रायपुर/हैदराबाद: अपने जल, जंगल और जमीन के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ में बस्तर के हजारों आदिवासियों 1910 में भूमकाल की शुरुआत की थी. आदिवासियों ने वीर गुंडाधर के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत और शोषक वर्ग की बंदूकों का सामना अपने पारंपरिक हथियारों से किया था. इस युद्ध की वजह से बस्तर के आदिवासियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. महान बलिदान के याद करने के लिए बस्तर के लोग हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाते हैं.
अंग्रेजों को गुफा में लेनी पड़ी थी पनाह: शहीद वीर गुंडाधुर पीजी काॅलेज की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावजों के मुताबिक "बस्तर के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में छिपना पड़ा था. बस्तर के इस वीर क्रांतिकारी बागा धुरवा को अंग्रेजों ने ही गुंडाधुर की उपाधि दी थी. दरअसल शहीद गुंडाधुर के विद्रोह करने के चलते ये नाम अंग्रेजों ने ही उन्हें दिया था."
भूमकाल के नायक थे शहीद वीर गुंडाधुर: भूमकाल का नायक शहीद वीर गुंडाधुर को माना जाता है. उस जमाने में बस्तर का राजपाट राजा रूद्रप्रताप के हाथों में था, लेकिन वे अंग्रेजों के अधीन होकर काम रहे थे. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का बीड़ा शहीद गुंडाधुर ने उठाया. भूमकाल आंदोलन में लाल मिर्च क्रांतिकारियों की संदेश वाहक कहलाती थी, जैसे 1857 की क्रांति के समय रोटी और कमल था. धुर्वा समाज के प्रमुख शहीद गुंडाधुर ने बस्तर के आदिवासियों को शोषक वर्ग से निजात दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी और इस दौरान वे शहीद हो गए.
25 हजार लोगों ने दी थी कुर्बानी: बस्तर से ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलानें के लिए गांव-गांव तक लाल मिर्च, मिट्टी का धुनष-बाण और आम की टहनियां लोगों के घर-घर तक पहुंचाने काम इस मकसद से शुरू किया गया कि लोग बस्तर की अस्मिता को बचाने के लिए आगे आएं. अंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई इस आवाज में करीब 25 हजार लोगों को कुर्बानी देनी पड़ी थी. भूमकाल की गाथा आज भी बस्तर के लोकगीतों में गाई और सुनाई जाती है.