रायपुर: 2018 विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग की लड़ाई एकतरफा रही. कांग्रेस ने बीजेपी के पैरों के नीचे से सियासी जमीन खीच उसे औंधे मुंह गिराया था. संभाग की सभी 14 में से 14 सीटों पर कब्जा कर नया चुनावी इतिहास लिख दिया. कांग्रेस की इस जीत में टीएस सिंहदेव की भी बड़ी भूमिका रही. चुनाव जीतने के बाद सिंहदेव का रुतबा भी बढ़ा. अंबिकापुर से लेकर जशपुर तक प्रचार की बागडोर सिंहदेव ने थाम रखी थी. कुछ सीटों की मार्जिन को छोड़ दें तो ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस बड़े मार्जिन से जीती. सरगुजा संभाग को कभी बीजेपी का गढ़ कहा जाता था. इस हार के बाद बीजेपी साफ हो गई और कांग्रेस का नया उदय हुआ. छत्तीसगढ़ बनने के बाद से लेकर 2018 तक किसी भी संभाग में कांग्रेस ने इतनी बड़ी जीत दर्ज नहीं की थी.
इस बार कौन साधेगा सरगुजा: 2023 के चुनावों पर 2018 की परछाई इस बार नहीं पड़ेगी. सरगुजा संभाग की सभी 14 सीटों पर कांटे का मुकाबला है. धर्म परिवर्तन और सियासी गुंडागर्दी का आरोप इस बार के चुनावों में बड़ा सियासी मुद्दा रहा. नतीजों में ये मुद्दा जरुर असर दिखाएगा. जो बस्तर जीतता है वो सत्ता की चाबी पाता है. जो सरगुजा को साधता है वो भारी विजय से हासिल करता है. एक नजर 2018 के उन आंकड़ों पर भी डालते हैं जिससे ये साफ हो जाएगा कि 2018 का मुकाबला कैसे कांग्रेस ने एकतरफा कर दिया था.
सरगुजा संभाग 14 सीटें प्रेमनगर विधानसभा सीट
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भटगांव विधानसभा सीट
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प्रतापपुर विधानसभा सीट
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लुण्ड्रा विधानसभा सीट
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सामरी विधानसभा सीट
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सीतापुर विधानसभा सीट
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सोनहत-भरतपुर विधानसभा सीट
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बैकुंठपुर विधानसभा सीट
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मनेंद्रगढ़ विधानसभा सीट
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जशपुर विधानसभा सीट
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कुनकुरी विधानसभा सीट
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पत्थलगांव विधानसभा सीट
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रामानुजगंज विधानसभा सीट
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सूरजपुर विधानसभा सीट
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अंबिकापुर विधानसभा सीट
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मुकाबला है जोरदार : कांग्रेस फिर से 2018 के नतीजों को दोहराने के लिए बेताब है. बीजेपी चाहती है कि वो सरगुजा संभाग में अपना खोया जनाधार फिर से हासिल करे. 2018 की लड़ाई थोड़ी अलग थी बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी थी. इस बार कांग्रेस के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी हो सकती है. वोटों का सियासी ऊंट किस ओर बैठेगा कहना मुश्किल है. फाइट कांटे की होगी इतना तो तय है.