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Raipur : गर्मी के बाद भी कुम्हारों की स्थिति दयनीय, नहीं बिक रहे घड़े

गर्मी के दिनों में बाजार घड़ों से सज जाता है.लेकिन पहले की तुलना में अब घड़ों के खरीदार कम ही रह गए हैं. आधुनिकता की चादर ने घड़ों की महत्ता को ढंक दिया है.जो कुम्हार परिवार इन्हें बनाते हैं उनके सामने रोजी रोटी की समस्या भी खड़ी हो चुकी है.

pots in Raipur
मिट्टी के घड़ों का बाजार
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Published : Apr 24, 2023, 8:13 PM IST

Updated : Apr 25, 2023, 1:11 PM IST

घड़ों की बढ़ती कीमतों ने भी डाला असर

रायपुर : गर्मी की शुरुआत होते ही मिट्टी के घड़ों की मांग बढ़ जाती है.लेकिन अब घड़े का क्रेज कम होते जा रहा है.आजकल हर कोई वाटर कूलर और फ्रिज का इस्तेमाल कर रहा है.जिसका सबसे बड़ा असर कुम्हारों की रोजी रोटी पर पड़ा है.कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ नहीं सकते.इसलिए उनके पास मिट्टी के बर्तन और गर्मी के दिनों में घड़े बेचने के अलावा कमाई का दूसरा विकल्प नहीं है.हालात ये हैं कि अब कुम्हार परिवार अपने काम को जिंदा रखने के लिए कर्ज लेकर व्यवसाय कर रहे हैं.लेकिन इससे भी इनकी लागत नहीं निकल रही.

pots in Raipur
घड़ों की बढ़ती कीमतों ने भी डाला असर
घड़े का पानी क्यों है सेफ : गर्मी के दिनों में वाटर कूलर और फ्रिज की तुलना में मिट्टी के घड़े का पानी कई गुना शुद्ध और स्वाद में भी अच्छा होता है. मिट्टी का घड़ा एक निश्चित तापमान पर पानी को ठंडा रखता है.साथ ही साथ घड़े के पानी में मिनरल्स से भरपूर होता है.जिसके कारण कई तरह की बीमारियां हमें नहीं घेरती थी. लेकिन आजकल हम मिट्टी के घड़े से दूर हो रहे हैं. ये घड़े कुम्हारों की दुकानों में सजे हैं लेकिन, ग्राहकी नहीं है. जिसकी वजह से ये सिर्फ शोपीस के अलावा कुछ नहीं है.



क्या है कुम्हार परिवार और जानकारों की राय : कुम्हार परिवारों का कहना है कि "मिट्टी का सामान बनाने का काम खानदानी होने के साथ ही पुश्तैनी भी है. यही वजह है कि, इसी धंधे को करना उनकी मजबूरी है. हर साल गर्मी के दिनों में लोग मिट्टी का घड़ा, पानी पीने के लिए खरीदते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से चौक चौराहों पर सार्वजनिक प्याऊ भी बंद हो गए हैं. मौसम में बदलाव आने के कारण मिट्टी के घड़े की बिक्री भी काफी कम हो गई है.

वहीं स्थानीय जानकारों का कहना है कि ''छत्तीसगढ़ में ज्यादातर आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है. यहां के लोग मिट्टी से बने घड़े का इस्तेमाल गर्मी के दिनों में पीने के पानी के लिए करते हैं. शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में मिट्टी के घड़े की मांग कम हो गई है. मिट्टी के घड़ों की मांग इसलिए भी कम हो गई है, क्योंकि इसके दाम बढ़ने के साथ ही पहले जैसे मिट्टी के घड़े का निर्माण नहीं हो पा रहा है. इसे बनाने वाले कारीगर या कुम्हार अब नहीं रहे."

ये भी पढ़ें- भजन गायिका मैथिली ठाकुर को छत्तीसगढ़ भाया

मिट्टी के घड़ों का चलन हुआ कम : आधुनिकता के दौर में हर कोई खुद को मॉडर्न बनाना चाहता है. पानी को देसी तरीके से भी ठंडा रखा जा सकता है.लेकिन लोगों को लगता है कि मेहनत करें क्यों. फ्रिज और वाटर कूलर ने भले ही आज मार्केट में बड़ी जगह बना ली है.लेकिन आज भी घड़ों की सौंधी खुशबू वाले पानी के स्वाद का दूसरा विकल्प नहीं हो सकता.

घड़ों की बढ़ती कीमतों ने भी डाला असर

रायपुर : गर्मी की शुरुआत होते ही मिट्टी के घड़ों की मांग बढ़ जाती है.लेकिन अब घड़े का क्रेज कम होते जा रहा है.आजकल हर कोई वाटर कूलर और फ्रिज का इस्तेमाल कर रहा है.जिसका सबसे बड़ा असर कुम्हारों की रोजी रोटी पर पड़ा है.कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ नहीं सकते.इसलिए उनके पास मिट्टी के बर्तन और गर्मी के दिनों में घड़े बेचने के अलावा कमाई का दूसरा विकल्प नहीं है.हालात ये हैं कि अब कुम्हार परिवार अपने काम को जिंदा रखने के लिए कर्ज लेकर व्यवसाय कर रहे हैं.लेकिन इससे भी इनकी लागत नहीं निकल रही.

pots in Raipur
घड़ों की बढ़ती कीमतों ने भी डाला असर
घड़े का पानी क्यों है सेफ : गर्मी के दिनों में वाटर कूलर और फ्रिज की तुलना में मिट्टी के घड़े का पानी कई गुना शुद्ध और स्वाद में भी अच्छा होता है. मिट्टी का घड़ा एक निश्चित तापमान पर पानी को ठंडा रखता है.साथ ही साथ घड़े के पानी में मिनरल्स से भरपूर होता है.जिसके कारण कई तरह की बीमारियां हमें नहीं घेरती थी. लेकिन आजकल हम मिट्टी के घड़े से दूर हो रहे हैं. ये घड़े कुम्हारों की दुकानों में सजे हैं लेकिन, ग्राहकी नहीं है. जिसकी वजह से ये सिर्फ शोपीस के अलावा कुछ नहीं है.



क्या है कुम्हार परिवार और जानकारों की राय : कुम्हार परिवारों का कहना है कि "मिट्टी का सामान बनाने का काम खानदानी होने के साथ ही पुश्तैनी भी है. यही वजह है कि, इसी धंधे को करना उनकी मजबूरी है. हर साल गर्मी के दिनों में लोग मिट्टी का घड़ा, पानी पीने के लिए खरीदते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से चौक चौराहों पर सार्वजनिक प्याऊ भी बंद हो गए हैं. मौसम में बदलाव आने के कारण मिट्टी के घड़े की बिक्री भी काफी कम हो गई है.

वहीं स्थानीय जानकारों का कहना है कि ''छत्तीसगढ़ में ज्यादातर आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है. यहां के लोग मिट्टी से बने घड़े का इस्तेमाल गर्मी के दिनों में पीने के पानी के लिए करते हैं. शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में मिट्टी के घड़े की मांग कम हो गई है. मिट्टी के घड़ों की मांग इसलिए भी कम हो गई है, क्योंकि इसके दाम बढ़ने के साथ ही पहले जैसे मिट्टी के घड़े का निर्माण नहीं हो पा रहा है. इसे बनाने वाले कारीगर या कुम्हार अब नहीं रहे."

ये भी पढ़ें- भजन गायिका मैथिली ठाकुर को छत्तीसगढ़ भाया

मिट्टी के घड़ों का चलन हुआ कम : आधुनिकता के दौर में हर कोई खुद को मॉडर्न बनाना चाहता है. पानी को देसी तरीके से भी ठंडा रखा जा सकता है.लेकिन लोगों को लगता है कि मेहनत करें क्यों. फ्रिज और वाटर कूलर ने भले ही आज मार्केट में बड़ी जगह बना ली है.लेकिन आज भी घड़ों की सौंधी खुशबू वाले पानी के स्वाद का दूसरा विकल्प नहीं हो सकता.

Last Updated : Apr 25, 2023, 1:11 PM IST
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