रायपुर: कैंसर बीमारी का नाम सुनते ही लोगों का हौसला टूट जाता है. खासकर कैंसर मरीजों की स्थिति खराब हो जाती है. कैंसर की रोकथाम और उसके इलाज के लिए देश में कई शोध हो रहे हैं. दुनिया भर के वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर रहे हैं. लेकिन भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने वह कर दिखाया है जिसके बारे में किसे ने कोई कल्पना भी नहीं की थी. हमारे वैज्ञानिकों ने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से निजात दिलाने के लिए अहम सफलता हासिल की है.
वैज्ञानिकों ने धान की तीन पारंपरिक किस्मों में कैंसर मारक क्षमता का पता लगाया है. भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सहयोग से किए जा रहे अनुसंधान में यह पाया गया है कि प्रदेश की 3 औषधीय धान प्रजातियां गठवन, महाराजी और लाइचा में फेफड़े और स्तन कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने के गुण पाए गए हैं. इनमें लाइचा प्रजाति कैंसर की कोशिकाओं का प्रगुणन रोकने और उन्हें खत्म करने में सर्वाधिक प्रभावी साबित हुई है. इस अनुसंधान से कैंसर के इलाज में आशा की एक नई किरण जगी है.
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धान की तीन किस्मों में कैंसर रोधी गुण
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय अनुसंधान के सहसंचालक वी के त्रिपाठी बताते हैं कि, कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में धान की लगभग 23,250 प्रजातियों का संकलन है. जो कि हमारे डॉक्टर आरएच रिछारिया के नेतृत्व में जमा की गई थी. इसमें धान की इन किस्मों में अलग-अलग प्रकार के गुण हैं. कोई लंबी तो कोई छोटी धान है. किसी की उपज अधिक है. किसी की वैरायटी में पोषक तत्वों की मात्रा अलग-अलग है. कई किस्मों में औषधीय गुण भी है. ऐसी 13 प्रजातियों को हमने चिन्हित किया था. जिनका हमारे छत्तीसगढ़ के पुराने किसान भाई और रहवासी, कई वर्षों से औषधीय रूप में उपयोग कर रहे थे. जिसमें से तीन प्रजातियों को छांट कर हमने इन में पाए जाने वाले कैंसर रोधी गुण का पता लगाया है. इसके अलावा सूजन, दर्द जैसी समस्याओं के उपचार के लिए भी कुछ चावल की प्रजातियों का परीक्षण किया गया है.
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चूहों पर किया गया परीक्षण
डॉक्टर वीके त्रिपाठी बताते हैं कि, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के साथ एक परियोजना शुरू की थी. चूंकि चूहा मॉडल पर इसका परीक्षण किया गया है. जिसमें पाया गया कि हमारी 3 प्रजातियां इलायची, महाराजी और गठवन के चावल के भूसे में यानी चावल की ऊपरी परत में कैंसर रोधी तत्व मौजूद हैं. जिसका परीक्षण चूहों पर किया गया. जिसमें यह परीक्षण सफल रहा और इन प्रजातियों में कैंसर रोधी तत्वों की उपस्थिति की पुष्टि हुई है. अभी इसका मानवीय मॉडल पर परीक्षण करना है. इसके बाद ही इसके कमर्शिलाइजेशन के बारे में सोचा जाएगा. इसे दवा के रूप में या भोजन के रूप में लॉन्च करना है उस पर भी परीक्षण के बाद फैसला लिया जाएगा.
धान से दवाई का विकल्प होगा तैयार
उन्होंने बताया कि अभी दवाई के साथ-साथ भोजन ही हमारे पुराने हिंदू संस्कृति में है. हमारी भारतीय संस्कृति में भी भोजन ही दवाई है. इसका बड़ा महत्व है तो हमारा लगातार प्रयास चल रहा है कि भोजन के साथ ही पोषक तत्व प्राप्त हो और दूसरा इस भोजन का उपयोग ही यदि दवाई के रूप में हो सके तो अतिरिक्त लागत बढ़ेगी और नैसर्गिक रूप से जैविक रूप से दवाई का विकल्प तैयार होगा. अभी जो इन तीन प्रजातियां हैं वह देसी परंपरागत वैरायटी हैं. जिसकी ऊंचाई अधिक है. जिसके चलते यह पकने के बाद भार ज्यादा होने से गिर जाती है.
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इन प्रजातियों की ऊंचाई को कम करने के लिए या बौना करने के लिए म्यूटेशन ब्रीडिंग का प्रोग्राम भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के साथ चल रहा है. इसके साथ भी हमने विशेष गुण वाली दुबराज, म्यूटेंट, सफरी ऐसी प्रजातियां की ऊंचाई कम करके विकसित कर चुके हैं. अब यह तीन बची हुई वैरायटी की ऊंचाई कम करने के लिए हमारा काम जारी है. इसमें हमें दो-तीन वर्ष लगेंगे. क्योंकि हम पहले उसकी ऊंचाई कम करेंगे. उसके बाद 5 पीढ़ियों तक खेत में लगाकर देखते हैं कि ऊंचाई कम हुई है कि नहीं. उसका बौनापन स्थिर रहता है या नहीं, यह देखा जाता है. वहीं यह सब करने के बाद इनके गुणों में कोई कमी तो नहीं हुई है इसका भी परीक्षण हम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमें विश्वास है कि अगले 4 वर्षों के अंदर हम ऐसी वैरायटी दे पाएंगे जिसमें कैंसर रोधी गुण रहेंगे