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लावारिसों की वारिस बनीं ये बेटियां, अज्ञात शवों का कर रहीं अंतिम संस्कार - girls

अंतिम संस्कार में महिलाओं या लड़कियों को शामिल होने की इजाजत नहीं मिलती, लेकिन रायपुर के ये बेटियां इस मिथक को तोड़ रही है.

लावारिस शवों का कर रहीं अंतिम संस्कार
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Published : Jul 22, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Jul 22, 2019, 4:23 PM IST

रायपुर: हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही है. लेकिन भारतीय समाज का एक संस्कार ऐसा है जिसमें शामिल होने की महिलाओं को अनुमति नहीं है. किसी की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में महिलाओं या लड़कियों को शामिल होने की इजाजत नहीं मिलती, लेकिन रायपुर की ये बेटियां इस मिथक को तोड़ रही हैं.

लावारिस शवों का कर रहीं अंतिम संस्कार

21 महिलाएं समुह में शामिल
रायपुर की रहने वाली डॉ निम्मी चौबे ने परिवार और आस-पास की महिलाओं के साथ मिल कर एक समूह बनाया है जो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं. इस समूह में करीब 21 महिलाएं हैं. निम्मी ने अपनी बहनों और भाभी के साथ मिलकर इस समूह की शुरुआत की. इसके बाद इसमें अन्य महिलाएं भी जुड़ीं.

चार बहनों ने मिलकर बनाया समूह
इस समूह में चार बहन की टोली है जो फंडिंग में मदद करती है. फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉक्टर निम्मी चौबे ने बताया कि कई बार सड़क हादसे या अन्य कारणों से मौत हो जाती है और शव का कोई वारिस नहीं मौजूद होता. पुलिस थानों से हम ऐसे शवों की जानकारी लेते हैं.

मां-बाप से मिली सीख
निम्मी बताती हैं अपने माता-पिता को अपनी प्रेरणा मानती हैं. उनका कहना है कि उन्हीं की दी सीख के कारण उन्होंने इस नेक काम की पहल की.

घरेलु महिलाएं भी शामिल
समूह के साथ काम करने वाली गृहणी प्रतिभा चौबे कहती हैं कि वे जब इस काम में आती है तो उनके पति या उनकी ननंद बच्चों को संभालती है.

रायपुर: हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही है. लेकिन भारतीय समाज का एक संस्कार ऐसा है जिसमें शामिल होने की महिलाओं को अनुमति नहीं है. किसी की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार में महिलाओं या लड़कियों को शामिल होने की इजाजत नहीं मिलती, लेकिन रायपुर की ये बेटियां इस मिथक को तोड़ रही हैं.

लावारिस शवों का कर रहीं अंतिम संस्कार

21 महिलाएं समुह में शामिल
रायपुर की रहने वाली डॉ निम्मी चौबे ने परिवार और आस-पास की महिलाओं के साथ मिल कर एक समूह बनाया है जो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं. इस समूह में करीब 21 महिलाएं हैं. निम्मी ने अपनी बहनों और भाभी के साथ मिलकर इस समूह की शुरुआत की. इसके बाद इसमें अन्य महिलाएं भी जुड़ीं.

चार बहनों ने मिलकर बनाया समूह
इस समूह में चार बहन की टोली है जो फंडिंग में मदद करती है. फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉक्टर निम्मी चौबे ने बताया कि कई बार सड़क हादसे या अन्य कारणों से मौत हो जाती है और शव का कोई वारिस नहीं मौजूद होता. पुलिस थानों से हम ऐसे शवों की जानकारी लेते हैं.

मां-बाप से मिली सीख
निम्मी बताती हैं अपने माता-पिता को अपनी प्रेरणा मानती हैं. उनका कहना है कि उन्हीं की दी सीख के कारण उन्होंने इस नेक काम की पहल की.

घरेलु महिलाएं भी शामिल
समूह के साथ काम करने वाली गृहणी प्रतिभा चौबे कहती हैं कि वे जब इस काम में आती है तो उनके पति या उनकी ननंद बच्चों को संभालती है.

Intro:रायपुर आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं लेकिन भारत में आज भी एक परंपरा ऐसी है जहां महिलाएं पुरुषों की बराबरी नहीं कर पाती जी हां हम बात कर रहे हैं अंतिम संस्कार की जब भी परिवार में कोई खत्म होता है तो लोग घर के पुरुषों की ओर देखते हैं कि अंतिम संस्कार की क्रिया वही संपन्न करेंगे लेकिन हम आपको मिल जाएंगे राजधानी रायपुर में रहने वाले ऐसी महिला समूह से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं


Body:राजधानी रायपुर में रहने वाला यह महिला समूह लावारिस शवों के अंतिम संस्कार करने की बड़ी बड़ी पहल शुरू कर रही है इस समूह में तकरीबन 21 महिलाएं हैं यह सभी महिलाएं एक दूसरे का सहयोग करती हैं और इस नेक काम को अंजाम देती हैं इस समूह में चार बहन की टोली है जो फंडिंग में मदद करती है अपने ही साथ अपने छोटे भाई की पत्नी को भी इस नेक काम में ले रही हैं फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉक्टर निम्मी चौबे ने बताया कि कई बार सड़क हादसे या अन्य कारणों से मौत हो जाती है और उनके शव का कोई बारिश नहीं रहता हम पता लगाते हैं पुलिस थानों से या जहां पोस्टमार्टम होता है वहां जाकर लोगों से पता करते हैं ताकि जिसकी बन पड़े हम मदद कर सकें


Conclusion:निम्मी चौबे बताती हैं कि उनके माता-पिता इस दुनिया में नहीं रहे उन्होंने हमें बचपन से शिक्षा दी है कि दूसरों की मदद करें अपने माता-पिता से ही सीख लेते हैं और वही हमारे प्रेरणा स्रोत हैं

समूह के साथ काम करने वाली प्रतिभा चौबे एक ग्रहणी है वे बताती हैं कि उनकी 1 महीने की बच्ची है वे जब इस काम में आती है तो उनके पति या उनकी ननद बच्चों को संभालती है उनका पूरा परिवार उनका साथ जरूर देता है इस काम में

वॉक थ्रू
Last Updated : Jul 22, 2019, 4:23 PM IST
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