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SPECIAL: डेयरी किसानों पर कोरोना की मार, दूध के नहीं मिल रहे खरीदार !

देशभर में कोरोना वायरस ने रोजगार को ठंडा कर दिया था. बाजार बंद थे, लोग परेशान थे. व्यापारी समेत सबके चेहरों में मायूसी थी. इस कोरोना काल में आम व्यापार के साथ दूध व्यापार भी ठप रहा. दूध किसान पहले पैकेट वाले दूध से परेशान थे. अब कोरोना ने आर्थिक मंदी से सामना करा दिया है. दूध उत्पादकों में निराशा देखने को मिल रही है.

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कोरोना की कहर से 'फटा' दूध का व्यापार
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Published : Nov 15, 2020, 12:53 PM IST

रायगढ़: जिले में दूध उत्पादकों को इन दिनों कोरोना की वजह से दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. पहले पैकेट वाली दूध से कारोबार में मंदी आई, तो वहीं अब किसानों के सामने कोरोना की वजह से आर्थिक मंदी आ गई है. अब ऐसे में किसानों के सामने मवेशियों को दाना और पोषक खाद्य देने की चिंता सता रही है. किसानों का कहना है कि मवेशियों को चारा नहीं मिलने के कारण दूध उत्पादन में कमी हुई है.

डेयरी किसानों पर कोरोना की मार

ग्रामीण क्षेत्रों में चिल्लर दूध उत्पादक दूध को मंडी में बेच देते हैं. वहीं दूध पैक होकर किसानों से खरीदी कीमत से दोगुनी दर पर बाजारों में बिकता है. ऐसे में जो बड़े दूध किसान हैं, उनके सामने बड़ी चुनौती साबित होती है. जहां इन किसानों के दूध का सही कीमत नहीं मिल पाती है, जितने भी पैकेजिंग दूध है. वह 200 ML के लिए भी 15 से 18 रुपए वसूलते हैं, तो वहीं किसानों का दूध 20-25 रुपए में आधा लीटर मिल जाता है. बावजूद इसके किसानों को निराशा हाथ लगती है.

SPECIAL: प्रदूषण से परेशान रायगढ़वासियों के लिए नई मुसीबत, काली राख से पटा शहर

आधी रह गई बिक्री

रायगढ़ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में लॉकडाउन की वजह से दूध उत्पादक किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. पहले तो पैकेट दूध ने व्यापार को मंदा कर दिया था. अब कोरोना महामारी ने रोजगार को ठंडा कर दिया है. दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष बताते हैं कि पहले से दूध का उत्पादन आधा रह गया है. खुद उनके डेयरी में आधे किसान ही दूध बेचने आ रहे हैं. मवेशियों को खिलाने के लिए पौष्टिक आहार और दाने की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में किसान परेशान दिख रहे हैं.

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दूध उत्पादन छोड़ कर रहे हैं दूसरा काम

किसानों का कहना है कि जब से पैकेट वाला दूध की बिक्री बाजारों में शुरू हुई है, तब से छोटे व्यापारी और दूध उत्पादकों को उनके मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा है. गांव घर में जाकर के कम कीमत में दूध खरीद ले रहे हैं, जिससे चिल्लर दूध विक्रेता छोटे किसानों तक दुग्ध नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इससे छोटे डेयरी संचालकों की दुकान बंद हो गई है, तो वहीं जो किसान घरों में दूध बेच रहे हैं. उनको कम दामों में सौदा करना पड़ रहा है. ऐसे में अब छोटे डेयरी संचालक दुकान बंद कर खेती किसानी और अन्य काम में जुट गए हैं. किसी भी तरह अपने परिवार चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

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डिब्बा बंद और खुले दूध के कीमतों में रहती है अंतर

वहीं ग्राहकों ने बताया कि बंद डिब्बे के दूध और खुले दूध की कीमतों में काफी अंतर रहता है. इससे ज्यादातर लोग अब खुला दूध का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन कुछ समय पहले डिब्बा बंधुओं को ब्रांड और उनकी शुद्धता मानकर ज्यादा उपयोग किया जाता था. अभी भी कई लोग मानते हैं कि सील पैक दूध ज्यादा सुरक्षित और अच्छा रहता है, जबकि खुले किसानों के दूध में पानी या दूध पाउडर की मिलावट हो सकती है. यही वजह है कि आज भी मध्यम वर्गीय और उससे ऊपर के लोग ब्रांड वाले पैकेट दूध लेना पसंद करते हैं. जबकि सभी दूध उन्हीं किसानों से खरीदा जाता है, जो गांव में गाय पालकर निकालते हैं. इसका सबसे ज्यादा नुकसान छोटे डेयरी संचालकों को हुआ है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में दूध का बिजनेस कर रहे थे.

क्या कहते हैं रायगढ़ के दूध उत्पादक संघ

रायगढ़ दूध उत्पादक संघ के अध्यक्ष जगदीश ने बताया कि पहले तो दूध के व्यापार को पैकेट दूध ने प्रभावित किया. उसके बाद अब कोरोना ने धराशायी कर दिया. लगभग 25 से 27 हजार लीटर प्रतिदिन रायगढ़ शहरी क्षेत्रों में खरीदी होती थी, लेकिन आज यह आधी रह गई है. दूध उत्पादक किसानों के कम होने की वजह बढ़ती महंगाई और बाजार में दूध का सही कीमत न मिल पाना है. इसके साथ लोगों में दूध के खपत की कमी भी मुख्य वजह है, क्योंकि खपत नहीं होगी तो बिक्री नहीं होगी, जिससे किसानों के पास दूध स्टॉक में रह जाएगा. इसलिए यह रोजगार भी धीरे-धीरे छूटता जा रहा है.

रायगढ़: जिले में दूध उत्पादकों को इन दिनों कोरोना की वजह से दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. पहले पैकेट वाली दूध से कारोबार में मंदी आई, तो वहीं अब किसानों के सामने कोरोना की वजह से आर्थिक मंदी आ गई है. अब ऐसे में किसानों के सामने मवेशियों को दाना और पोषक खाद्य देने की चिंता सता रही है. किसानों का कहना है कि मवेशियों को चारा नहीं मिलने के कारण दूध उत्पादन में कमी हुई है.

डेयरी किसानों पर कोरोना की मार

ग्रामीण क्षेत्रों में चिल्लर दूध उत्पादक दूध को मंडी में बेच देते हैं. वहीं दूध पैक होकर किसानों से खरीदी कीमत से दोगुनी दर पर बाजारों में बिकता है. ऐसे में जो बड़े दूध किसान हैं, उनके सामने बड़ी चुनौती साबित होती है. जहां इन किसानों के दूध का सही कीमत नहीं मिल पाती है, जितने भी पैकेजिंग दूध है. वह 200 ML के लिए भी 15 से 18 रुपए वसूलते हैं, तो वहीं किसानों का दूध 20-25 रुपए में आधा लीटर मिल जाता है. बावजूद इसके किसानों को निराशा हाथ लगती है.

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आधी रह गई बिक्री

रायगढ़ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में लॉकडाउन की वजह से दूध उत्पादक किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. पहले तो पैकेट दूध ने व्यापार को मंदा कर दिया था. अब कोरोना महामारी ने रोजगार को ठंडा कर दिया है. दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष बताते हैं कि पहले से दूध का उत्पादन आधा रह गया है. खुद उनके डेयरी में आधे किसान ही दूध बेचने आ रहे हैं. मवेशियों को खिलाने के लिए पौष्टिक आहार और दाने की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में किसान परेशान दिख रहे हैं.

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दूध उत्पादन छोड़ कर रहे हैं दूसरा काम

किसानों का कहना है कि जब से पैकेट वाला दूध की बिक्री बाजारों में शुरू हुई है, तब से छोटे व्यापारी और दूध उत्पादकों को उनके मेहनत का फल नहीं मिल पा रहा है. गांव घर में जाकर के कम कीमत में दूध खरीद ले रहे हैं, जिससे चिल्लर दूध विक्रेता छोटे किसानों तक दुग्ध नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इससे छोटे डेयरी संचालकों की दुकान बंद हो गई है, तो वहीं जो किसान घरों में दूध बेच रहे हैं. उनको कम दामों में सौदा करना पड़ रहा है. ऐसे में अब छोटे डेयरी संचालक दुकान बंद कर खेती किसानी और अन्य काम में जुट गए हैं. किसी भी तरह अपने परिवार चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

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डिब्बा बंद और खुले दूध के कीमतों में रहती है अंतर

वहीं ग्राहकों ने बताया कि बंद डिब्बे के दूध और खुले दूध की कीमतों में काफी अंतर रहता है. इससे ज्यादातर लोग अब खुला दूध का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन कुछ समय पहले डिब्बा बंधुओं को ब्रांड और उनकी शुद्धता मानकर ज्यादा उपयोग किया जाता था. अभी भी कई लोग मानते हैं कि सील पैक दूध ज्यादा सुरक्षित और अच्छा रहता है, जबकि खुले किसानों के दूध में पानी या दूध पाउडर की मिलावट हो सकती है. यही वजह है कि आज भी मध्यम वर्गीय और उससे ऊपर के लोग ब्रांड वाले पैकेट दूध लेना पसंद करते हैं. जबकि सभी दूध उन्हीं किसानों से खरीदा जाता है, जो गांव में गाय पालकर निकालते हैं. इसका सबसे ज्यादा नुकसान छोटे डेयरी संचालकों को हुआ है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में दूध का बिजनेस कर रहे थे.

क्या कहते हैं रायगढ़ के दूध उत्पादक संघ

रायगढ़ दूध उत्पादक संघ के अध्यक्ष जगदीश ने बताया कि पहले तो दूध के व्यापार को पैकेट दूध ने प्रभावित किया. उसके बाद अब कोरोना ने धराशायी कर दिया. लगभग 25 से 27 हजार लीटर प्रतिदिन रायगढ़ शहरी क्षेत्रों में खरीदी होती थी, लेकिन आज यह आधी रह गई है. दूध उत्पादक किसानों के कम होने की वजह बढ़ती महंगाई और बाजार में दूध का सही कीमत न मिल पाना है. इसके साथ लोगों में दूध के खपत की कमी भी मुख्य वजह है, क्योंकि खपत नहीं होगी तो बिक्री नहीं होगी, जिससे किसानों के पास दूध स्टॉक में रह जाएगा. इसलिए यह रोजगार भी धीरे-धीरे छूटता जा रहा है.

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