रायपुर: वीडियो गेम पर बच्चों के साथ युवाओं का बहुत ज्यादा वक्त बिताना आज के समय में न केवल उनके माता-पिता के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. बल्कि इस पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (pm narendra modi) ने भी चिंता जताई है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया में एक पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने ऑनलाइन और डिजिटल गेम्स (Online and Digital Video Games) के खतरे को लेकर चिंता जताई है. पीएम मोदी ने कहा है कि अधिकांश गेस्स के कांसेप्ट या तो वॉयलेंस को प्रमोट करते हैं या मेंटल स्ट्रेस का कारण बनते हैं. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जितने भी ऑनलाइन या डिजिटल गेम्स मार्केट में हैं उनमें से अधिकतर का कांसेप्ट भारतीय नहीं है. ऑनलाइन गेम्स का बच्चों पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभाव के बारे में पीएम मोदी ने चिंता जताकर एक बार फिर इस मुद्दे को गर्मा दिया है. नए सिरे से मोबाइल गेस्स के चलते बच्चों के हिंसक होने और स्ट्रैस होने पर बहस छिड़ गई है.
ETV भारत ने की पड़ताल
ETV भारत ने इस मुद्दे पर बच्चों उनके पैरेंट्स और एक्सपर्ट से चर्चा की. हमने यह जानने की कोशिश की है कि, आखिर वीडियो गेम मानसिक रूप से बच्चों पर क्या असर डालते हैं. उनके विकल्प के तौर पर क्या प्रयास किया जा सकता है. बच्चों में लगातार ऑनलाइन और डिजिटल गेम्स खेलने की प्रवत्ति बढ़ती जा रही है. खासकर कोरोना काल में स्कूल बंद हैं. बच्चे घरों में कैद हैं. इस दौरान काफी समय वे मोबाइल और कम्प्यूटर में गेम्स खेलने में बिता रहे हैं. लगातार गेम खेलने से बच्चे न तो पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं और न ही कोई फिजिकल एक्टिविटी कर पा रहे हैं.
स्कूल बंद होने से गेम की पड़ी लत
बच्चों का कहना है कि कोरोना के चलते पिछले डेढ़ सालों से स्कूल बंद पड़े हैं. ऑनलाइन क्लास और घरों में कैद होने के कारण वे दूसरी एक्टिविटी से बिल्कुल दूर हैं. बच्चे मानते हैं कि वीडियो गेम्स में लड़ाई, झगड़ा, फायरिंग जैसे हिंसक स्टोरीज टास्क होते हैं. फिर भी उन्हें यह अच्छा लगता है, हालांकि बच्चे यह भी कहते हैं कि वे दिन में कुछ समय ही गेम खेलते हैं और बाकी समय पढ़ाई करते हैं.
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मोबाइल से खेल रहे हैं वीडियो गेम
पैरेंट्स की मानें तो ऑनलाइन और डिजिटल वीडियो गेम्स की वजह से बच्चे लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई की वजह से बच्चों को मोबाइल देना मजबूरी थी, लेकिन अब बच्चे उस मोबाइल का इस्तेमाल गेम खेलने में कर रहे हैं. इतना ही नहीं यह बच्चे हिंसक गेम को देखकर खुद भी हिंसक होते जा रहे हैं. उनका व्यवहार भी बदल रहा है. पैरेंट्स की मांग है कि सरकार सभी मोबाइल गेम्स को बंद करे, जिससे बच्चे इस आदत को छोड़ पढ़ाई पर ध्यान दें
वीडियो गेम खेलना एक बीमारी
मनोचिकित्सक भी बच्चों के गेम खेलने की आदत को एक बीमारी मान रहे हैं और इससे छुटकारा दिलाने के लिए कई तरह के उपाय सुझा रहे हैं. मनोचिकित्सक डॉक्टर जेसी अजवानी बताते हैं कि आजकल बच्चे ज्यादातर ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं. उसमें हिंसक चीजें दिखाई जाती हैं, जिस कारण से उनके मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
पैरेंट्स नहीं दे रहे बच्चों पर ध्यान
डॉक्टर अजवानी की मानें तो बच्चों में वीडियो गेम की आदत पड़ने के पीछे पैरेंट्स भी एक कारण हैं. पैरेंट्स बच्चों को ज्यादा समय नहीं देते हैं. ऐसा नहीं है कि उनके पास समय अभाव है, लेकिन वे उनके साथ समय नहीं बिताते हैं. उनकी बातों को अनसुना कर देते हैं. कोई बच्चा अगर पैरेंट्स के पास जाकर अपनी कोई बात बताता है, तो वह अपनी थकान का बहाना कर उसकी बातों को महत्व नहीं देते हैं, जिसके बाद बच्चा पैरेंट्स की जगह वीडियो गेम की ओर आकर्षित हो जाता है. फिर उसमें धीरे-धीरे इसे खेलने की लत लग जाती है.
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ऐसे छूट सकती है लत
मनोचिकित्सक डॉक्टर अजवानी का कहना है कि, वीडियो गेम की आदत छुड़ाने के लिए पैरेट्स बच्चोंं के साथ समय ज्यादा बिताएं. उनके साथ खेलें, उनकी बातों को महत्व दें तो धीरे-धीरे बच्चों में गेम खेलने की आदत छूट सकती है. इतना ही नहीं बच्चों को इस आदत को छुड़ाने के लिए पैरेंट्स किसी तरह के पुरस्कार या फिर कोई ऐसी मनपंसद चींज दें, जिससे वह खुश हो जाए. उसके बाद भी बच्चा धीरे-धीरे वीडियो गेम खेलना छोड़ देगा
ज्यादातर खेले जाने वाले ऑनलाइन और डिजिटल वीडियो गेम
- ब्लू व्हेल
- पब्जी
- मोमो गेम
- फ्री फायर
- मैंडक्राफ्ट
- कॉल ऑफ ड्यूटी
- बैटललैंड रॉयल सहित कई अन्य ऐसे गेम्स हैं, जिसे बच्चे ज्यादा खेल रहे हैं
ब्लू व्हेल था काफी लोकप्रिय गेम
एक समय ऑनलाइन और डिजिटल वीडियो गेम्स में ब्लू व्हेल गेम काफी लोकप्रिय था. ब्लू व्हेल नाम का एक ऐसा गेम आया, जिसमें लोगों का एक ऑनलाइन समूह था जो लोगों को सुसाइड करने के लिए उकसा रहा था. यह ग्रुप सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा एक्टिव रहता था. ब्लू व्हेल में ग्रुप अपने मेंबर को रोजाना टास्क देते थे. इसे 50 दिन में पूरा करना होता था. यह टास्क काफी खतरनाक और जानलेवा होते थे. इसमें खुद को नुकसान पहुंचाना, किसी ऐसे समय घूमना जो काफी अजीब है या हॉरर फिल्में देखने जैसा टास्क शामिल था. टास्क के 50 दिन पूरा होने पर इस गेम के पीछे के लोग लोगों को सुसाइड करने को कहते थे. इतना ही नहीं इन्हें सुसाइड करने के तरीके के बारे में भी बताया जाता था.
पब्जी गेम को भारत में किया गया बैन
पब्जी गेम के कारण लगातार आत्महत्या जैसी घटनाएं देखने को मिली थी. इतना ही नहीं इस गेम की वजह से कई लोगों के बैंक अकाउंट से लाखों रुपए पार हो गए थे. ऑनलाइन गेम्स के कारण लगातार लोग परेशान हो गए थे, जिसके बाद भारत में इस गेम को बैन कर दिया गया.
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पब्जी बैन होने के बाद फ्री फायर खेल रहे हैं बच्चे
कई घटनाओं के बाद पब्जी गेम को भारत सरकार ने देश में बैन कर दिया है. पब्जी के बैन होने के बाद अब बच्चे एक और बैटल रॉयल गेम, फ्री फायर जैसे गेम्स पर हाथ आजमा रहे हैं. इसके अलावा कई अन्य गेम्स भी शामिल हैं.
हिंसक गेम बच्चे कर रहे हैं ज्यादा पसंद
आईटी एक्सपर्ट मोहित साहू का कहना है कि, ऑनलाइन और डिजिटल वीडियो गेम्स बनाते समय गेम डेवलपर पर इस बात का ध्यान रखते हैं कि बच्चों की रुचि किसमें ज्यादा है. देखने को आ रहा है कि आजकल बच्चे लड़ाई, झगड़ा, मारपीट वाले गेम्स को ज्यादा पसंद कर रहे हैं. यही कारण है कि अब गेम डेवलपर इस तरह के गेम्स को ज्यादा बना रहे हैं.
कई लोग एक साथ खेलते हैं ऑनलाइन गेम्स
आईटी एक्सपर्ट मोहित साहू ने बताया कि पहले जो गेम होते थे वह एक लेवल के बाद समाप्त हो जाते थे. उस गेम को एक व्यक्ति या फिर दो व्यक्ति मिलकर खेलते थे, लेकिन आज के समय में यह सारे गेम्स ऑनलाइन हो गए हैं, जिसमें सिर्फ एक बच्चा एक जगह से नहीं बल्कि देश-विदेश के बच्चे एक साथ ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं और कंपटीशन बढ़ता है. इन गेम्स में मारधाड़ बहुत ज्यादा होती है. इतना ही नहीं, इन गेम्स में बच्चे गन, पोशाक समेत अन्य चीज खरीदते हैं और उसका इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के गेम्स बच्चों के मन पर काफी दुष्प्रभाव डालते हैं.
एचएल रियल्टी गेम्स की आने वाली है बाढ़
आईटी एक्सपर्ट मोहित साहू का कहना है कि आने वाले समय में स्थिति और अलग होने वाली है. बच्चों के गेम्स के लिए अलग-अलग इक्विपमेंट तेजी से बाजार में बढ़ रहे हैं. जिसका इस्तेमाल बच्चे करेंगे. जल्दी एचएल रियल्टी गेम भी आने वाला है, जिसे आंख पर लगाकर बच्चे खेलेंगे और उस जगह को अपने आसपास महसूस करेंगे.
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गेम पर रेटिंग के आधार पर पैरेंट्स रख सकते हैं नजर
आईटी एक्सपर्ट मोहित साहू का कहना है कि गेम में भी रेटिंग दी जाती है, जिसके आधार पर तय किया जाता है कि इसमें कितनी हिंसा है और कितना नहीं. पैरंट्स को चाहिए कि वह यदि कोई गेम खरीदते या फिर डाउनलोड करते हैं तो उसकी रेटिंग देख लें, जैसे 3,7, 18 , इस तरह की रेटिंग आती है और उसमें उसका नेचर दिया रहता है.
सभी को जागरूक बनने की जरूरत
बच्चों में वीडियो गेम की लत को रोकना सिर्फ शासन-प्रशासन का ही काम नहीं है. बल्कि पैरेंट्स को भी जागरूक होना होगा. उन्हें बच्चों में गेम खेलने की प्रवृत्ति को गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाना होगा.