रायपुर : गर्मी की शुरुआत होते ही मिट्टी के घड़ों की मांग बढ़ जाती है.लेकिन अब घड़े का क्रेज कम होते जा रहा है.आजकल हर कोई वाटर कूलर और फ्रिज का इस्तेमाल कर रहा है.जिसका सबसे बड़ा असर कुम्हारों की रोजी रोटी पर पड़ा है.कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ नहीं सकते.इसलिए उनके पास मिट्टी के बर्तन और गर्मी के दिनों में घड़े बेचने के अलावा कमाई का दूसरा विकल्प नहीं है.हालात ये हैं कि अब कुम्हार परिवार अपने काम को जिंदा रखने के लिए कर्ज लेकर व्यवसाय कर रहे हैं.लेकिन इससे भी इनकी लागत नहीं निकल रही.
क्या है कुम्हार परिवार और जानकारों की राय : कुम्हार परिवारों का कहना है कि "मिट्टी का सामान बनाने का काम खानदानी होने के साथ ही पुश्तैनी भी है. यही वजह है कि, इसी धंधे को करना उनकी मजबूरी है. हर साल गर्मी के दिनों में लोग मिट्टी का घड़ा, पानी पीने के लिए खरीदते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से चौक चौराहों पर सार्वजनिक प्याऊ भी बंद हो गए हैं. मौसम में बदलाव आने के कारण मिट्टी के घड़े की बिक्री भी काफी कम हो गई है.
वहीं स्थानीय जानकारों का कहना है कि ''छत्तीसगढ़ में ज्यादातर आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है. यहां के लोग मिट्टी से बने घड़े का इस्तेमाल गर्मी के दिनों में पीने के पानी के लिए करते हैं. शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में मिट्टी के घड़े की मांग कम हो गई है. मिट्टी के घड़ों की मांग इसलिए भी कम हो गई है, क्योंकि इसके दाम बढ़ने के साथ ही पहले जैसे मिट्टी के घड़े का निर्माण नहीं हो पा रहा है. इसे बनाने वाले कारीगर या कुम्हार अब नहीं रहे."
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मिट्टी के घड़ों का चलन हुआ कम : आधुनिकता के दौर में हर कोई खुद को मॉडर्न बनाना चाहता है. पानी को देसी तरीके से भी ठंडा रखा जा सकता है.लेकिन लोगों को लगता है कि मेहनत करें क्यों. फ्रिज और वाटर कूलर ने भले ही आज मार्केट में बड़ी जगह बना ली है.लेकिन आज भी घड़ों की सौंधी खुशबू वाले पानी के स्वाद का दूसरा विकल्प नहीं हो सकता.