रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों ने उम्मीदवारों की सूची जारी करना शुरू कर दिया है. टिकटों का बंटवारा शुरू होते ही 'परिवारवाद' के सुर छिड़ गए हैं. ये छत्तीसगढ़ में राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है. तभी तो बीजेपी ने इस बार 16 नए चेहरों को अबतक टिकट दिया है. हालांकि 21 उम्मीदवारों की लिस्ट में परिवारवाद की छाया दिखी है. अब कांग्रेस आगे क्या करेगी? क्या वो भी नए चेहरों को लाने की स्ट्रेटजी बनाएगी या फिर परिवारवाद को बढ़ावा देते हुए सरकार बनाने की कोशिश करेगी. फिलहाल जब पूरी टिकटें बंट जाएंगी, तभी तस्वीर साफ होगी.
परिवारवाद क्यों बना मुद्दा ?: सीएम भूपेश बघेल से परिवारवाद को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब आया, 'बीजेपी में ज्यादा परिवारवाद है. छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह का परिवार हो या फिर राजनाथ सिंह या फिर केन्द्रीय ग्रहमंत्री अमित शाह जी का, सभी ने अपने परिवार को आगे बढ़ाया है.' इसके अलावा भूपेश बघेल ने बस्तर में कश्यप परिवार का भी जिक्र किया. बहरहाल इस बयान के बाद से ये बहस छिड़ गई कि इस बार भी टिकट बंटवारे में परिवारवाद हावी रहेगा या फिर नहीं. साल 2000 में मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ एक नया राज्य बना. इसमें 90 विधानसभा सीट बनी. इनमें से करीब आधी यानी 40 सीटों पर परिवार और राजघरानों की राजनीति सक्रिय रही. पार्टियों के कार्यकर्ता बने तो लेकिन उनको आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला. इसके बारे में राजनीति के जानकार कहते हैं कि पार्टियों के शीर्ष नेताओं तक जमीनी कार्यकर्ताओं की पहुंच नहीं बन पाई. पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने भी कार्यकर्ताओं तक सीधे पहुंच बनाने की कोशिश नहीं की.
बीजेपी में किनका है बोलबाला ?: बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में 16 नए चेहरे हैं. ये पहली बार चुनाव लड़ेंगे.कांग्रेसियों का आरोप है कि बीजेपी ने पहली लिस्ट में ही परिवारवाद को बढ़ावा दे दिया है. खैरागढ़ सीट पर विक्रांत सिंह को टिकट दिया गया है, जो पूर्व सीएम और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रमन सिंह के रिश्तेदार हैं. सियासी जानकार बताते हैं कि भले ही अब तक कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं लेकिन बीजेपी भी परिवारवाद की राजनीति में पीछे नहीं रही है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का परिवार भाजपा की राजनीति में परिवारवाद का सबसे बड़ा उदाहरण है. डॉ रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह सांसद रहे हैं. उसके बाद बस्तर में भाजपा के कद्दावर नेता स्वर्गीय बलिराम कश्यप के छोटे बेटे केदार कश्यप बीजेपी सरकार में मंत्री रहे, तो बड़े बेटे दिनेश कश्यप बस्तर के सांसद रहे. बिलासपुर में बीजेपी के पितृ पुरूष माने जाने वाले लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्रवाल बीजेपी के बड़े नेता हैं. वे रमन सरकार में मंत्री भी रहे. बिंद्रानवागढ़ में बीजेपी के बलराम पुजारी विधायक थे, अब उनके बेटे डमरूधर पुजारी राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. हालांकि बीजेपी नेता कहते हैं कि परिवारवाद बीजेपी में नहीं बल्कि कांग्रेस में हावी है. बीजेपी के आरोपों पर कांग्रेस आजादी की लड़ाई का जिक्र कर बीजेपी पर हमला करती है. इस तरह कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी पर निशाना साधा है.
''कांग्रेस में परिवारवाद हावी है. बड़े नेता की संतान होने की वजह से लोग राजनीति में आ जाते हैं, जबकि उनकी खुद की कोई योग्यता नहीं होती.''- अमित चिमनानी, प्रवक्ता, बीजेपी
भाजपा अपनी नाकामी छुपाने के लिए परिवारवाद की बातें करती है. भाजपा के नेताओं को बताना चाहिए कि इस देश की आजादी की लड़ाई में उनके परिवार का कोई योगदान रहा है या नहीं? सिर्फ आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा.''- धनंजय ठाकुर, प्रवक्ता कांग्रेस
अभी कांग्रेस में किन परिवारों का है दबदबा: कांग्रेस में किन परिवारों का दखल पार्टी के जरिए राज्य में है? इसके जवाब में कई नाम सामने आते हैं. जानकार बताते हैं कि इनमें शुक्ल, वोरा, कर्मा, सिंहदेव,चौबे, महंत और जोगी परिवार के नाम आते हैं. शुक्ल परिवार से वर्तमान में अमितेश शुक्ला राजिम से विधायक हैं. वहीं मोतीलाल वोरा परिवार के बेटे अरुण वोरा दुर्ग शहर से विधायक हैं. सिंहदेव परिवार की बात की जाए तो वर्तमान में उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव हैं. चौबे परिवार से वर्तमान में रविंद्र चौबे साजा से विधायक हैं. वे भूपेश कैबिनेट में मंत्री भी हैं. बस्तर में अपनी साख रखने वाला महेंद्र कर्मा का परिवार है. इनकी पत्नी देवती कर्मा वर्तमान में दंतेवाड़ा विधायक हैं. वहीं महंत परिवार से चरणदास महंत खुद विधानसभा अध्यक्ष हैं. उनकी पत्नी ज्योत्सना चरणदास महंत कोरबा सांसद हैं. राजनीति के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस अकेले ही नहीं है, जो परिवारवाद का शिकार है.
''यह देखा गया है कि सालों से परिवार के सदस्य राजनीति में आते रहे हैं, खास तौर पर बड़े राजनेताओं के बेटे सभी राजनीतिक दल में देखने को मिलेंगे.''- अनिरुद्ध दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
जोगी कांग्रेस सबसे बड़ा उदाहरण: वहीं जोगी कांग्रेस भी सबसे बड़ा उदाहरण है. इस पार्टी का गठन ही परिवारवाद पर हुआ है. नाम से ही इसकी झलक मिलती है. छत्तीसगढ़ गठन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी परिवारवाद को बढ़ाने वाले रहे हैं. अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी विधायक हैं. बेटा अमित जोगी भी विधायक रहे. बहु रिचा जोगी भी राजनीति में सक्रिय हैं.
क्षेत्र के अनुसार परिवारों का दखल समझिए: राजनीति के जानकारों के मुताबिक अगर छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों को देखा जाए तो परिवारों की रणनीति अपने इलाके में पकड़ बनाकर रखने की होती है. परिवारों के बीच में भी कभी-कभी वर्चव की लड़ाई भी देखने को मिलती है. दुर्ग संभाग में वोरा परिवार अपनी पकड़ बनाकर रखना चाहता है तो दुर्ग में ही चंद्राकर परिवार भी यही इच्छा रखता है. यहां के बड़े चेहरे रहे वासुदेव चंद्राकर की पुत्री प्रतिमा चंद्राकर कांग्रेस की विधायक रहीं हैं. बालोद में कांग्रेस की राजनीति झुमुकलाल भेड़िया चलाते रहे.अब उनकी पत्नी, भतीजे परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. बात करें दक्षिण छत्तीसगढ़ यानी बस्तर की तो यहां के बड़े नेता महेंद्र कर्मा की मौत के बाद परिवार राजनीति में है.
तो वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल की झीरम घाटी नक्सली हमले में मौत के बाद उनके बेटे उमेश पटेल राजनीति में आए. वे वर्तमान में भूपेश सरकार में मंत्री भी हैं. यहां से वर्तमान कांग्रेस सरकार में मंत्री कवासी लखमा के बेटे हरीश भी राजनीति में हैं. मंत्री शिव कुमार डहरिया की पत्नी शकुन डहरिया को महिला कांग्रेस और अनुसूचित जाति विभाग का प्रभारी बनाया गया है. अमरजीत भगत जो भूपेश सरकार में मंत्री हैं, उनके बेटे आदित्य भगत भी सक्रिय राजनीति में हैं. वहीं पूर्व मंत्री एवं वर्तमान कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा के बेटे पंकज शर्मा भी राजनीति में सक्रिय हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जिन्होंने कुछ दिन पूर्व ही कांग्रेस से इस्तीफा दिया है, उनके भाई से लेकर पत्नी और बेटी तक राजनीति में सक्रिय रहे हैं. वहीं सरगुजा में सिंहदेव परिवार, कवर्धा में सिंह परिवार, रायपुर में शुक्ल परिवार और बिलासपुर में अग्रवाल परिवार प्रमुख हैं.
राजपरिवारों का दखल : आजादी के बाद रियासतें तो भारत में शामिल हो गईं लेकिन राजनीति में उनकी पीढ़ियों ने अपना प्रभाव बनाए रखा. छत्तीसगढ़ की भी रियासतों ने यही किया. अपने पावर को बनाए रखने के लिए राजनीति का सहारा लिया. इसकी वजह से राजघराने छत्तीसगढ़ की सियासत में कायम रहे. अब इनका प्रभाव कम होता जा रहा है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि जशपुर में दिलीप सिंह जूदेव के बाद युद्धवीर सिंह, रणविजय सिंह समेत पूरा परिवार भाजपा की राजनीति में उच्च पदों पर है. खैरागढ़ में देवव्रत सिंह सांसद और विधायक रहे. उनकी दादी पद्मावती देवी मंत्री रहीं. पिता रविंद्र बहादुर और मां रश्मि देवी भी विधायक रहीं.
डोंगरगढ़ रियासत के शिवेंद्र बहादुर सांसद थे. चाची गीतादेवी सिंह मंत्री रहीं. बसना के बीरेंद्र बहादुर सिंह सराईपाली से कांग्रेस विधायक रहे. उनके बेटे देवेंद्र बहादुर उनकी विरासत संभाल रहे हैं. अंबिकापुर में टीएस सिंहदेव की मां देवेंद्र कुमारी देवी मंत्री थीं. कवर्धा में योगेश्वर सिंह भी आते हैं. डौंडीलोहारा में रानी झमिता कंवर भाजपा की विधायक थीं. उनके बेटे लाल महेंद्र सिंह टेकाम और उनकी पत्नी नीलिमा टेकाम भी विधायक रहे. बस्तर राजपरिवार में प्रवीर चंद्र भंजदेव के बाद अब उनके नाती कमल चंद्र भंजदेव जगदलपुर सीट से भाजपा की टिकट के दावेदार हैं.