रायपुर: आजादी के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा (Azadi ka amrit mahotshav ) रहा है. इस खास मौके पर ETV भारत आपको ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर के आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घनश्याम सिंह गुप्त (Freedom Fighter Ghanshyam Singh Gupta) की. घनश्याम सिंह गुप्त का जन्म 22 दिसंबर 1885 को दुर्ग जिले में हुआ था. बचपन से ही उनमें देश सेवा और समाज सेवा की भावना भरी पड़ी थी.
जेल की यातनाएं भी सही: घनश्याम सिंह गुप्त उग्रवादी विचारधारा के समर्थक थे. 1920 में महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, ब्रिटिश नीति के विरोध में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया था. उस दौरान देश के प्रत्येक वर्ग को इस आंदोलन में क्रियान्वयन के लिए आमंत्रित किया गया था. इस आन्दोलन में घनश्याम सिंह गुप्त ने हिस्सा लिया और 1921 में उन्हें जेल की यातनाएं सहनी पड़ी. (har ghar tiranga 2022 )
भाषण देने पर भी 6 माह की जेलः दुर्ग जिले के जंगल सत्याग्रह को लेकर घनश्याम गुप्ता ने जबलपुर के टाउन हॉल में एकत्रित जनता को संबोधित करते हुए भाषण दिया था, जिसमें पुलिस ने उन्हें भाषण के बाद 6 महीने की सजा दी थी और 50 रुपए जुर्माना उनपर ठोका गया. सन 1932 में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार और मद्य निषेध कार्यक्रम में घनश्याम सिंह गुप्त अपने सहयोगियों के साथ सम्मिलित हुए. नवंबर 1933 में महात्मा गांधी, जब छत्तीसगढ़ पहुंचे. उस दौरान महात्मा गांधी गुप्त के निवास पर ठहरे थे.
नमक कानून किया भंग: घनश्याम गुप्ता ने अंग्रेजों की खिलाफत करते हुए नमक बनाया था. नमक कानून भंग के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी से संपूर्ण छत्तीसगढ़ में सविनय अवज्ञा आंदोलन तीव्रता से फैलता चला गया. 17 जनवरी 1934 में दुर्ग में जिला हरिजन सेवा संघ की स्थापना की गई, जिसमें घनश्याम सिंह गुप्त अध्यक्ष चुने गए. 1936 में गुप्त के प्रयासों से खादी उद्योग की स्थापना हुई.
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राष्ट्रीय आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका: इस विषय में ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया "छत्तीसगढ़ के जितने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी है. वह सभी सेनानी राष्ट्रीय स्तर से कम नहीं थे. राष्ट्रीय स्तर पर जितने भी आंदोलन हुए, उन सबमें उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. असहयोग आंदोलन, बंग भंग आंदोलन, सविनय अवज्ञा, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को इतिहास में इतना सम्मान नहीं मिला. जिनमें से एक दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त थे. घनश्याम सिंह गुप्त ने वकालत की पढ़ाई की. उसके बाद उनका रुझान शिक्षा की ओर गया. आर्य समाज के श्रद्धानंद के संर्पक में वो आए. गुरुकुल कांगड़ी में उन्होंने अध्यापन का काम शुरू किया. जब वे छत्तीसगढ़ वापस लौट कर आए, तब महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में वे शामिल हो गए. वे छत्तीसगढ़ के बहुत बड़े गांधीवादी नेता थे और आर्य समाज से जुड़े हुए थे. सभी आंदोलनों में जुड़े रहने के बावजूद आर्य समाज की ओर से जो राष्ट्रीय आंदोलन हुए, उनमें उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई."
हैदराबाद के निजाम को पड़ा झुकना: हैदराबाद के निजाम ने हिंदुओं के त्यौहार और पर्व को मनाने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया था. उसके लिए आर्य समाज ने घनश्याम सिंह गुप्त के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आंदोलन निजाम के खिलाफ खड़े किया. निजाम को अपना वह नियम कानून बदलना पड़ा. इसी तरह सिंध में भी इस तरह का एक कानून आया था, जिसके खिलाफ आर्य समाज ने घनश्याम सिंह गुप्त के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन किया.
भारतीय संविधान तक पहुंची हिंदी: आजादी के पहले सन 1946 में संविधान सभा की पहली बैठक हुई थी. इस बैठक में ही कुछ सदस्यों ने प्रस्ताव रखा कि संविधान का हिंदी में भी अनुवाद हो जिससे आम लोगों की भी पहुंच आसान हो सके. 1947 में अनुवाद समिति की पहली बैठक हुई. उसके बाद दूसरी बैठक में घनश्याम सिंह गुप्त को इस समिति का अध्यक्ष चुना गया. 24 जनवरी 1950 को घनश्याम गुप्ता ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान की हिंदी प्रति सौंपी गई थी.
पहले विधानसभा अध्यक्ष बने: 1937 के चुनाव में मध्य प्रांत में कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ हुई. तब घनश्याम सिंह गुप्त विधानसभा अध्यक्ष बने. वो मध्य प्रदेश के पहले विधानसभा अध्यक्ष बने. 1952 तक इस पद पर रहकर कार्य करते रहे. अध्यक्ष के रूप में गुप्तजी ने हिंदी भाषा का समर्थन कर हिंदी का मार्ग प्रशस्त किया. 1938 में जब खरे मंत्रिमंडल ने त्याग पत्र दिया. उस समय विधानसभा के सदस्यों ने सरदार पटेल ने गुप्तजी से मुख्यमंत्री बनने की पेशकश की. लेकिन गुप्तजी ने मुख्यमंत्री बनने से इंकार कर दिया. आजादी के बाद भी वे लगातार नारी शिक्षा, सामाजिक चेतना के लिए काम करते रहे. धर्मांतरण को रोकने के लिए भी वे लगातार मुखर रहे. 13 जून 1976 को घनश्याम सिंह गुप्त का निधन हो गया.