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SPECIAL: विधानसभा सत्र पर भूपेश सरकार और राजभवन का टकराव! बीजेपी ने पूछा किस विपदा में बुलाया जा रहा विशेष सत्र - Governor Anusuiya Uike

केंद्र सरकार के बनाए कृषि कानूनों को प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार लागू नहीं करना चाहती है. छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए नया कृषि कानून बनाना चाहती है. इसके लिए सरकार विशेष सत्र बुलाना चाहती है. विशेष सत्र को लेकर एक बार फिर प्रदेश सरकार और राजभवन के बीच टकराव की स्थिति बन गई है. इस पर सियासत भी शुरू हो गई है. पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी सरकार पर तंज कसा है. संविधान विशेषज्ञों ने भी इस टकराव पर चिंता जताई है.

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भूपेश सरकार और राजभवन का टकराव
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Published : Oct 21, 2020, 8:41 AM IST

रायपुर: पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी राजभवन और सरकार के बीच टकराव बढ़ता नजर आ रहा है. करीब 3 महीने पहले कुलपति की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल के अधिकार में कटौती से शुरू हुआ विवाद पहले राजभवन के सचिव की पदस्थापना तक पहुंचा और अब विशेष सत्र को लेकर एक बार फिर टकराव की स्थिति है. छत्तीसगढ़ सरकार और राजभवन के बीच का विवाद अब किसी से छिपा नहीं है. छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए भेजी गई फाइल को राजभवन ने लौटा दिया है, जिसके बाद विवाद खुलकर सामने आ गया है. राजभवन ने विधानसभा सत्र आहूत करने को लेकर राज्य सरकार से जानकारी मांगी है. CM भूपेश बघेल ने राज्यपाल पर टिप्पणी भी की है.

भूपेश सरकार और राजभवन का टकराव

राज्यपाल अनुसुइया उइके की ओर से विधानसभा सत्र बुलाए जाने को लेकर जवाब मांगे जाने के बाद राज्य सरकार ने फाइल राजभवन को दोबारा भेज दी है. राज्य सरकार की ओर से सवालों का जवाब भी दिया गया है. जिन सवालों के साथ राजभवन ने फाइल लौटा दी थी, उसके जवाब सरकार ने दिए हैं. छत्तीसगढ़ में राज्यपाल तो राज्य स्थापना के समय से ही रहे हैं, लेकिन अनुसुइया उइके राज्यपाल की परिपाटी से अलग होकर लगातार लोगों से तमाम मुद्दों पर मुखर होकर संपर्क में रही हैं.

अब इस टकराव पर राजनीति तेज हो गई है. छत्तीसगढ़ BJP के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भूपेश बघेल सरकार पर जोरदार हमला बोला है. उन्होंने पूछा है कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी है कि सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी ने राजभवन और राज्य सरकार के टकराव को लेकर आपत्ति जताई है. वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि राज्य में ऐसे कौन से आपातकाल के हालात पैदा हो गए, जो आनन-फानन में विधानसभा सत्र बुलाया जा रहा है. 58 दिन पहले ही विधानसभा सत्र बुलाया गया था. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को जानने का पूरा अधिकार है कि राज्य में ऐसी कौन सी आपात स्थिति हो गई है कि विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की जरूरत आ पड़ी है.

CM भूपेश बघेल ने राज्यपाल पर की टिप्पणी

विधानसभा सत्र को लेकर राजभवन से टकराव के मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि कोई भी बिल विधानसभा से पास होने के बाद राजभवन जाता है. सबसे पहली बात ये है कि पूर्ण बहुमत की सरकार को सत्र बुलाने से राज्यपाल नहीं रोक सकती हैं. इसके बाद भी अगर कोई जवाब-तलब होता है, तो सरकार की ओर से जवाब दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि राजभवन को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए. राज्यपाल ने कुछ जानकारी मांगी है, वह उन्हें दे दी जाएगी.

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार लागू नहीं करना चाहती है. ऐसे में किसानों के लिए कृषि से जुड़े नए कानून बनाने के लिए सरकार विशेष सत्र बुलाना चाहती है. ETV भारत ने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से भी इस मसले पर बात की है. राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव के हालात को लेकर संविधान विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है.

क्या कहा संविधान विशेषज्ञ ने

संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्यपाल और सरकार के बीच कभी भी विवाद के हालात नहीं बने हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति अलग है. ये राज्य के हित के लिए सही नहीं है. संविधान कहता है कि सरकार का प्रमुख विधानसभा, न्यायपालिका होती है. राज्यपाल को यह देखना होता है कि राज्य में संविधान के अनुरूप काम हो रहा है या नहीं. संविधान के अनुरूप विधानसभा सत्र बुलाने का अधिकार राजभवन को दिया गया है, वो महज औपचारिकता है. उन्होंने बताया कि भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि अगर राज्यपाल इस तरह से चुनी हुई सरकार को काम करने से रोकेंगे, तो वो राज्य के हित में नहीं होगा.

गैर भाजपा शासित राज्यों में टकराव के हालात

गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति नजर आ रही है. इनमें पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और केरल का नाम प्रमुख है. पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर विवाद की स्थिति बनी रहती है. प्रशासन के साथ ही राज्य सरकार के फैसलों को लेकर आए दिन विवाद के हालात बन जाते हैं. इसी तरह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार और राज्यपाल कोशियारी के बीच टकराव की बात सामने आती रही है. केरल में भी संशोधित नागरिकता कानून को लेकर राज्यपाल और केरल सरकार के बीच टकराव चरम सीमा पर पहुंच गया था.

राज्यपाल ने अधिकारी के हटाए जाने को लेकर जताई थी आपत्ति

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने राजभवन के सचिव आईएएस सोनमणि बोरा को हटाए जाने के बाद राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई थी. उन्होंने अपने सचिव को हटाए जाने को लेकर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम पत्र भी लिखा था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार की ओर से नियुक्त किए गए सचिव की नियुक्ति को लेकर भी आपत्ति की थी. अनुसुइया उइके ने कहा था कि इसके पहले राजभवन में सचिव स्तर की नियुक्ति के लिए राज्यपाल की स्वीकृति ली जाती रही है, लेकिन अब उनके बिना सहमति के ही अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई है.

गृह विभाग की बैठक

प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं और नक्सल हिंसा को लेकर राज्यपाल ने राज्य सरकार को कटघरे में लेते हुए गृह मंत्री और आला पुलिस अधिकारियों की बैठक भी राजभवन में बुलाई थी. हालांकि इस बैठक में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू कोरोना के चलते क्वॉरेंटाइन होने का हवाला देते हुए बैठक में शामिल नहीं हुए. जिसके बाद बैठक टाल दी गई, जबकि इसी दिन गृह मंत्री मुख्यमंत्री निवास में गृह विभाग की बैठक में शामिल हुए थे. इसे लेकर भी विवाद के हालात बने थे. बता दें कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने प्रदेश में लगातार हो रही नक्सली घटनाओं और अपराधों को रोकने के लिए राज्यपाल के हस्तक्षेप की मांग की थी.

राजभवन के दरवाजों को सबके लिए खोलने का प्रयास

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने छत्तीसगढ़ पहुंचने के साथ ही यह जानकारी ली थी कि यह वह राज्य है जिसकी 32% जनसंख्या आदिवासियों की है, आधे से अधिक भूभाग पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र यानी आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं. उन्होंने परंपरागत अवधारणा के विपरीत आम लोगों, आदिवासियों और दीन-दुखियों के लिए काम करने के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए. सबसे पहले छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की समस्या को जानने के लिए सर्वआदिवासी समाज के राजभवन आने पर उन्होंने राज्य की खासियत और यहां की समस्याओं की जानकारी ली. इसके बाद उन्होंने निर्देश दिया कि यदि कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके दरवाजे पर पहुंचता है, तो उनकी समस्या सुने बिना उन्हें ना जाने दें.

फील्ड में भी जाकर दिखाई सक्रियता

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने फील्ड में जाकर भी अपनी सक्रियता दिखाई है. जैसे ही उन्हें सुपेबेड़ा में किडनी के बीमारियों से ग्रसित इलाके की जानकारी मिली, उन्होंने उस जगह का दौरा करके लोगों से सीधे बात की. गरियाबंद के दूरस्थ इलाके सुपेबेड़ा में बीमारियों का सिलसिला नहीं रुक रहा था, तो उन्होंने सारे निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द कर स्वयं सुपेबेड़ा पहुंचकर ग्रामीणों से मिल बीमारी का हाल जाना और वहीं से आवश्यक निर्देश भी दिए. उनकी पहल पर स्वास्थ्य विभाग ने 24 करोड़ के कार्यों की घोषणा की जो कि 15 सालों से लंबित थी.

राज्य सरकार के खिलाफ भी खुल कर रही हैं मुखर

राज्यपाल अनुसुइया उइके तमाम मुद्दों और मसलों को लेकर हमेशा से ही सुर्खियों में रही हैं. छत्तीसगढ़ में तमाम विश्वविद्यालयों के नाम बदलने को लेकर उन्होंने आपत्ति जताई. राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल जब उनसे मिलने पहुंचा, तो उन्होंने सीधे तौर पर इस फैसले को लेकर कड़ा ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय शैक्षणिक संस्थान हैं और वहां से छात्रों के कई बैच भी निकल चुके होंगे, ऐसे में विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तन करना उस जगह की आस्था के साथ खिलवाड़ होगा. अगर नया नाम रखना है तो नई संस्थाओं का रखा जाए. साथ ही उन्होंने यूजीसी की ओर से आने वाले ग्रांट और विश्वविद्यालय संबंधी फैसलों में बदलाव को लेकर भी राज्य सरकार की मांग पर नियमों का हवाला दे दिया था. अब देखना ये होगा कि आखिर ये विवाद कहां जाकर थमता है. क्या भूपेश बघेल सरकार नए कानून बना सकेगी, क्या राजभवन से शुरू हुए टकराव खत्म होंगे.

रायपुर: पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी राजभवन और सरकार के बीच टकराव बढ़ता नजर आ रहा है. करीब 3 महीने पहले कुलपति की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल के अधिकार में कटौती से शुरू हुआ विवाद पहले राजभवन के सचिव की पदस्थापना तक पहुंचा और अब विशेष सत्र को लेकर एक बार फिर टकराव की स्थिति है. छत्तीसगढ़ सरकार और राजभवन के बीच का विवाद अब किसी से छिपा नहीं है. छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए भेजी गई फाइल को राजभवन ने लौटा दिया है, जिसके बाद विवाद खुलकर सामने आ गया है. राजभवन ने विधानसभा सत्र आहूत करने को लेकर राज्य सरकार से जानकारी मांगी है. CM भूपेश बघेल ने राज्यपाल पर टिप्पणी भी की है.

भूपेश सरकार और राजभवन का टकराव

राज्यपाल अनुसुइया उइके की ओर से विधानसभा सत्र बुलाए जाने को लेकर जवाब मांगे जाने के बाद राज्य सरकार ने फाइल राजभवन को दोबारा भेज दी है. राज्य सरकार की ओर से सवालों का जवाब भी दिया गया है. जिन सवालों के साथ राजभवन ने फाइल लौटा दी थी, उसके जवाब सरकार ने दिए हैं. छत्तीसगढ़ में राज्यपाल तो राज्य स्थापना के समय से ही रहे हैं, लेकिन अनुसुइया उइके राज्यपाल की परिपाटी से अलग होकर लगातार लोगों से तमाम मुद्दों पर मुखर होकर संपर्क में रही हैं.

अब इस टकराव पर राजनीति तेज हो गई है. छत्तीसगढ़ BJP के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भूपेश बघेल सरकार पर जोरदार हमला बोला है. उन्होंने पूछा है कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी है कि सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी ने राजभवन और राज्य सरकार के टकराव को लेकर आपत्ति जताई है. वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि राज्य में ऐसे कौन से आपातकाल के हालात पैदा हो गए, जो आनन-फानन में विधानसभा सत्र बुलाया जा रहा है. 58 दिन पहले ही विधानसभा सत्र बुलाया गया था. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को जानने का पूरा अधिकार है कि राज्य में ऐसी कौन सी आपात स्थिति हो गई है कि विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की जरूरत आ पड़ी है.

CM भूपेश बघेल ने राज्यपाल पर की टिप्पणी

विधानसभा सत्र को लेकर राजभवन से टकराव के मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि कोई भी बिल विधानसभा से पास होने के बाद राजभवन जाता है. सबसे पहली बात ये है कि पूर्ण बहुमत की सरकार को सत्र बुलाने से राज्यपाल नहीं रोक सकती हैं. इसके बाद भी अगर कोई जवाब-तलब होता है, तो सरकार की ओर से जवाब दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि राजभवन को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए. राज्यपाल ने कुछ जानकारी मांगी है, वह उन्हें दे दी जाएगी.

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार लागू नहीं करना चाहती है. ऐसे में किसानों के लिए कृषि से जुड़े नए कानून बनाने के लिए सरकार विशेष सत्र बुलाना चाहती है. ETV भारत ने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से भी इस मसले पर बात की है. राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव के हालात को लेकर संविधान विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है.

क्या कहा संविधान विशेषज्ञ ने

संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्यपाल और सरकार के बीच कभी भी विवाद के हालात नहीं बने हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति अलग है. ये राज्य के हित के लिए सही नहीं है. संविधान कहता है कि सरकार का प्रमुख विधानसभा, न्यायपालिका होती है. राज्यपाल को यह देखना होता है कि राज्य में संविधान के अनुरूप काम हो रहा है या नहीं. संविधान के अनुरूप विधानसभा सत्र बुलाने का अधिकार राजभवन को दिया गया है, वो महज औपचारिकता है. उन्होंने बताया कि भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि अगर राज्यपाल इस तरह से चुनी हुई सरकार को काम करने से रोकेंगे, तो वो राज्य के हित में नहीं होगा.

गैर भाजपा शासित राज्यों में टकराव के हालात

गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति नजर आ रही है. इनमें पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और केरल का नाम प्रमुख है. पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर विवाद की स्थिति बनी रहती है. प्रशासन के साथ ही राज्य सरकार के फैसलों को लेकर आए दिन विवाद के हालात बन जाते हैं. इसी तरह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार और राज्यपाल कोशियारी के बीच टकराव की बात सामने आती रही है. केरल में भी संशोधित नागरिकता कानून को लेकर राज्यपाल और केरल सरकार के बीच टकराव चरम सीमा पर पहुंच गया था.

राज्यपाल ने अधिकारी के हटाए जाने को लेकर जताई थी आपत्ति

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने राजभवन के सचिव आईएएस सोनमणि बोरा को हटाए जाने के बाद राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई थी. उन्होंने अपने सचिव को हटाए जाने को लेकर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम पत्र भी लिखा था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार की ओर से नियुक्त किए गए सचिव की नियुक्ति को लेकर भी आपत्ति की थी. अनुसुइया उइके ने कहा था कि इसके पहले राजभवन में सचिव स्तर की नियुक्ति के लिए राज्यपाल की स्वीकृति ली जाती रही है, लेकिन अब उनके बिना सहमति के ही अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई है.

गृह विभाग की बैठक

प्रदेश में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं और नक्सल हिंसा को लेकर राज्यपाल ने राज्य सरकार को कटघरे में लेते हुए गृह मंत्री और आला पुलिस अधिकारियों की बैठक भी राजभवन में बुलाई थी. हालांकि इस बैठक में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू कोरोना के चलते क्वॉरेंटाइन होने का हवाला देते हुए बैठक में शामिल नहीं हुए. जिसके बाद बैठक टाल दी गई, जबकि इसी दिन गृह मंत्री मुख्यमंत्री निवास में गृह विभाग की बैठक में शामिल हुए थे. इसे लेकर भी विवाद के हालात बने थे. बता दें कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने प्रदेश में लगातार हो रही नक्सली घटनाओं और अपराधों को रोकने के लिए राज्यपाल के हस्तक्षेप की मांग की थी.

राजभवन के दरवाजों को सबके लिए खोलने का प्रयास

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने छत्तीसगढ़ पहुंचने के साथ ही यह जानकारी ली थी कि यह वह राज्य है जिसकी 32% जनसंख्या आदिवासियों की है, आधे से अधिक भूभाग पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र यानी आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं. उन्होंने परंपरागत अवधारणा के विपरीत आम लोगों, आदिवासियों और दीन-दुखियों के लिए काम करने के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए. सबसे पहले छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की समस्या को जानने के लिए सर्वआदिवासी समाज के राजभवन आने पर उन्होंने राज्य की खासियत और यहां की समस्याओं की जानकारी ली. इसके बाद उन्होंने निर्देश दिया कि यदि कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके दरवाजे पर पहुंचता है, तो उनकी समस्या सुने बिना उन्हें ना जाने दें.

फील्ड में भी जाकर दिखाई सक्रियता

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने फील्ड में जाकर भी अपनी सक्रियता दिखाई है. जैसे ही उन्हें सुपेबेड़ा में किडनी के बीमारियों से ग्रसित इलाके की जानकारी मिली, उन्होंने उस जगह का दौरा करके लोगों से सीधे बात की. गरियाबंद के दूरस्थ इलाके सुपेबेड़ा में बीमारियों का सिलसिला नहीं रुक रहा था, तो उन्होंने सारे निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द कर स्वयं सुपेबेड़ा पहुंचकर ग्रामीणों से मिल बीमारी का हाल जाना और वहीं से आवश्यक निर्देश भी दिए. उनकी पहल पर स्वास्थ्य विभाग ने 24 करोड़ के कार्यों की घोषणा की जो कि 15 सालों से लंबित थी.

राज्य सरकार के खिलाफ भी खुल कर रही हैं मुखर

राज्यपाल अनुसुइया उइके तमाम मुद्दों और मसलों को लेकर हमेशा से ही सुर्खियों में रही हैं. छत्तीसगढ़ में तमाम विश्वविद्यालयों के नाम बदलने को लेकर उन्होंने आपत्ति जताई. राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल जब उनसे मिलने पहुंचा, तो उन्होंने सीधे तौर पर इस फैसले को लेकर कड़ा ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय शैक्षणिक संस्थान हैं और वहां से छात्रों के कई बैच भी निकल चुके होंगे, ऐसे में विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तन करना उस जगह की आस्था के साथ खिलवाड़ होगा. अगर नया नाम रखना है तो नई संस्थाओं का रखा जाए. साथ ही उन्होंने यूजीसी की ओर से आने वाले ग्रांट और विश्वविद्यालय संबंधी फैसलों में बदलाव को लेकर भी राज्य सरकार की मांग पर नियमों का हवाला दे दिया था. अब देखना ये होगा कि आखिर ये विवाद कहां जाकर थमता है. क्या भूपेश बघेल सरकार नए कानून बना सकेगी, क्या राजभवन से शुरू हुए टकराव खत्म होंगे.

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