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शोपीस बना करोड़ों की लागत से बना मैटरनिटी हॉस्पिटल, 1 साल में हुए सिर्फ 13 प्रसव

जिला चिकित्सा विभाग के अधीन सालभर पहले मातृ-शिशु अस्पताल की शुरुआत की गई, लेकिन 100 बिस्तर वाले अस्पताल में गिनती का स्टाफ है. वहीं पिछले एक साल में महज 13 सफल प्रसव हो सके हैं.

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Published : Jun 3, 2019, 6:05 PM IST

मातृ शिशु अस्पताल

रायगढ़ : साल भर पहले जिले में करोड़ों रुपए की लागत से सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल की तर्ज पर मातृ-शिशु अस्पताल का बनवाया गया था, लेकिन अस्पताल ऐसी जगह बना है, जहां तक मरीजों का पहुंच पाना मुश्किल है, लिहाजा अस्पताल में पिछले एक साल में महज 13 सफल प्रसव हो सके हैं.

मैटरनिटी हॉस्पिटल बना शोपीस

दरअसल, जिला चिकित्सा विभाग के अधीन सालभर पहले मातृ-शिशु अस्पताल की शुरुआत की गई, लेकिन 100 बिस्तर वाले अस्पताल में गिनती का स्टाफ है. वर्तमान में 25 से 30 कर्मचारी हैं, जबकि अस्पताल में 20 से 30 तो डॉक्टर ही होने चाहिए थे. वहीं 50 से 60 नर्स और उतनी ही आया और सफाईकर्मियों की जरूरत है, लेकिन चंद लोगों के भरोसे ही 100 बिस्तर का मातृ-शिशु अस्पताल चलाया जा रहा है.

वाहन की सुविधा नहीं

पूरे मामले में अस्पताल के प्रभारी डॉ का कहना है कि शहर से दूर होने के कारण लोग वहां तक नहीं जाते और आवागमन के लिए वाहन की सुविधा भी नहीं है, ऐसे में कुछ लोग अपने निजी वाहनों से अस्पताल तक पहुंचते हैं'.

अस्पताल को खुले हुए लगभग एक साल हो गया है, लेकिन इस बीच करोड़ों रुपए की लागत से बने इस अस्पताल में महज 13 सफल डिलीवरी की गई हैं, जबकि लगभग 550 महिलाओं की नसबंदी की गई है.

रायगढ़ : साल भर पहले जिले में करोड़ों रुपए की लागत से सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल की तर्ज पर मातृ-शिशु अस्पताल का बनवाया गया था, लेकिन अस्पताल ऐसी जगह बना है, जहां तक मरीजों का पहुंच पाना मुश्किल है, लिहाजा अस्पताल में पिछले एक साल में महज 13 सफल प्रसव हो सके हैं.

मैटरनिटी हॉस्पिटल बना शोपीस

दरअसल, जिला चिकित्सा विभाग के अधीन सालभर पहले मातृ-शिशु अस्पताल की शुरुआत की गई, लेकिन 100 बिस्तर वाले अस्पताल में गिनती का स्टाफ है. वर्तमान में 25 से 30 कर्मचारी हैं, जबकि अस्पताल में 20 से 30 तो डॉक्टर ही होने चाहिए थे. वहीं 50 से 60 नर्स और उतनी ही आया और सफाईकर्मियों की जरूरत है, लेकिन चंद लोगों के भरोसे ही 100 बिस्तर का मातृ-शिशु अस्पताल चलाया जा रहा है.

वाहन की सुविधा नहीं

पूरे मामले में अस्पताल के प्रभारी डॉ का कहना है कि शहर से दूर होने के कारण लोग वहां तक नहीं जाते और आवागमन के लिए वाहन की सुविधा भी नहीं है, ऐसे में कुछ लोग अपने निजी वाहनों से अस्पताल तक पहुंचते हैं'.

अस्पताल को खुले हुए लगभग एक साल हो गया है, लेकिन इस बीच करोड़ों रुपए की लागत से बने इस अस्पताल में महज 13 सफल डिलीवरी की गई हैं, जबकि लगभग 550 महिलाओं की नसबंदी की गई है.

Intro:साल भर पहले जिले में करोड़ों की लागत से सुपरस्पेशलिटी के तर्ज पर मातृ शिशु अस्पताल निर्माण कराया गया जहां साल भर बीत जाने के बाद भी लोग अपने बच्चे की डिलीवरी के लिए नहीं आ रहे हैं। प्रभारी डॉक्टरों का कहना है कि शहर से दूर और आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण लोग गर्भवती महिलाओं को लेकर यहां आने से कतराते हैं जबकि यहां सभी सुविधाएं उपलब्ध है।

byte 01 अशोक अग्रवाल, प्रभारी डॉक्टर।


Body: जिला चिकित्सा विभाग के अधीन साल भर पहले मातृ शिशु अस्पताल की शुरुआत की गई लेकिन लोगों के नहीं पहुंचने के कारण मेडिकल कॉलेज से संबंध करके इस मातृ शिशु अस्पताल को संचालित किया जा रहा है। कहने को तो सुपर स्पेशलिटी के तर्ज पर करोड़ों की लागत से साल भर पहले अस्पताल बनाया गया। लेकिन 100 बिस्तर वाले अस्पताल में गिनती के ही स्टाफ हैं वर्तमान में 25 से 30 कर्मचारी हैं। जबकी 20 से 30 तो डॉक्टर ही होने थे वही 50 से 60 नर्स और उतने ही आया और सफाई कर्मी की आवश्यकता है लेकिन चंद लोगों के भरोसे ही 100 बिस्तर का मातृ शिशु अस्पताल चलाया जा रहा है।

पूरे मामले में अस्पताल के प्रभारी डॉ का कहना है कि शहर से दूर होने के कारण लोग वहां तक नहीं जाते और आवागमन के लिए वाहन की सुविधा भी नहीं है ऐसे में कुछ लोग अपनी ही निजी वाहनों से वहां तक पहुंचते हैं। अस्पताल को खुले हुए लगभग साल भर हो गया जिसमें 13 सफल डिलीवरी की गई है जबकि लगभग 550 महिलाओं के नसबंदी की गई है। फिलहाल अस्पताल में सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं डाक्टर और स्टाफ की कमी के कारण कुछ समस्याएं आती है लेकिन जितने स्टाफ हैं 3 पाली में ड्यूटी करके 24 घंटे सेवा देने की कोशिश कर रहे हैं।


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