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नारायणपुर के 80 फीसदी किसान मुनाफा छोड़ जैविक खेती पर देते हैं जोर

अबूझमाड़ के किसान चुनिंदा फसल ही लगाते हैं. यहां के 80 फीसदी किसान जैविक खेती कर रहे हैं.

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Published : Aug 20, 2019, 2:36 AM IST

जैविक खेती

नारायणपुर: अपने खेतों में महिलाएं जब यूं गुनगुनाते हुए फसलों से प्यार करती हैं, तो इनकी धरती झूम उठती है. खास बात ये है कि इन खेतों में ये फसल जैविक खाद से लहालहा रही है. एक तरफ जहां किसान रसायनिक खादों का इस्तेमाल कर मुनाफा कमाने पर जोर दे रहे हैं. वहीं नारायणपुर ऐसा जिला है, जहां के 80 फीसदी किसान जैविक खेती कर रहे हैं.

नारायणपुर के 80 फीसदी किसान मुनाफा छोड़ जैविक खेती पर देते हैं जोर

आपको ये जानकर और हैरानी होगी कि नारायणपुर के अबूझमाड़ में सौ फीसदी जैविक खेती पर निर्भर है. यहां किसान बिल्कुल भी रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

कैमिकल का नहीं करते हैं उपयोग

अबूझमाड़ के किसान चुनिंदा फसल ही लगाते हैं. अबूझमाड़ के जंगल, पहाड़ी और मैदानी इलाकों में धान, मक्का, कोटो, कुटकी, कोसरा, हिरवा, उड़द और जोदरी जैसी फसल किसान लगाते हैं. वहीं तुमा (देसी लौकी) झुंड़गा, देसी बरबट्टी, सेम जैसी सब्जियां भी यहां के किसान उगाते हैं. किसान अपने खेतों में बिल्कुल भी कैमिकल का उपयोग नहीं करते हैं.

जैविक खाद का सिर्फ होता है उपयोग

कृषि विभाग का कहना है कि सरकार नरवा, गरुवा, घुरुवा और बारी के तहत किसानों को कंपोस्ट खाद के इस्तेमाल की सलाह दे रही है. उन्होंने बताया कि जैविक खाद से पैदा हुई फसल और सब्जी फायदेमंद होती है. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है. कलेक्टर ने बताया कि अबूझमाड़ में रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं होता सिर्फ जैविक खाद का उपयोग होता है.

किसान घर में ही तैयार करते हैं जैविक खाद

कलेक्टर का कहना है कि 2960 किसानों का फसल बीमा हुआ था, जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा है. नारायणपुर जिला पूरी तरह से जैविक जिला घोषित है. कृषि विभाग का कहना है कि किसान घर में ही जैविक खाद तैयार करते हैं और भरपूर उत्पादन कर रहे हैं.

नारायणपुर: अपने खेतों में महिलाएं जब यूं गुनगुनाते हुए फसलों से प्यार करती हैं, तो इनकी धरती झूम उठती है. खास बात ये है कि इन खेतों में ये फसल जैविक खाद से लहालहा रही है. एक तरफ जहां किसान रसायनिक खादों का इस्तेमाल कर मुनाफा कमाने पर जोर दे रहे हैं. वहीं नारायणपुर ऐसा जिला है, जहां के 80 फीसदी किसान जैविक खेती कर रहे हैं.

नारायणपुर के 80 फीसदी किसान मुनाफा छोड़ जैविक खेती पर देते हैं जोर

आपको ये जानकर और हैरानी होगी कि नारायणपुर के अबूझमाड़ में सौ फीसदी जैविक खेती पर निर्भर है. यहां किसान बिल्कुल भी रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

कैमिकल का नहीं करते हैं उपयोग

अबूझमाड़ के किसान चुनिंदा फसल ही लगाते हैं. अबूझमाड़ के जंगल, पहाड़ी और मैदानी इलाकों में धान, मक्का, कोटो, कुटकी, कोसरा, हिरवा, उड़द और जोदरी जैसी फसल किसान लगाते हैं. वहीं तुमा (देसी लौकी) झुंड़गा, देसी बरबट्टी, सेम जैसी सब्जियां भी यहां के किसान उगाते हैं. किसान अपने खेतों में बिल्कुल भी कैमिकल का उपयोग नहीं करते हैं.

जैविक खाद का सिर्फ होता है उपयोग

कृषि विभाग का कहना है कि सरकार नरवा, गरुवा, घुरुवा और बारी के तहत किसानों को कंपोस्ट खाद के इस्तेमाल की सलाह दे रही है. उन्होंने बताया कि जैविक खाद से पैदा हुई फसल और सब्जी फायदेमंद होती है. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है. कलेक्टर ने बताया कि अबूझमाड़ में रसायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं होता सिर्फ जैविक खाद का उपयोग होता है.

किसान घर में ही तैयार करते हैं जैविक खाद

कलेक्टर का कहना है कि 2960 किसानों का फसल बीमा हुआ था, जो पिछले साल की तुलना में ज्यादा है. नारायणपुर जिला पूरी तरह से जैविक जिला घोषित है. कृषि विभाग का कहना है कि किसान घर में ही जैविक खाद तैयार करते हैं और भरपूर उत्पादन कर रहे हैं.

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एंकर -नारायणपुरा आज के आधुनिक जमाने में जहां किसान पैदावार को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल करके ढेर सारा मुनाफा कमा रहा है वहीं आज के जमाने में जैविक खेती करना एक चैलेंज का काम है जैविक खेती करने के लिए कड़ी मेहनत और बहुत ज्यादा देखरेख की जरूरत होती है फिर भी नारायणपुर जिला एक ऐसा जिला है जहां अस्सी परसेंट किसान जैविक खेती कर रही है और अपना जीविका चला रहा है वही नारायणपुर के दूसरा ब्लॉक अबूझमाड़ में हंड्रेड परसेंट जैविक खेती पर निर्भर है कई किसान तो रासायनिक खाद का नाम भी नहीं सुने ना दवाई के बारे में जानते हैं इस कारण से क्षेत्रों को अबूझ कहा जाता है जहां के लोग देश दुनिया के बारे में कम ही जानते हैं क्योंकि उनका आना-जाना शहरों में नहीं होता वह अपने गांव तक ही सीमित रहते हैं जिसके कारण बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है उसके बारे में उनको कोई जानकारी नहीं होता कुछ ही सालों से रास्ता का जाल बढ़ जाने से भुज मार के कुछ क्षेत्र से लोगों का आना जाना शहरों तक हो रहा है फिर भी आज भी ऐसे बहुत सारे गांव हैं जो बीहड़ क्षेत्र है जहां के लोग भाषा बोली और बाहरी दुनिया में क्या घट रही है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं रखते।
अगर बात करें खेती की तो अबूझमाड़ में कुछ चुनिंदा फसल ही वह गाते हैं अबूझमाड़ के जंगल और कुछ पहाड़ी मैदानी क्षेत्र में धान, मक्का ,कोदो ,कुटकी ,कोसरा, हिरवा, उड़द, जोदरी( एक प्रकार का जंगली ज्वार) सब्जी में तुमा (देसी लोकी )झुंड़गा देसी बरबट्टी ,देसी सेम जैसे फसलों का उत्पादन करता है यह फसल करने के लिए बहुत ही मेहनत भरा कार्य होता है क्योंकि इन फसलों से ज्यादा मात्रा में उत्पादन नहीं हो पाता कारण यह है की ऊपर से कोई खाद दवाई नहीं डाला जाता खाद के लिए जंगल की झाड़ियों को काटकर जला दिया जाता है और इराक में बीजों को बोया जाता है जिसके बाद वहां राख खाद का काम करके पौधों को पोषक प्रदान करता है जय पोषक से फसल में वृद्धि होती है पहाड़ों में जलाने के बाद बारिश के दिनों में बारिश से भागकर राख सड़े गले पत्ते मैदानी क्षेत्र के खेतों में जाकर मिल जाता है क्यों थोड़ा गलत था खेतों में जाकर सोना हो जाता है जिसके कारण इस क्षेत्र में अलग से कोई खाद या दवाई का इस्तेमाल नहीं करते और दूसरी बात यहां हैं यहां के किसान को मालूम है रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने से हमें नुकसान हैं और हमारी जमीन को भी नुकसान हैं जमीन हमारी कम उपजाऊ होंगे जल्दी बंजर हो जाएंगे जमीन मजबूत हार्ड हो जाएगा जिससे फसल नहीं होगा और जमीन को आदत हो जाएगा बार-बार खाद डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा इसीलिए अबूझमाड़ के किसान जैविक खेती करने पर विश्वास रखता है और बीमार रहित साग सब्जी चावल दाल खाता है जिसके बाद हॉस्पिटल जाना मेडिकल का खर्चा कम होता है।

जैविक खेती कर पर्यावरण की सुरक्षा कर रहे हैं जिले के किसान उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने उन्हें कई नुस्खे दिए सरकार की कई योजना में जैविक खाद का उपयोग करने का सलाह दिया जाता है जैविक खाद से आमदनी तो बढ़ती ही है साथ में पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं होता सरकार ने उनसे यह भी कहा कि उनकी फसल को तुरंत खरीद लिया जाएगा लेकिन जब किसान सरकार की मंशा पर खरे उतरे तो सरकार ने अपना यह तरीका पहुंच लंबे समय से अपना आ रही है जैविक चावल का किसानों के खेत खलियाननो में है लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे ना ही उस चावल की बिक्री के लिए कोई सरकारी बंदोबस्त किया गया है
जैविक खेती क्या है कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों की अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसल चक्र हरी खाद कंपोस्ट आदि का प्रयोग करती है वहां जैविक खेती है।
संपूर्ण विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों जहरीले कीटनाशकों का उपयोग प्रकृति के जैविक आर और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र को प्रभावित करता है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है साथ ही वातावरण प्रदूषण होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण केस अनुरूप खेती की जाती थी जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरंतर चलता रहता था जिसके फलस्वरूप जल भूमि वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों लिखा गया है

जैविक खेती में भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है भूमि की चल धारण क्षमता बढ़ती है भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है
पर्यावरण के लिए भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारी में कमी आती है फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है।

बाइट -पदम सिंह एलमा कलेक्टर नारायणपुर
बाइट -आर नागेश उप अभियंता कृषि विभाग
बाइट- राजेश कुमार नाग छोटे डोंगर कृषक
बाइक सोनी बाई नारायणपुर पारंपरिक कृषक



Body:cg_nyp_01_jaivik_kheti_kar_pryawarn_ki_racsha_CG10020


Conclusion:cg_nyp_01_jaivik_kheti_kar_pryawarn_ki_racsha_CG10020
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