंभीरता से लेगी।

बाइट शुभ्रांशु चौधरी, शांति प्रक्रिया के संयोजक

दरअसल छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के पहले कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि प्रदेश के नक्सल इलाकों में जेल में बंद आदिवासियों के प्रकरणों की समीक्षा की जाएगी और जो वजह से सालों से जेल में बंद आदिवासियों को जो बिना कारण से सजा पा रहे हैं उन्हें न्याय दिया जाएगा. अब सरकार बनने के बाद पहली बार इस तरह की बैठक कर प्रदेश के आदिवासियों को राहत देने के लिए सरकार ने पहल उठाया है और बैठकों के बाद अब तमाम प्रकरणों पर समीक्षा का दौर भी शुरू हो चुका है।

पीटीसी

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुरConclusion:
Last Updated : May 17, 2019, 3:45 PM IST
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