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रायपुर : धूमधाम से निकाली गई गौरा-गौरी की बारात

प्रदेश में गौरा-गौरी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया, जिसके बाद ढोल-नगाड़ों के साथ भगवान को विसर्जित किया गया.

गौरा-गौरी की बारात
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Published : Oct 28, 2019, 5:37 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 7:23 PM IST

रायपुर : छत्‍तीसगढ़ी परम्‍पराओं में लोकगीतों का प्रमुख स्थान है. इन लोकगीतों में छत्तीसगढ़ी संस्‍कृति की झलक मिलती है. इसी तरह छत्तीसगढ़ी संस्कृति में दिवाली के दूसरे दिन गौरा-गौरी निकालने की परंपरा चली आ रही है. गोवर्धन पूजा के दिन शिव-पार्वती की बारात निकाली जाती है.

गौरा-गौरी की बारात

पढ़ें: सीएम हाउस में उमड़ा जन सैलाब, धूमधाम से मन रहा गौठान दिवस

दो दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पहले मिट्टी लाकर गौरा-गौरी की प्रतिमा तैयार की जाती है, जिसके बाद पूरे रीति-रिवाजों के साथ शिव-पार्वती का विवाह किया जाता है. दिवाली के दूसरे दिन भगवान की बारात निकालते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते लोकगीत गाया जाता है. जगह-जगह लोग गौरा-गौरी की पूजा करते हैं. गौरा-गौरी को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. बैंड-बाजे के साथ नाचते-गाते लोग गौरा-गौरी को विसर्जित करते हैं.

रायपुर : छत्‍तीसगढ़ी परम्‍पराओं में लोकगीतों का प्रमुख स्थान है. इन लोकगीतों में छत्तीसगढ़ी संस्‍कृति की झलक मिलती है. इसी तरह छत्तीसगढ़ी संस्कृति में दिवाली के दूसरे दिन गौरा-गौरी निकालने की परंपरा चली आ रही है. गोवर्धन पूजा के दिन शिव-पार्वती की बारात निकाली जाती है.

गौरा-गौरी की बारात

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दो दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पहले मिट्टी लाकर गौरा-गौरी की प्रतिमा तैयार की जाती है, जिसके बाद पूरे रीति-रिवाजों के साथ शिव-पार्वती का विवाह किया जाता है. दिवाली के दूसरे दिन भगवान की बारात निकालते हैं. इस दौरान पूरे रास्ते लोकगीत गाया जाता है. जगह-जगह लोग गौरा-गौरी की पूजा करते हैं. गौरा-गौरी को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. बैंड-बाजे के साथ नाचते-गाते लोग गौरा-गौरी को विसर्जित करते हैं.

Intro:छत्‍तीसगढ़ी परम्‍पराओं में लोकगीतों का प्रमुख स्थान है। इन लोकगीतों में छत्‍तीसगढ़ी संस्‍कृति की स्‍पष्‍ट झलक मिलती है। यहाँ के लोकगीतों की समृद्ध परम्‍परा में भोजली, गौरा, सुआ व जस गीत जैसे त्‍यौहारों में गाये जाने वाले लोकगीतों के साथ ही करमा, ददरिया, बाँस, पंडवानी जैसे सदाबहार लोकगीत शामिल हैं।

Body:दीपावली के पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत है इसमे शिव पार्वती का विवाह मनाया जाता है मिट्टी के गौरा -गौरी बनाकर उसके चारो ओर घुमकर सुवा गीत गाकर सुवा नृत्य करते हैं। कुछ जगहो पर मिट्टी के सुवा (तोते ) बनाकर यह गीत गाया जाता है यह दिपाली के कुछ दिन पूर्व शुऱू होकर दिवाली के दिन शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) के विवाह के साथ समाप्त होता है।

वहीं महिलाओं ने बताया कि दिवाली का त्यौहार में शंकर भगवान वह गौरी माता की पूजा से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है छत्तीसगढ़ में यह लोकगीत वह सुवा नृत्य की परंपरा काफी पुरानी है कि घर की महिलाएं वह बच्चे गौरा गौरी की मूर्ति बनाकर अपने आसपास के घरों में जाते हैं वह गौरा गौरी के इर्द-गिर्द घूम कर लोकगीत गाते हैं और अपने घर के साथ-साथ दूसरों के घर की भी सुख शांति की कामना करते हैं वही दूसरों से आशीर्वाद के रूप में चावल , दाल , आलू , बैगन इत्यादि की मांग करते हैं।

Conclusion:दिवाली के लगभग 1 हफ्ते पहले से गौरा गौरी की पूजा चालू हो जाती है वह कई जगह गौरा गौरी की प्रतिमा तोते के रूप में बनाई जाती है जिससे उसका नाम सुवा नृत्य भी कहा जाता है। गौरा गौरी की मिट्टी से प्रतिमा को बनाकर छत्तीसगढ़ी लोग अपने आसपास के घरों में जाकर गौरी गौरा के गोल गोल घूम कर लोग गीत गाते हैं वह उनकी पूजा करते हैं उसके बाद दिवाली के दिन गौरा (शंकर भगवान) की बारात निकालकर गौरा गौरी की शादी कराई जाती है। दीपावली के अगले दिन गौरा गौरी को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है जिसमें बड़ी धूमधाम से लोग विसर्जन के लिए निकलते हैं और बैंड बाजे के साथ गौरा गौरी को तालाब में या किसी नदी में विसर्जित किया जाता है।

बाइट :- कमल साहू (स्थानीय निवासी)

अभिषेक कुमार सिंह ईटीवी भारत रायपुर

Last Updated : Oct 28, 2019, 7:23 PM IST
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