रायगढ़: सारंगढ़ विधानसभा क्षेत्र के बरमकेला विकासखंड अंतर्गत 127 एकड़ का गोलाबंद तालाब है. ये तालाब बड़े नवापारा से जुड़ा हुआ है और छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर है. इसका निर्माण 1957 में ओडिशा के सराईपाली गांव के पास हुआ था. इसे बनाने का मकसद किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना था. चूंकि ये तालाब दोनों राज्यों की सीमा पर बना है, इसलिए इसका नाम गोलाबंद तालाब है. ओडिशा के किसान इस तालाब के पानी का उपयोग रबी फसल की सिंचाई में करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के किसान अल्प वर्षा की स्थिति में खरीफ सीजन में फसलों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे. हालांकि लंबे समय से छत्तीसगढ़ सीमा में बनी नहर की मरम्मत नहीं हुई है. इस तरफ के हिस्से की साफ-सफाई और गहरीकरण नहीं होने से तालाब का पानी वर्तमान में किसानों के खेत तक पानी नही पहुंच पा रहा है. आसपास के किसानों ने कई बार शासन-प्रशासन से नहर की मरम्मत की मांग की, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिससे किसानों में नाराजगी है.
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1900 एकड़ फसल की होती थी सिंचाई
गोलाबंद तालाब से छत्तीसगढ़ के बड़े नावापारा, खैरगड़ी कोतरा, अमलीपाली, केनाभांठा, पंडरीपानी, विक्रमपाली के 1 हजार से अधिक किसानों के 1900 एकड़ खेत की सिंचाई होती है. नहर के माध्यम से खरीफ फसलों की सिंचाई की जाती है. लेकिन जल संसाधन विभाग की लापरवाही के कारण छत्तीसगढ़ सीमा वाले भाग गाद से पट गए हैं और भारी मात्रा में बेशरम के पौधे उग आए हैं, जिससे सिंचाई व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है.
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एक बार मरम्मत कर सुध लेना भूला जिला प्रशासन
जब मध्यप्रदेश से अलग होकर सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो किसानों में उम्मीद जगी कि गोलाबंद तालाब का गहरीकरण होगा, साथ ही सफाई के साथ नहर निर्माण भी होगा. इसकी मांग किसान लगातार इतने सालों में करते रहे हैं. 2005 में तत्कालीन कलेक्टर ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए 45 लाख रुपए की स्वीकृति देकर निर्माण का जिम्मा जलसंसाधन विभाग को सौंपकर 2 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा कराया, लेकिन उसके बाद से आज तक न तो जलसंसाधन विभाग ने देखरेख की और न जिला प्रशासन ने सुध ली.