रायपुर/हैदराबाद : भारतीय सेना देश के करोड़ों देशवासियों के गर्व का प्रतीक है. इतिहास में समय समय पर दुश्मन देश से रक्षा के लिए देश के हजारों सैनिकों ने अपना बलिदान दिया है. भारत पाकिस्तान युद्ध से लेकर बांग्लादेश की आजादी और श्रीलंका में शांति स्थापित करने से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की Peace Keeping force में भारतीय सैनिकों ने हमेशा ही साहस और त्याग का परिचय दिया है. देश की सेना के शौर्य और बलिदान के प्रति सम्मान प्रकट करने और देश के नागरिकों में भारतीय सेना के वीर जवानों के उच्चतम त्याग और बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट करने के लिए हर साल थल सेना दिवस (Indian Army Day) मनाया जाता है.
कब मनाया जाता है आर्मी दिवस : भारतीय सेना के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए Indian Army Day 15 जनवरी को मनाया जाता है. थल सेना दिवस के अवसर पर देश के कई भागों में भारतीय सेना के साहस और बलिदान के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि भी दी जाती है. Importance of Indian Army Day
Indian Army Day का इतिहास : Indian Army Day हर साल 15 जनवरी को मनाया जाता है. भारतीय थल सेना दिवस 15 जनवरी को मनाने के पीछे भी रोचक इतिहास है. दरअसल औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय सैनिकों को सेना में उच्च पदों से वंचित रखा जाता था. ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेना के उच्च अधिकारी पदों पर सिर्फ अंग्रेज अधिकारियों को ही नियुक्त किया जाता था. History of indian army day ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद साल 1949 में पहली बार कोई भारतीय, भारतीय सेना के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुआ. भारत की स्वतंत्रता के बाद पहली बार 15 जनवरी 1949 को भारतीय लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा को भारतीय सेना के अध्यक्ष पद की कमान दी गई थी. इससे पहले इस पद पर ब्रिटिश कमांडर इन चीफ जनरल फ्रांसिस बुचर तैनात थे. लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा भारतीय सेना के प्रथम भारतीय नागरिक थे, जो अध्यक्ष पद पर तैनात हुए थे. इस ऐतिहासिक दिन को याद करने के लिए हर साल 15 जनवरी को Indian Army Day मनाया जाता है.
ये भी पढ़ें- जानिए क्या है पैंगोंग और 8 फिंगर्स का विवाद
कौन थे केएम करिअप्पा :भारतीय सेना के प्रथम भारतीय अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा (KM Cariappa) का जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक राज्य के कुर्ग प्रांत में हुआ था. इन्हें बचपन में चिम्मा के नाम से भी जाना जाता था. शुरु से ही सेना में जाने की रुचि रखने वाले केएम करिअप्पा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज के दिनों में सेना में भर्ती के लिए आवेदन किया, जहां उनका चयन हो गया. वर्ष 1920 में सेना में अस्थायी और साल 1922 में स्थायी कमीशन प्राप्त करने के बाद वे नियमित रूप से अपनी सेवाएं देने लगे. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और अपनी प्रतिभा को साबित किया.