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क्यों छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धर्म का गढ़

छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिणकोसल और दंडकारण्य था,जो बाद में छत्तीसगढ़ कहलाया. छत्तीसगढ़ में अनेकों शासक और राजाओं ने प्राचीन समय में शासन किया. उनके शासनकाल में छत्तीसगढ़ में कई मंदिर बनाए गए. जो आज ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिरों में से एक है. प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ ऋषि मुनियों की तपोभूमि रही है, जो पवित्र और धार्मिक क्षेत्र बन गया. जनजीवन में धार्मिक प्रवृत्तियां प्रबल होकर धर्म सहिष्णुता का संदेश देने लगी.जो आज भी अनवरत जारी है.Chhattisgarh is called stronghold of religion

क्यों छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धर्म का गढ़
क्यों छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धर्म का गढ़
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Published : Dec 15, 2022, 6:38 PM IST

Updated : Dec 15, 2022, 6:51 PM IST

क्यों छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धर्म का गढ़

रायपुर : छत्तीसगढ़ में मौर्य काल, सातवाहन, वाकाटक, राज ऋषि तुल्य, नलवंश, शरभपुरी वंश, पांडू वंश कलचुरी वंश, वैष्णव शाक्त, जैन, बौद्ध धर्म को समान अवसर देकर उन्हें विस्तार करने में मदद की. छत्तीसगढ़ में धार्मिक स्थल में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के मंदिर और देवालय के साथ ही स्मारक भी मिलते हैं. मंदिरों के इन्हीं समूह को धार्मिक गढ़ कहा जाता है. इसलिए छत्तीसगढ़ को धर्म का गढ़ माना गया है. इतिहासकार ने इसी को लेकर एक पुस्तक भी लिखा है, जिसका नाम छत्तीसगढ़ धर्म का गढ़ है.Chhattisgarh is called stronghold of religion

Shiva Temple of Dhamtari
धमतरी का शिव मंदिर
धर्म का केंद्र रहा है छत्तीसगढ़ : पुरातत्वविद एवं इतिहासकार हेमू यदु (Historian Hemu Yadu) का कहना है कि "छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित रहा है. प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में जितने भी शासक हुए उन्होंने धर्म को बढ़ावा देने के साथ ही प्रोत्साहन भी दिया. प्राचीन काल में लोग सभी धर्मों को बराबर का दर्जा दिया करते थे. प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ एक धर्म सहिष्णु राज्य के रूप में अपनी पहचान रखता था. छत्तीसगढ़ में आज भी शैव मंदिर, वैष्णव मंदिर, बौद्ध मंदिर, जैन मंदिर, देवी मंदिर इस तरह से सभी धर्मों का समन्वय देखने को मिलता है. प्राचीन समय में शासकों ने सभी लोगों को सभी धर्मों को समन्वित रूप से विकास करने का मौका दिया. रामायण काल में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान थी, उस समय भगवान श्री राम 10 साल यहां रुकने के बाद वन गमन किए थे."

ये भी पढ़ें- छत्तीसगढ़ में पड़ने वाली है कड़ाके की ठंड



छत्तीसगढ़ में किन राजाओं ने किया राज : पुरातत्वविद एवं इतिहासकार हेमू यदु ने बताया कि "दंडकारण्य में कई महान ऋषि-मुनियों ने अपनी तपोभूमि बनाया था, जिसके बाद भगवान राम (lord ram) ऋषि-मुनियों से मुलाकात करने के बाद वन गमन किए थे, इसलिए भी यह धर्म का गढ़ माना जाता है. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर वैष्णव संप्रदाय से है, लेकिन राजा शैव संप्रदाय से थे. कई शासक और राजा ऐसे हुए जो अपने धर्म के साथ ही दूसरे धर्म को भी प्रोत्साहित करने के साथ ही उनका विस्तार किया. वैसे तो छत्तीसगढ़ को मंदिरों की नगरी और मंदिरों का गढ़ भी कहा जाता है."

क्यों छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धर्म का गढ़

रायपुर : छत्तीसगढ़ में मौर्य काल, सातवाहन, वाकाटक, राज ऋषि तुल्य, नलवंश, शरभपुरी वंश, पांडू वंश कलचुरी वंश, वैष्णव शाक्त, जैन, बौद्ध धर्म को समान अवसर देकर उन्हें विस्तार करने में मदद की. छत्तीसगढ़ में धार्मिक स्थल में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के मंदिर और देवालय के साथ ही स्मारक भी मिलते हैं. मंदिरों के इन्हीं समूह को धार्मिक गढ़ कहा जाता है. इसलिए छत्तीसगढ़ को धर्म का गढ़ माना गया है. इतिहासकार ने इसी को लेकर एक पुस्तक भी लिखा है, जिसका नाम छत्तीसगढ़ धर्म का गढ़ है.Chhattisgarh is called stronghold of religion

Shiva Temple of Dhamtari
धमतरी का शिव मंदिर
धर्म का केंद्र रहा है छत्तीसगढ़ : पुरातत्वविद एवं इतिहासकार हेमू यदु (Historian Hemu Yadu) का कहना है कि "छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित रहा है. प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में जितने भी शासक हुए उन्होंने धर्म को बढ़ावा देने के साथ ही प्रोत्साहन भी दिया. प्राचीन काल में लोग सभी धर्मों को बराबर का दर्जा दिया करते थे. प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ एक धर्म सहिष्णु राज्य के रूप में अपनी पहचान रखता था. छत्तीसगढ़ में आज भी शैव मंदिर, वैष्णव मंदिर, बौद्ध मंदिर, जैन मंदिर, देवी मंदिर इस तरह से सभी धर्मों का समन्वय देखने को मिलता है. प्राचीन समय में शासकों ने सभी लोगों को सभी धर्मों को समन्वित रूप से विकास करने का मौका दिया. रामायण काल में छत्तीसगढ़ की अलग पहचान थी, उस समय भगवान श्री राम 10 साल यहां रुकने के बाद वन गमन किए थे."

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छत्तीसगढ़ में किन राजाओं ने किया राज : पुरातत्वविद एवं इतिहासकार हेमू यदु ने बताया कि "दंडकारण्य में कई महान ऋषि-मुनियों ने अपनी तपोभूमि बनाया था, जिसके बाद भगवान राम (lord ram) ऋषि-मुनियों से मुलाकात करने के बाद वन गमन किए थे, इसलिए भी यह धर्म का गढ़ माना जाता है. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर वैष्णव संप्रदाय से है, लेकिन राजा शैव संप्रदाय से थे. कई शासक और राजा ऐसे हुए जो अपने धर्म के साथ ही दूसरे धर्म को भी प्रोत्साहित करने के साथ ही उनका विस्तार किया. वैसे तो छत्तीसगढ़ को मंदिरों की नगरी और मंदिरों का गढ़ भी कहा जाता है."

Last Updated : Dec 15, 2022, 6:51 PM IST
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