रायपुर: छत्तीसगढ़ में भले ही अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को सामाजिक, आर्थिक रूप से कमजोर माना जाता हो.लेकिन प्रदेश की राजनीति में इनकी सियासी हैसियत हमेशा से बड़ी रही है. इसी वजह से कोई भी राजनीतिक पार्टी इस वर्ग को नजरअंदाज नहीं करती. प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियां इन्हें साधने के लिए अवसर की तलाश में रहती हैं. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर भी राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के विभिन्न स्थानों में अम्बेडकर के नाम पर राजनीतिक पार्टियां खुद को वर्ग विशेष का हितैषी बताने में पीछे नहीं रहीं है.
छत्तीसगढ़ की राजनीति में नया ट्रेंड: छत्तीसगढ़ में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ . प्रदेश की राजधानी रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में बीजेपी की प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने शिरकत की. पुरंदेश्वरी ने अपनी भारतीय जनता पार्टी को अम्बेडकर के सिद्धांतों को मानने वाली पार्टी बताया. पुरंदेश्वरी ने बीजेपी के नारे को भी अम्बेडकर के सिद्धांतों से प्रेरित बताया.कांग्रेस ने अम्बेडकर जयंती के अवसर पर रायपुर के पार्टी कार्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कांग्रेस के बड़े नेता भी राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के अन्य शहरों में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल हुए. कांग्रेसी नेताओं ने भी अपनी पार्टी को अम्बेडकर के दिखाए मार्गों पर चलने वाली एक मात्र राजनीतिक पार्टी बताया .
राजनीतिक दलों का महापुरुष प्रेम: राजनीति के जानकारों के मुताबिक राजनीतिक दलों के महापुरुषों से ज्यादा प्रेम के भी कई मायने रहते हैं. बाबा साहब अम्बेडकर ने जिस वर्ग के उत्थान के लिए ज्यादा प्रयास किया. उस अनुसूचित जाति वर्ग की संख्या प्रदेश में करीब 12 फीसदी है. इस वर्ग के लिए प्रदेश की 10 विधानसभा की सीटें आरक्षित हैं. आरक्षित सीटों के अलावा प्रदेश के मैदानी इलाकों की करीब 10 सामान्य विधानसभा की सीटों पर भी इनका खासा प्रभाव है . इन 10 सीटों पर भी अनुसूचित जाति के मतदाता किसी भी पार्टी के प्रत्याशी की,हार-जीत तय करने की स्थिति में हैं. ऐसी जातिगत समीकरण में भला कौन सी राजनीतिक पार्टी होगी, जो इस वर्ग को साधने में पीछे रहे .
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छत्तीसगढ़ में राजनीतिक दलों का सतनामी समाज पर रहा फोकस: छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार और जाने माने ,राजनीतिक विश्लेषक सुनील कुमार का कहना है कि , प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग में आने वाले सतनामी समाज की राजनीतिक दलों में हमेशा से साख रही है . उनके सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल रहना. प्रदेश के बड़े-बड़े नेताओं की मजबूरी रहती है या उनकी पसंद रहती है. सुनील कुमार का कहना है कि देश में जो नयापन देखने को मिल रहा है. वह सबसे ज्यादा पंजाब में देखने को मिला है. पंजाब में केजरीवाल की सरकार ने अपना मुख्यमंत्री बनाने के तुरंत बाद जिस तरह गांधी जी की तस्वीरें हटवा दी और भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें दीवालों ने लगवाई है. यह एक नया डेवलपमेंट है .
दलित राजनीति बिखराव से गुजरी: राजनीतिक विश्लेषक सुनील कुमार आगे कहते हैं कि, मायावती की वजह से लोग आज अंबेडकर के वारिस बन रहे हैं और कांग्रेस की वजह से लोग सरदार पटेल से लेकर सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह तक के वारिस बन रहे हैं . राजनीतिक प्रेक्षक सुनील कुमार का कहना है कि, भगत सिंह कभी कांग्रेसी नहीं रहे. लेकिन कांग्रेस का जो मकसद था वही भगत सिंह का भी मकसद था. वह था देश को आजाद करवाने का . सुनील कुमार का मानना है कि ,कांग्रेस ने भगत सिंह की इतनी अनदेखी की कि, उसको बीजेपी और आरएसएस ने हाईजैक कर लिया. जैसा कश्मीरी पंडितों के मुद्दे को लेकर किया गया.
मायावती पर अंबेडकर की अनदेखी का आरोप: राजनीतिक जानकार सुनील कुमार ने कहा कि , इसी तरीके से अंबेडकर की सबसे ज्यादा अनदेखी मायावती ने की. उत्तर प्रदेश में बसपा की जो दुर्गति हुई है , वह इसी का नतीजा है . देश मे बहुजन समाज पार्टी पिछड़ों की सबसे बड़ी पार्टी थी , लेकिन अभी उत्तर प्रदेश में बीएसपी का महज एक ही विधायक हैं . उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद देश के विभिन्न राजनीतिक दलों में एक नया उत्साह दिखाई दे रहा है, कि बसपा का छोड़ा हुआ शून्य कैसे भरा जाए और वर्ग विशेष को अपनी पार्टी से कैसे जोड़ा जाए.
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छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी का दखल : छत्तीसगढ़ में 2003 के बाद से चुनाव दर चुनाव बहुजन समाज पार्टी का मत प्रतिशत गिरता गया है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव 2003 में , बसपा ने राज्य की 90 में से 54 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इन 54 सीटों पर उसका मत प्रतिशत कुल 6.94 रहा था. 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने सभी 90 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा लेकिन पार्टी का मत प्रतिशत गिरकर 6.12 पर आ गया. इसके बाद 2013 में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति और बदतर हो गई . इस चुनाव में केवल 4.29 प्रतिशत मत ही बसपा के चुनाव चिन्ह पर पड़े. बहुजन समाज पार्टी ने 2003 में जहां 54 में से 2 सीटें जीती थीं तो वहीं 2008 में भी 90 में से 2 पर ही सफलता पार्टी को मिली. 2013 में तो बसपा के खाते में केवल एक सीट ही आई. वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में जेसीसीजे से गठबंधन के बावजूद बसपा को राज्य में महज 2 सीटें ही मिलीं. लेकिन बिलासपुर संभाग के जांजगीर सहित कई जिलों की 15 से ज्यादा सीटों पर अब भी बीएसपी का प्रभाव है