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अयोध्या की तर्ज पर जगमगाएगा भगवान श्रीराम का ननिहाल, 51 हजार दीयों से जगमगाएगी चंद्रखुरी

कल दिवाली है. दिवाली के आयोजन के लिए अयोध्या के राम मंदिर की दीयों से भव्य सजावट की गई है. इसी की तर्ज पर भगवान श्रीराम के ननिहाल चंद्रखुरी में भी दिवाली के दिन कौशल्या माता मंदिर में 51000 दीये जलाए जाएंगे.

Chandrakhuri's Mata Kaushalya Mata Temple
चंद्रखुरी का माता कौशल्या माता मंदिर
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Published : Nov 3, 2021, 8:57 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 9:44 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में एक अनूठी परंपरा है, यहां उम्र में बड़े होने के बावजूद अपने से छोटे उम्र के भांजे का पैर छूकर मामा आशीर्वाद लेते हैं. जानकारों के मुताबिक इसके पीछे की वजह भगवान श्रीरामचंद्र का (Nanihal of Lord Shri Ramchandra Chhattisgarh) ननिहाल छत्तीसगढ़ को होना बताया जाता है. भगवान श्रीरामचंद्र की माता कौशल्या (Mata Kaushalya was a resident of Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ की ही रहने वाली थीं. इस क्षेत्र को तब दक्षिण कोशल (Southern Kosala Region) प्रदेश के नाम से जाना जाता था. इसी लिहाज से भगवान श्रीरामचंद्र छत्तीसगढ़ वासियों के रिश्ते में भांजे हुए. यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई कि मामा अगर उम्र में अपने भांजे से बड़े भी हों तब भी वे अपने भांजे पर रामचंद्र जी की छवि देखते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं. आज हम कौशल्या माता की जन्म स्थली चंद्रखुरी में है. जहां दीपावली मनाने की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं. दीपावली के अवसर पर विश्व के इकलौते कौशल्या माता के इस मंदिर में 51 हजार दीप प्रज्वलित किये जाएंगे. यानी कि आयोध्या की तर्ज पर ही दीपावली में भगवान राम का ननिहाल भी जगमगाएगा.

चंद्रखुरी का माता कौशल्या माता मंदिर

पहले नाव के सहारा मंदिर प्रांगण तक पहुंचते थे श्रद्धालु

राजधानी रायपुर से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रखुरी गांव स्थित है. यहां कौशल्या माता का मंदिर तालाब के बीचों-बीच बनाया गया है. इस पुरातन मंदिर में आने के लिए अब शासन ने खूबसूरत ब्रिज का निर्माण करा दिया है. लेकिन दशकों से इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए नाव का ही सहारा लेना पड़ता था. बाद में एक ब्रिज का निर्माण स्थानीय विधायक द्वारा किया गया. इस सरकार ने राम वन गमन पथ को विकसित करने की जो कार्य योजना तैयार की है, उसी के तहत यहां पर मूलभूत सुविधाओं और सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा है.

विश्व का इकलौता कौशल्या माता मंदिर, जहां मां की गोद में विराजमान हैं रामलला

कौशल्या माता मंदिर के मुख्य द्वार के सामने ही भगवान श्रीरामचंद्र की 51 फीट की आदमकद प्रतिमा भी यहां स्थापित की गई है. यह श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है. कौशल्या माता के मंदिर के विषय में जानकार दावा करते हैं कि यह विश्व में इकलौता मंदिर है, जहां माता कौशल्या की गोद में बाल रूप में भगवान श्रीरामचंद्र विराजित हैं. दीपावली को कुछ खास बनाने के लिए भगवान श्रीरामचंद्र के जन्म स्थल अयोध्या में तो तैयारी हो ही रही है, उनके ननिहाल चंद्रखुरी में भी इस पर्व को खास बनाने के लिए 51 हजार दीये दीपावली के दिन मंदिर परिसर में प्रज्वलित किये जाएंगे.



दीपावली मनाने की शुरुआत

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीरामचंद्र जब 14 वर्ष के वनवास के बाद अपनी जन्मस्थली अयोध्या पहुंचे तो वहां की जनता ने उनका स्वागत अपने-अपने घरों के सामने दीपक जलाकर किया. यहीं से दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद से पूरे भारतवर्ष में दशहरा पर्व के करीब 20 दिनों के बाद धूमधाम से दीपावली मनाई जाती है.



आयोध्या के श्रद्धालु भी पहुंच रहे दर्शन करने

चंदखुरी मंदिर में ईटीवी भारत की टीम ने कुछ श्रद्धालुओं से भी बातचीत करने की कोशिश की. जिसमें एक श्रद्धालु ऐसे भी मिले जो मूलतः भगवान श्रीरामचंद्र की जन्मस्थली अयोध्या के रहने वाले हैं. लेकिन इनकी कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही रही है. इन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि वे उन दोनों ही स्थानों के दर्शन कर चुके हैं, जहां से भगवान श्रीरामचंद्र की यादें जुड़ी हुई है. वहीं आसपास के लोग इस बात से भी काफी खुश हैं कि इस मंदिर परिसर का काफी विकास किया जा रहा है. यहां श्रद्धालुओं के लिए सहूलियतें भी बढ़ाई जा रही हैं और इस परिसर को सुंदर बनाने की दिशा में लगातार कार्य किये जा रहे हैं. ये ग्रामीण भगवान श्रीरामचंद्र को अपना रिश्तेदार मानते हैं.

रायपुर : छत्तीसगढ़ में एक अनूठी परंपरा है, यहां उम्र में बड़े होने के बावजूद अपने से छोटे उम्र के भांजे का पैर छूकर मामा आशीर्वाद लेते हैं. जानकारों के मुताबिक इसके पीछे की वजह भगवान श्रीरामचंद्र का (Nanihal of Lord Shri Ramchandra Chhattisgarh) ननिहाल छत्तीसगढ़ को होना बताया जाता है. भगवान श्रीरामचंद्र की माता कौशल्या (Mata Kaushalya was a resident of Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ की ही रहने वाली थीं. इस क्षेत्र को तब दक्षिण कोशल (Southern Kosala Region) प्रदेश के नाम से जाना जाता था. इसी लिहाज से भगवान श्रीरामचंद्र छत्तीसगढ़ वासियों के रिश्ते में भांजे हुए. यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई कि मामा अगर उम्र में अपने भांजे से बड़े भी हों तब भी वे अपने भांजे पर रामचंद्र जी की छवि देखते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं. आज हम कौशल्या माता की जन्म स्थली चंद्रखुरी में है. जहां दीपावली मनाने की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं. दीपावली के अवसर पर विश्व के इकलौते कौशल्या माता के इस मंदिर में 51 हजार दीप प्रज्वलित किये जाएंगे. यानी कि आयोध्या की तर्ज पर ही दीपावली में भगवान राम का ननिहाल भी जगमगाएगा.

चंद्रखुरी का माता कौशल्या माता मंदिर

पहले नाव के सहारा मंदिर प्रांगण तक पहुंचते थे श्रद्धालु

राजधानी रायपुर से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रखुरी गांव स्थित है. यहां कौशल्या माता का मंदिर तालाब के बीचों-बीच बनाया गया है. इस पुरातन मंदिर में आने के लिए अब शासन ने खूबसूरत ब्रिज का निर्माण करा दिया है. लेकिन दशकों से इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए नाव का ही सहारा लेना पड़ता था. बाद में एक ब्रिज का निर्माण स्थानीय विधायक द्वारा किया गया. इस सरकार ने राम वन गमन पथ को विकसित करने की जो कार्य योजना तैयार की है, उसी के तहत यहां पर मूलभूत सुविधाओं और सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा है.

विश्व का इकलौता कौशल्या माता मंदिर, जहां मां की गोद में विराजमान हैं रामलला

कौशल्या माता मंदिर के मुख्य द्वार के सामने ही भगवान श्रीरामचंद्र की 51 फीट की आदमकद प्रतिमा भी यहां स्थापित की गई है. यह श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है. कौशल्या माता के मंदिर के विषय में जानकार दावा करते हैं कि यह विश्व में इकलौता मंदिर है, जहां माता कौशल्या की गोद में बाल रूप में भगवान श्रीरामचंद्र विराजित हैं. दीपावली को कुछ खास बनाने के लिए भगवान श्रीरामचंद्र के जन्म स्थल अयोध्या में तो तैयारी हो ही रही है, उनके ननिहाल चंद्रखुरी में भी इस पर्व को खास बनाने के लिए 51 हजार दीये दीपावली के दिन मंदिर परिसर में प्रज्वलित किये जाएंगे.



दीपावली मनाने की शुरुआत

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीरामचंद्र जब 14 वर्ष के वनवास के बाद अपनी जन्मस्थली अयोध्या पहुंचे तो वहां की जनता ने उनका स्वागत अपने-अपने घरों के सामने दीपक जलाकर किया. यहीं से दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद से पूरे भारतवर्ष में दशहरा पर्व के करीब 20 दिनों के बाद धूमधाम से दीपावली मनाई जाती है.



आयोध्या के श्रद्धालु भी पहुंच रहे दर्शन करने

चंदखुरी मंदिर में ईटीवी भारत की टीम ने कुछ श्रद्धालुओं से भी बातचीत करने की कोशिश की. जिसमें एक श्रद्धालु ऐसे भी मिले जो मूलतः भगवान श्रीरामचंद्र की जन्मस्थली अयोध्या के रहने वाले हैं. लेकिन इनकी कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही रही है. इन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि वे उन दोनों ही स्थानों के दर्शन कर चुके हैं, जहां से भगवान श्रीरामचंद्र की यादें जुड़ी हुई है. वहीं आसपास के लोग इस बात से भी काफी खुश हैं कि इस मंदिर परिसर का काफी विकास किया जा रहा है. यहां श्रद्धालुओं के लिए सहूलियतें भी बढ़ाई जा रही हैं और इस परिसर को सुंदर बनाने की दिशा में लगातार कार्य किये जा रहे हैं. ये ग्रामीण भगवान श्रीरामचंद्र को अपना रिश्तेदार मानते हैं.

Last Updated : Nov 3, 2021, 9:44 PM IST
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