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SPECIAL: डोंगरगांव के भैरव बाबा मंदिर की महिमा निराली, यहां पूरी होती है सभी मनोकामना

सावन के तीसरे सोमवार के मौके पर आज ETV भारत आपको डोंगरगांव के भैरव बाबा मंदिर के दर्शन काराएगा. यहां शिव और माता पार्वती के सती रूप के अलौकिक दर्शन होते हैं. जिसके दर्शन करने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

pateshwar temple
बाबा पाटेश्वर मंदिर
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Published : Jul 20, 2020, 10:47 PM IST

Updated : Jul 21, 2020, 11:32 AM IST

राजनांदगांव\डोंगरगांव: सावन का आज तीसरा सोमवार है. भगवान भोलानाथ के प्रिय महीने सावन में आज ETV भारत आपको प्रकृति की गोद में बसे शिव मंदिर के दर्शन कराएगा. पहाड़ों पर बसे इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती के सती रूप के अलौकिक दर्शन होते हैं. सावन में इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

डोंगरगांव के भैरव बाबा मंदिर की महिमा निराली

मां दंतेश्वरी मंदिर से 400 मीटर की दूरी पर भैरव बाबा का मंदिर दिखाई पड़ता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चलने की जरूरत नहीं है. मंदिर तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों और वन विभाग ने कंक्रीट की सीढ़ी का निर्माण कराया है. पहाड़ियों पर बसे इस मंदिर में कई तरह के औषधीय पेड़ और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जो कहीं और नहीं मिलती हैं. यह पहाड़ी खुज्जी वनमंडल परिक्षेत्र के मुंजाल गांव के अंतर्गत आता है. भैरव बाबा के मंदिर पहुंचने के कुछ ही दूर पहले बरगद और पीपल का वृक्ष एक साथ लगा हुआ है, जो आपस में गले मिलते हुए दिखाई देते हैं, ऐसा आमतौर पर देखा नहीं जाता.

पढ़ें: SPECIAL: बैलगाड़ी से बिलासपुर पहुंचे थे अष्टमुखी शिव, 100 लोगों ने मिलकर उठाई थी प्रतिमा

दुर्लभ वृक्षों की भरमार

स्थानीय ग्रामीणों बताते हैं कि इस रास्ते में कई तरह की दुर्लभ जड़ी-बूटियां तो हैं ही, इसके साथ ही कुछ ऐसे पेड़-पौधे भी हैं, जो बहुत कम पाए जाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर के पास लगे पलाश के पेड़ पर छत्तीसगढ़ का सबसे पहला पलाश का फूल खिलता है. इसके साथ ही मंदिर में कई ऐसे पौधे भी हैं, जो हमेशा जोड़े में दिखते हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ में शिव-पार्वती के रूप में पूजा जाता है, जो दो त्रिकोण पत्ती या कंद के रूप में होते हैं, जिसे बनराकस के पौधे के नाम से जाना जाता है. इस पौधे को प्राचीन समय में टीबी और कैंसर के इलाज के लिए उपयोग किया जाता रहा है. इसके अलावा भैरव बाबा धाम के पहुंच मार्ग में सीढ़ी के रास्ते कुछ ऊपर चढ़ने पर दाहिनी ओर वनों की रानी कहलाने वाला कुल्लू अमेरिकन मूल का वृक्ष भी मौजूद है, जो अलग ही दिखाई देता है. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर में अनंत फूल की दुर्लभ प्रजाति का पौधा है, जिसका उपयोग मंगल ग्रह की शांति के लिए किया जाता है. वहीं जंगली प्याज का कंद भी मौजूद है, जिसका गुण बेहद रहस्यमयी और गुणकारी है.

पांच गांव के ग्रामीण करते हैं पहाड़ की देख-रेख

बांध और पहाड़ी के मनमोहक आश्रय में यह देव स्थान मन को भक्ति भाव से ओत-प्रोत कर देता है. जैसे-जैसे भैरव बाबा के धाम की ओर बढ़ते हैं, जिज्ञासा और प्रकृति की अनुपम छटा मन को आनंदित करती है. मान्यता है कि भैरव पहाड़ी पर प्राचीन शिवलिंग स्थापित है और पुराने मंदिर का अवशेष आज भी विद्यमान है. मंदिर से जुड़े सदस्य सहित स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार इस पहाड़ पर प्राचीन मंदिर और एक बाबा का निवास स्थान है. उसके संरक्षण और संवर्धन में पांच गांव के ग्रामीण लगातार लगे रहते हैं. वे बताते हैं कि पहाड़ी पर कई साल पहले एक सिद्ध भैरव बाबा यहां आए थे और उन्हीं के नाम पर पहाड़ी का नामकरण किया गया है. बताया जाता है कि बाबा भैरव यहां भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते थे.

पढ़ें: SPECIAL: विकराल बाढ़ में भी नहीं डूबता नाथल दाई का मंदिर, चरण छूकर वापस नीचे चला जाता है पानी

ऐसी मान्यता है कि मां दंतेश्वरी अपने वाहन पर सवार होकर अपने निवास स्थान से भैरव पहाड़ी पर भगवान महादेव से मिलने के लिए जाती हैं. इस पहाड़ी पर तोता के लिए एक विषेश स्थान निश्चित है जहां सैकड़ों की संख्या में तोता दिखाई देता है.

पर्यटन की अपार संभावनाएं

भैरव बाबा पहाड़ी में यहां दूर-दूर से लोग भगवान भोलेनाथ के दर्शन और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते हैं. यहां मौजूद क्रांति बसु वन समिति अध्यक्ष और लोक रंजनी के संचालक एसएल खोब्रागढ़े प्राचार्य दाऊटोला ने बताया कि वे हमेशा यहां दर्शन के लिए आते हैं. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि पहाड़ी के उपर बड़ा मैदानी इलाका है. गार्डन और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. इसके लिए जनप्रतिनिधियों को भी जानकारी दी गई है. पहाड़ के साथ-साथ झरना और दंतेश्वरी मंदिर तक पहाड़ी के पथरीले रास्ते से पहुंचा जा सकता है. हालांकि वन विभाग द्वारा अभी-अभी इस इलाके में वृक्षारोपण किया गया है. वहीं पानी के लिए तालाब की खुदाई भी कराई गई है. पहाड़ के उपर का दृश्य बहुत ही मनोरम है. यह पूरा क्षेत्र औषधीय जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है.

राजनांदगांव\डोंगरगांव: सावन का आज तीसरा सोमवार है. भगवान भोलानाथ के प्रिय महीने सावन में आज ETV भारत आपको प्रकृति की गोद में बसे शिव मंदिर के दर्शन कराएगा. पहाड़ों पर बसे इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती के सती रूप के अलौकिक दर्शन होते हैं. सावन में इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

डोंगरगांव के भैरव बाबा मंदिर की महिमा निराली

मां दंतेश्वरी मंदिर से 400 मीटर की दूरी पर भैरव बाबा का मंदिर दिखाई पड़ता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चलने की जरूरत नहीं है. मंदिर तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों और वन विभाग ने कंक्रीट की सीढ़ी का निर्माण कराया है. पहाड़ियों पर बसे इस मंदिर में कई तरह के औषधीय पेड़ और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जो कहीं और नहीं मिलती हैं. यह पहाड़ी खुज्जी वनमंडल परिक्षेत्र के मुंजाल गांव के अंतर्गत आता है. भैरव बाबा के मंदिर पहुंचने के कुछ ही दूर पहले बरगद और पीपल का वृक्ष एक साथ लगा हुआ है, जो आपस में गले मिलते हुए दिखाई देते हैं, ऐसा आमतौर पर देखा नहीं जाता.

पढ़ें: SPECIAL: बैलगाड़ी से बिलासपुर पहुंचे थे अष्टमुखी शिव, 100 लोगों ने मिलकर उठाई थी प्रतिमा

दुर्लभ वृक्षों की भरमार

स्थानीय ग्रामीणों बताते हैं कि इस रास्ते में कई तरह की दुर्लभ जड़ी-बूटियां तो हैं ही, इसके साथ ही कुछ ऐसे पेड़-पौधे भी हैं, जो बहुत कम पाए जाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर के पास लगे पलाश के पेड़ पर छत्तीसगढ़ का सबसे पहला पलाश का फूल खिलता है. इसके साथ ही मंदिर में कई ऐसे पौधे भी हैं, जो हमेशा जोड़े में दिखते हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ में शिव-पार्वती के रूप में पूजा जाता है, जो दो त्रिकोण पत्ती या कंद के रूप में होते हैं, जिसे बनराकस के पौधे के नाम से जाना जाता है. इस पौधे को प्राचीन समय में टीबी और कैंसर के इलाज के लिए उपयोग किया जाता रहा है. इसके अलावा भैरव बाबा धाम के पहुंच मार्ग में सीढ़ी के रास्ते कुछ ऊपर चढ़ने पर दाहिनी ओर वनों की रानी कहलाने वाला कुल्लू अमेरिकन मूल का वृक्ष भी मौजूद है, जो अलग ही दिखाई देता है. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर में अनंत फूल की दुर्लभ प्रजाति का पौधा है, जिसका उपयोग मंगल ग्रह की शांति के लिए किया जाता है. वहीं जंगली प्याज का कंद भी मौजूद है, जिसका गुण बेहद रहस्यमयी और गुणकारी है.

पांच गांव के ग्रामीण करते हैं पहाड़ की देख-रेख

बांध और पहाड़ी के मनमोहक आश्रय में यह देव स्थान मन को भक्ति भाव से ओत-प्रोत कर देता है. जैसे-जैसे भैरव बाबा के धाम की ओर बढ़ते हैं, जिज्ञासा और प्रकृति की अनुपम छटा मन को आनंदित करती है. मान्यता है कि भैरव पहाड़ी पर प्राचीन शिवलिंग स्थापित है और पुराने मंदिर का अवशेष आज भी विद्यमान है. मंदिर से जुड़े सदस्य सहित स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार इस पहाड़ पर प्राचीन मंदिर और एक बाबा का निवास स्थान है. उसके संरक्षण और संवर्धन में पांच गांव के ग्रामीण लगातार लगे रहते हैं. वे बताते हैं कि पहाड़ी पर कई साल पहले एक सिद्ध भैरव बाबा यहां आए थे और उन्हीं के नाम पर पहाड़ी का नामकरण किया गया है. बताया जाता है कि बाबा भैरव यहां भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते थे.

पढ़ें: SPECIAL: विकराल बाढ़ में भी नहीं डूबता नाथल दाई का मंदिर, चरण छूकर वापस नीचे चला जाता है पानी

ऐसी मान्यता है कि मां दंतेश्वरी अपने वाहन पर सवार होकर अपने निवास स्थान से भैरव पहाड़ी पर भगवान महादेव से मिलने के लिए जाती हैं. इस पहाड़ी पर तोता के लिए एक विषेश स्थान निश्चित है जहां सैकड़ों की संख्या में तोता दिखाई देता है.

पर्यटन की अपार संभावनाएं

भैरव बाबा पहाड़ी में यहां दूर-दूर से लोग भगवान भोलेनाथ के दर्शन और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते हैं. यहां मौजूद क्रांति बसु वन समिति अध्यक्ष और लोक रंजनी के संचालक एसएल खोब्रागढ़े प्राचार्य दाऊटोला ने बताया कि वे हमेशा यहां दर्शन के लिए आते हैं. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं क्योंकि पहाड़ी के उपर बड़ा मैदानी इलाका है. गार्डन और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. इसके लिए जनप्रतिनिधियों को भी जानकारी दी गई है. पहाड़ के साथ-साथ झरना और दंतेश्वरी मंदिर तक पहाड़ी के पथरीले रास्ते से पहुंचा जा सकता है. हालांकि वन विभाग द्वारा अभी-अभी इस इलाके में वृक्षारोपण किया गया है. वहीं पानी के लिए तालाब की खुदाई भी कराई गई है. पहाड़ के उपर का दृश्य बहुत ही मनोरम है. यह पूरा क्षेत्र औषधीय जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है.

Last Updated : Jul 21, 2020, 11:32 AM IST
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