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SPECIAL: स्कूल है सरकारी, इंग्लिश बोलने में बच्चे अंग्रेजों पर भी भारी

सारंगढ़ के गोमर्डा अभयारण्य की पहाड़ियों के बीच में बसे गांव डोंगिपनी के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते है. यहां के बच्चों से मिलकर सबका दिल खुश हो जाता है.

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Published : Jul 5, 2019, 4:59 PM IST

Updated : Jul 5, 2019, 5:53 PM IST

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रायगढ़: ETV भारत के अभियान 'आओ स्कूल चलें' में सबसे पहले चलिए रायगढ़ के बरमकेला विकासखंड के डोंगिपनी और हैरान हो जाइए. यहां के बच्चों से मिलकर आपका दिल खुश हो जाएगा. साफ-सुथरी क्लासेस देखकर अच्छा लगेगा और शिक्षक से मिलकर लगेगा कि भविष्य किसी सुरक्षित हाथ में है. यहां के शिक्षकों की मेहनत को एक वायरल वीडियो ने पहचान दिला दी.

इंग्लिश बोलने में बच्चे अंग्रेजों पर भी भारी

सारंगढ़ के गोमर्डा अभयारण्य की पहाड़ियों के बीच में बसे गांव डोंगिपनी को कोई नहीं जानता लेकिन फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते बच्चों को आप पहचान गए होंगे. डोंगिपनी स्कूल तक पहुंचने के लिए जंगल के बीच से कच्ची सड़कों से होकर जाना पड़ता है, जिसका बरसात के दिनों में जिला मुख्यालय के संपर्क से टूटा हुआ रहता है.

24 बच्चे और सभी बोलते हैं फर्राटेदार इंग्लिश
इस स्कूल में कक्षा पहली से लेकर पांचवीं तक 24 बच्चे हैं, जिनमें से सभी बच्चे अंग्रेजी में बात करने में सक्षम हैं. और इसका पूरा श्रेय जाता है यहां पढ़ाने वाले शिक्षक शशि कुमार बैरागी को. ऐसा हम ही नहीं ग्रामीण भी कहते हैं.

शिक्षक शशि कुमार बैरागी पढ़ाते हैं अंग्रेजी
स्कूल में प्रधान पाठक वी के पटेल और शशी कुमार बैरागी पदस्थ हैं. कहने को तो स्कूल में शशि कुमार अंग्रेजी और हिंदी के शिक्षक हैं लेकिन बच्चों और गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने ही बच्चों को गणित और अंग्रेजी में पारंगत किया है ऐसे में उन्हें चारों विषय के शिक्षक कहना गलत नहीं होगा.

पहली क्साल से ही पढ़ाया जाता है ग्रामर
शशि कुमार बैरागी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं. कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चे बैरागी से अंग्रेजी सीखते हैं. पहली क्लास से ही बच्चों को इंग्लिश ग्रामर पढ़ाया जाता है. शुरू से ही इंग्लिश पढ़ने से बच्चों को प्रॉब्लम नहीं होती और वे आगे की क्लासेस में और बेहतर करते जाते हैं.

लोगों ने किया विश्वास
गांव में कोई भी व्यक्ति दसवीं पास नहीं है. लोगों को लगा कि उनके बच्चे अंग्रेजी में बात करें, तो उनको भी खुशी होगी और वह भी गुरु जी का सहयोग करने लगे. बच्चों को रोज स्कूल भेजने लगे. धीरे धीरे मेहनत रंग लाई और बच्चे अंग्रेजी में बात करने लगे.

एक-दूसरे से इंग्लिश में बात करते हैं बच्चे
बच्चों को इंग्लिश ग्रामर की पूरी जानकारी दी जाती है. धीरे-धीरे अंग्रेजी सीखते-सीखते बच्चे फर्रारेटार इंग्लिश में बात करने लगते हैं. एक-दूसरे का परिचय हो या फिर सामान्य ज्ञान सब रटते हैं.

प्रैक्टिकली सिखाते हैं शिक्षक
शिक्षक शशि कुमार बैरागी के पढ़ाने का तरीका बेहद अनोखा है. वह बच्चों को प्रैक्टिकली सिखाते हैं और भाषा समझने के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज पर ही ज्यादा जोर देते हैं. वे कहते हैं कि खेल-खेल में बच्चों को सिखाया जाए तो वे बेहतर सीखते हैं.

सोशल मीडिया पर वीडियो डालने से नजर में आया स्कूल
शशि ने ETV भारत से बताया कि स्कूल का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से लोगों का बहुत प्यार मिल रहा है. वे कहते हैं कि लंडन से किताबें और कनाडा से बैग आए हैं. आंध्र प्रदेश से बच्चों को डिजिटल क्लास के लिए कंप्यूटर भी भेजा गए हैं. कुछ लोग आर्थिक रूप से भी सहायता करते हैं जो बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है.

लोगों की मदद से चल रहा है काम
बीहड़ जंगल में होने की वजह से यहां जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है. बाउंड्री वॉल न होने की वजह से हम वक्त डर रहता है. प्रशासन ध्यान नहीं देता लेकिन लोगों के सहयोग से यहां की गाड़ी चल रही है. लोगों के सहयोग से ही स्कूल की मरम्मत और पुताई होती है. ETV भारत की तरफ से यहां के टीचर को सलाम और बच्चों को शुभकामनाएं.

रायगढ़: ETV भारत के अभियान 'आओ स्कूल चलें' में सबसे पहले चलिए रायगढ़ के बरमकेला विकासखंड के डोंगिपनी और हैरान हो जाइए. यहां के बच्चों से मिलकर आपका दिल खुश हो जाएगा. साफ-सुथरी क्लासेस देखकर अच्छा लगेगा और शिक्षक से मिलकर लगेगा कि भविष्य किसी सुरक्षित हाथ में है. यहां के शिक्षकों की मेहनत को एक वायरल वीडियो ने पहचान दिला दी.

इंग्लिश बोलने में बच्चे अंग्रेजों पर भी भारी

सारंगढ़ के गोमर्डा अभयारण्य की पहाड़ियों के बीच में बसे गांव डोंगिपनी को कोई नहीं जानता लेकिन फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते बच्चों को आप पहचान गए होंगे. डोंगिपनी स्कूल तक पहुंचने के लिए जंगल के बीच से कच्ची सड़कों से होकर जाना पड़ता है, जिसका बरसात के दिनों में जिला मुख्यालय के संपर्क से टूटा हुआ रहता है.

24 बच्चे और सभी बोलते हैं फर्राटेदार इंग्लिश
इस स्कूल में कक्षा पहली से लेकर पांचवीं तक 24 बच्चे हैं, जिनमें से सभी बच्चे अंग्रेजी में बात करने में सक्षम हैं. और इसका पूरा श्रेय जाता है यहां पढ़ाने वाले शिक्षक शशि कुमार बैरागी को. ऐसा हम ही नहीं ग्रामीण भी कहते हैं.

शिक्षक शशि कुमार बैरागी पढ़ाते हैं अंग्रेजी
स्कूल में प्रधान पाठक वी के पटेल और शशी कुमार बैरागी पदस्थ हैं. कहने को तो स्कूल में शशि कुमार अंग्रेजी और हिंदी के शिक्षक हैं लेकिन बच्चों और गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने ही बच्चों को गणित और अंग्रेजी में पारंगत किया है ऐसे में उन्हें चारों विषय के शिक्षक कहना गलत नहीं होगा.

पहली क्साल से ही पढ़ाया जाता है ग्रामर
शशि कुमार बैरागी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं. कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चे बैरागी से अंग्रेजी सीखते हैं. पहली क्लास से ही बच्चों को इंग्लिश ग्रामर पढ़ाया जाता है. शुरू से ही इंग्लिश पढ़ने से बच्चों को प्रॉब्लम नहीं होती और वे आगे की क्लासेस में और बेहतर करते जाते हैं.

लोगों ने किया विश्वास
गांव में कोई भी व्यक्ति दसवीं पास नहीं है. लोगों को लगा कि उनके बच्चे अंग्रेजी में बात करें, तो उनको भी खुशी होगी और वह भी गुरु जी का सहयोग करने लगे. बच्चों को रोज स्कूल भेजने लगे. धीरे धीरे मेहनत रंग लाई और बच्चे अंग्रेजी में बात करने लगे.

एक-दूसरे से इंग्लिश में बात करते हैं बच्चे
बच्चों को इंग्लिश ग्रामर की पूरी जानकारी दी जाती है. धीरे-धीरे अंग्रेजी सीखते-सीखते बच्चे फर्रारेटार इंग्लिश में बात करने लगते हैं. एक-दूसरे का परिचय हो या फिर सामान्य ज्ञान सब रटते हैं.

प्रैक्टिकली सिखाते हैं शिक्षक
शिक्षक शशि कुमार बैरागी के पढ़ाने का तरीका बेहद अनोखा है. वह बच्चों को प्रैक्टिकली सिखाते हैं और भाषा समझने के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज पर ही ज्यादा जोर देते हैं. वे कहते हैं कि खेल-खेल में बच्चों को सिखाया जाए तो वे बेहतर सीखते हैं.

सोशल मीडिया पर वीडियो डालने से नजर में आया स्कूल
शशि ने ETV भारत से बताया कि स्कूल का वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से लोगों का बहुत प्यार मिल रहा है. वे कहते हैं कि लंडन से किताबें और कनाडा से बैग आए हैं. आंध्र प्रदेश से बच्चों को डिजिटल क्लास के लिए कंप्यूटर भी भेजा गए हैं. कुछ लोग आर्थिक रूप से भी सहायता करते हैं जो बच्चों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है.

लोगों की मदद से चल रहा है काम
बीहड़ जंगल में होने की वजह से यहां जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है. बाउंड्री वॉल न होने की वजह से हम वक्त डर रहता है. प्रशासन ध्यान नहीं देता लेकिन लोगों के सहयोग से यहां की गाड़ी चल रही है. लोगों के सहयोग से ही स्कूल की मरम्मत और पुताई होती है. ETV भारत की तरफ से यहां के टीचर को सलाम और बच्चों को शुभकामनाएं.

Intro:रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 2 घंटे की दूरी में सारंगढ़ के गोमर्डा अभ्यारण्य के पहाड़ियों के बीच में बसे गांव डोंगिपनी भारत के नक्शे में आपको कहीं दिखाई नहीं देगा लेकिन इस गांव के प्राथमिक शाला के बच्चों ने ऐसा कारनामा कर दिया है की छत्तीसगढ़ ही नहीं देश दुनिया में लोग इस स्कूल के बारे में चर्चा करते हैं। डोंगिपनी स्कूल तक पहुंचने के लिए जंगल के बीच से कच्ची सड़कों से होकर जाना पड़ता है जो बरसात के दिनों में जिला मुख्यालय के संपर्क से टूटा हुआ रहता है।

इस स्कूल में कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक 24 बच्चे हैं जिनमें से सभी बच्चे अंग्रेजी में बात करने में सक्षम है।



Body:रायगढ़ जिले के बरमकेला विकासखंड के अंतर्गत डोंगिपनी प्राथमिक शाला आता है जहां शशी कुमार बैरागी सहायक शिक्षक के रूप में पदस्थ हैं। स्कूल में प्रधान पाठक वि के पटेल और शशी कुमार बैरागी सहायक शिक्षक के रूप में पदस्थ हैं कहने को तो स्कूल में शशी कुमार अंग्रेजी और हिंदी के शिक्षक हैं लेकिन बच्चे और गांव के लोगों का कहना है कि शशी कुमार बैरागी बच्चों को गणित और अंग्रेजी में पारंगत किया है ऐसे में उन्हें चारों विषय के शिक्षक कहना गलत नहीं होगा।

प्राथमिक शाला डोंगिपनी में 2 शिक्षक हैं जिसमें से एक शशी कुमार बैरागी जबकि दूसरे प्रधान पाठक हैं शशि कुमार बैरागी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चे बैरागी से अंग्रेजी सीखते हैं पहली कक्षा से ही बच्चों को इंग्लिश ग्रामर पढ़ाया जाता है। बच्चों को शुरुआती रुझान होने के बाद वे आसानी से अंग्रेजी को मजे लेकर पढ़ते हैं। गांव में कोई भी व्यक्ति दसवीं पास नहीं है ऐसे में उनके बच्चे अंग्रेजी में बात करें तो उनको भी खुशी होगी और वह भी गुरु जी का सहयोग करने लगे बच्चों को रोज स्कूल भेजने लगे। धीरे धीरे मेहनत रंग लाई और बच्चे अंग्रेजी में बात करने लगे।

बच्चों को ग्रामर टेंस आर्टिकल वर्ग वोकैबलरी इन सब की पूरी और विस्तृत जानकारी दी जाती है उसके बाद धीरे धीरे बच्चे अंग्रेजी सीखने लगते हैं। बच्चे आपस में अंग्रेजी में बात करते हैं एक दूसरे का परिचय कराते हैं। कक्षा पहली के बच्चे सामान्य ज्ञान को भी इंग्लिश में याद करते हैं।
बैरागी के पढ़ाने का तरीका बेहद अनोखा है वह बच्चों को प्रायोगिक तौर पर सिखाते हैं भाषा को समझने के लिए प्रायोगिक ज्ञान को ज्यादा महत्त्व देते हैं।

ईटीवी भारत से बात करने के दौरान ग्रामीणों ने कहा कि जब से गुरु जी गांव में आए हैं पढ़ाई का स्तर बढ़ गया है और जिस गांव को बरमकेला के लोग नहीं जानते थे उसे अब विदेश में बैठे लोग जानने लगे हैं। जो बच्चे गांव के जो बच्चे दूसरे स्कूल में पढ़ते हैं और बड़ी कक्षा में पढ़ते हैं उनसे भी गांव के प्राइमरी स्कूल के बच्चे अच्छी पढ़ाई करते हैं।


Conclusion:. शशी कुमार बैरागी का कहना है कि प्रैक्टिकल ज्ञान देने से बच्चे जल्दी सीखते हैं और समझते हैं उनको खेल खेल में ही ज्यादा अच्छे से समझाया जाता है। ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर वीडियो डालने के बाद लोगों का बहुत सारा प्यार स्कूल को मिलने लगा जिसमें लंदन कनाडा जैसे देश भी शामिल हैं। लंदन से बच्चों के लिए किताब भेजे गए हैं कनाडा से बैग भेजे गए हैं। आंध्र प्रदेश से बच्चों को डिजिटल क्लास के लिए कंप्यूटर भी भेजा गए हैं। कुछ लोग आर्थिक रूप से भी सहायता करते हैं जो बच्चों के लिए बेहद ही सहायता पूर्ण होता है।

बिहार जंगलों में होने की वजह से जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है ऐसे में स्कूल के पीछे बॉर्डर का निर्माण नहीं किया गया है उधर जंगल होने की वजह से खतरा बना रहता है। प्रशासन की तरफ से भी कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है लोगों के सहयोग से ही स्कूल की मरम्मत और पुताई होती है।

Last Updated : Jul 5, 2019, 5:53 PM IST
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