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रायगढ़: कभी सैकड़ों एकड़ में होती थी सिंचाई, आज मरम्मत और सफाई के लिए तरस रहा गोलाबंद तालाब

छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर बने गोलाबंद तालाब की स्थिति दयनीय है. रायगढ़ जिला प्रशासन और सरकार की उदासीनता का ही नतीजा है कि जिस तालाब से कभी सैकड़ों एकड़ खेतों की सिंचाई होती थी, वो आज मरम्मत और साफ-सफाई के लिए तरस रहा है.

wastage of pond water
व्यर्थ बह रहा तालाब का पानी
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Published : Nov 7, 2020, 10:42 AM IST

Updated : Nov 7, 2020, 11:16 AM IST

रायगढ़: सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र के बरमकेला विकासखंड अंतर्गत 127 एकड़ का गोलाबंद तालाब है. ये तालाब बड़े नवापारा से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर है. इसका निर्माण 1957 में ओडिशा के सराईपाली गांव के पास हुआ था. इसे बनाने का मकसद किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना था. चूंकि ये तालाब दोनों राज्यों की सीमा पर बना है, इसलिए इसका नाम गोलाबंद तालाब है. ओडिशा के किसान इस तालाब के पानी का उपयोग रबी फसल की सिंचाई में करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के किसान अल्प वर्षा की स्थिति में खरीफ सीजन में फसलों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. हालांकि लंबे समय से छत्तीसगढ़ सीमा में बनी नहर की मरम्मत नहीं हुई है. इस तरफ के हिस्से की साफ-सफाई और गहरीकरण नहीं होने से तालाब का पानी वर्तमान में किसानों के खेत तक पानी नही पहुंच पा रहा है. आसपास के किसानों ने कई बार शासन-प्रशासन से नहर की मरम्मत की मांग की, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिससे किसानों में नाराजगी है.

golaband pond
गोलाबंद तालाब
तालाब का 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में
तालाब का 60 फीसदी भाग ओडिशा और 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में है. ओवरफ्लो होकर बहने वाला पानी भी छत्तीसगढ़ की जमीन पर नाले के रूप में प्रवाहित हो रहा है. बिना किसी अनुबंध के ओडिशा सरकार ने कई एनीकट बनवा लिए हैं, हालांकि इन एनीकट का लाभ दोनों क्षेत्र के लोग उठाते हैं. यदि छत्तीसगढ़ सरकार इस तालाब के अपने हिस्से की भाग की सफाई के साथ गहरीकरण और नहरों की मरम्मत कर लेती है, तो बरमकेला अंचल को इसका सीधा लाभ मिलेगा.

पत्थर खदान से निकलने वाले पानी से फसलों पर लगा ग्रहण, मजबूर किसानों ने सरकार से की ये मांग

1900 एकड़ फसल की होती थी सिंचाई

गोलाबंद तालाब से छत्तीसगढ़ के बड़े नावापारा, खैरगड़ी कोतरा, अमलीपाली, केनाभांठा, पंडरीपानी, विक्रमपाली के 1 हजार से अधिक किसानों के 1900 एकड़ खेत की सिंचाई होती है. नहर के माध्यम से खरीफ फसलों की सिंचाई की जाती है. लेकिन जल संसाधन विभाग की लापरवाही के कारण छत्तीसगढ़ सीमा वाले भाग गाद से पट गए हैं और भारी मात्रा में बेशरम के पौधे उग आए हैं, जिससे सिंचाई व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.

Negligence regarding pond cleaning
127 एकड़ में बना तालाब
व्यर्थ बह रहा गोलाबंद तालाब का पानीओडिशा के सराईपाली के किसानों को खरीफ सीजन में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इन्हें कुम्भो डैम से पर्याप्त पानी मिल जाता है, जबकि रबी फसल में अधिकांश किसान इसके पानी का उपयोग करते हैं. जब से छत्तीसगढ़ सीमा में बने नहर और एनीकट टूटे हैं, तब से पानी व्यर्थ ही बह जा रहा है. अगर इसमें बने एनीकट और नहर की मरम्मत कर दी जाए, तो बेकार बहने वाला पानी सीधे किसानों के खेत में पहुंच जाता. ये खरीफ फसल के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता और किसानों को बरसाती फसल को बचाने के लिए जद्दोजहद नहीं करना पड़ता.
Negligence regarding pond cleaning
मरम्मत और सफाई के लिए तरस रहा गोलाबंद तालाब

रायपुर: निगम की सामान्य सभा में वीडियो देखने में मशगूल रहे BJP पार्षद, कांग्रेस बता रही निंदनीय

एक बार मरम्मत कर सुध लेना भूला जिला प्रशासन

जब मध्यप्रदेश से अलग होकर सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो किसानों में उम्मीद जगी कि गोलाबंद तालाब का गहरीकरण होगा, साथ ही सफाई के साथ नहर निर्माण भी होगा. इसकी मांग किसान लगातार इतने सालों में करते रहे हैं. 2005 में तत्कालीन कलेक्टर ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए 45 लाख रुपए की स्वीकृति देकर निर्माण का जिम्मा जलसंसाधन विभाग को सौंपकर 2 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा कराया, लेकिन उसके बाद से आज तक न तो जलसंसाधन विभाग ने देखरेख की और न जिला प्रशासन ने सुध ली.

रायगढ़: सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र के बरमकेला विकासखंड अंतर्गत 127 एकड़ का गोलाबंद तालाब है. ये तालाब बड़े नवापारा से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर है. इसका निर्माण 1957 में ओडिशा के सराईपाली गांव के पास हुआ था. इसे बनाने का मकसद किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना था. चूंकि ये तालाब दोनों राज्यों की सीमा पर बना है, इसलिए इसका नाम गोलाबंद तालाब है. ओडिशा के किसान इस तालाब के पानी का उपयोग रबी फसल की सिंचाई में करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के किसान अल्प वर्षा की स्थिति में खरीफ सीजन में फसलों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. हालांकि लंबे समय से छत्तीसगढ़ सीमा में बनी नहर की मरम्मत नहीं हुई है. इस तरफ के हिस्से की साफ-सफाई और गहरीकरण नहीं होने से तालाब का पानी वर्तमान में किसानों के खेत तक पानी नही पहुंच पा रहा है. आसपास के किसानों ने कई बार शासन-प्रशासन से नहर की मरम्मत की मांग की, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिससे किसानों में नाराजगी है.

golaband pond
गोलाबंद तालाब
तालाब का 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ मेंतालाब का 60 फीसदी भाग ओडिशा और 40 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में है. ओवरफ्लो होकर बहने वाला पानी भी छत्तीसगढ़ की जमीन पर नाले के रूप में प्रवाहित हो रहा है. बिना किसी अनुबंध के ओडिशा सरकार ने कई एनीकट बनवा लिए हैं, हालांकि इन एनीकट का लाभ दोनों क्षेत्र के लोग उठाते हैं. यदि छत्तीसगढ़ सरकार इस तालाब के अपने हिस्से की भाग की सफाई के साथ गहरीकरण और नहरों की मरम्मत कर लेती है, तो बरमकेला अंचल को इसका सीधा लाभ मिलेगा.

पत्थर खदान से निकलने वाले पानी से फसलों पर लगा ग्रहण, मजबूर किसानों ने सरकार से की ये मांग

1900 एकड़ फसल की होती थी सिंचाई

गोलाबंद तालाब से छत्तीसगढ़ के बड़े नावापारा, खैरगड़ी कोतरा, अमलीपाली, केनाभांठा, पंडरीपानी, विक्रमपाली के 1 हजार से अधिक किसानों के 1900 एकड़ खेत की सिंचाई होती है. नहर के माध्यम से खरीफ फसलों की सिंचाई की जाती है. लेकिन जल संसाधन विभाग की लापरवाही के कारण छत्तीसगढ़ सीमा वाले भाग गाद से पट गए हैं और भारी मात्रा में बेशरम के पौधे उग आए हैं, जिससे सिंचाई व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.

Negligence regarding pond cleaning
127 एकड़ में बना तालाब
व्यर्थ बह रहा गोलाबंद तालाब का पानीओडिशा के सराईपाली के किसानों को खरीफ सीजन में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इन्हें कुम्भो डैम से पर्याप्त पानी मिल जाता है, जबकि रबी फसल में अधिकांश किसान इसके पानी का उपयोग करते हैं. जब से छत्तीसगढ़ सीमा में बने नहर और एनीकट टूटे हैं, तब से पानी व्यर्थ ही बह जा रहा है. अगर इसमें बने एनीकट और नहर की मरम्मत कर दी जाए, तो बेकार बहने वाला पानी सीधे किसानों के खेत में पहुंच जाता. ये खरीफ फसल के लिए किसी वरदान से कम नहीं होता और किसानों को बरसाती फसल को बचाने के लिए जद्दोजहद नहीं करना पड़ता.
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मरम्मत और सफाई के लिए तरस रहा गोलाबंद तालाब

रायपुर: निगम की सामान्य सभा में वीडियो देखने में मशगूल रहे BJP पार्षद, कांग्रेस बता रही निंदनीय

एक बार मरम्मत कर सुध लेना भूला जिला प्रशासन

जब मध्यप्रदेश से अलग होकर सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो किसानों में उम्मीद जगी कि गोलाबंद तालाब का गहरीकरण होगा, साथ ही सफाई के साथ नहर निर्माण भी होगा. इसकी मांग किसान लगातार इतने सालों में करते रहे हैं. 2005 में तत्कालीन कलेक्टर ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए 45 लाख रुपए की स्वीकृति देकर निर्माण का जिम्मा जलसंसाधन विभाग को सौंपकर 2 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा कराया, लेकिन उसके बाद से आज तक न तो जलसंसाधन विभाग ने देखरेख की और न जिला प्रशासन ने सुध ली.

Last Updated : Nov 7, 2020, 11:16 AM IST
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