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रावघाट संघर्ष समिति अब लड़ेगी कानूनी लड़ाई

रावघाट संघर्ष समिति के अंतर्गत 22 गांव के ग्रामीणों ने रविवार को रावबाबा मंदिर में बैठक की. जिसमें 500 से ज्यादा ग्रामीण शामिल हुए. बैठक में पांचवी अनुसूची क्षेत्र, पेसा कानून, सहित कई विषयों पर चर्चा हुई.

Rawghat Sangharsh Samiti held a meeting
रावघाट संघर्ष समिति की बैठक
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Published : Mar 22, 2021, 2:15 AM IST

नारायणपुर: उत्तर बस्तर के कांकेर और नारायणपुर जिले में स्थित रावघाट की पहाड़ियों में लौह अयस्क के छह ब्लॉक हैं. जिनमें 712.48 मिलियन टन लौह अयस्क होने का अनुमान है. BSP के ड्रीम प्रोजेक्ट रावघाट में आयरन ओर की माइनिंग शुरू हो गई है. प्रबंधन को यह उपलब्धि करीब 12 साल के संघर्ष के बाद हासिल हुई है. रावघाट अगले 50 साल तक BSP के आयरन ओर की डिमांड पूरी करेगा. रावघाट संघर्ष समिति के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के ग्रामीणों की मांग है कि क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और बेरोजगार युवक-युवतियों को रोजगार उपलब्ध कराएं. लेकिन कई महीनों के संघर्ष के बाद भी अब तक BSP और शासन-प्रशासन ने ग्रामीणों को ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई है. जिसे लेकर ग्रामीणों में नाराजगी देखी जा रही है. अब ग्रामीण पांचवी अनुसूची क्षेत्र के पेसा कानून अंतर्गत अपने हक की लड़ाई लड़ने उग्र होकर सामने आ रहे हैं.

रावघाट संघर्ष समिति की बैठक

ग्रामीणों का कहना है कि वे BSP के गोद ग्राम के अंतर्गत आते हैं. जिसमें 22 से ज्यादा गांव शामिल हैं. रावघाट माइनिंग क्षेत्र के ग्रामीण सुविधाओं और अधिकार के संबंध में कई बार ज्ञापन और अन्य माध्यम से शासन प्रशासन को अवगत करा चुके हैं. कई महीनें बीत गए लेकिन इसमें अब तक कोई समस्या का समाधान नहीं हो रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि वे दूसरे कानूनी तरीके से लड़ाई लड़ेंगे. क्योंकि अब शासन प्रशासन से लड़ना कोई मतलब का नहीं है.

बैठक में रखी गई मांगें:

  • पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा रावघाट माइंस क्षेत्र में संवैधानिक अनुच्छेद का उल्लेख कर संविधान के प्रति आदिवासियों के द्वारा अपनी अधिकार की बात करते हुए संवैधानिक अधिकारों के संबंध में चर्चा किया.
  • ग्राम सभा को अपने गांव पर नियंत्रण की शक्ति मिली है. खासकर अनुसूचित क्षेत्र में जो कि विधानसभा के अनुच्छेद 13(3)(2) के तहत पांचवी अनुसूची क्षेत्र में सुशासन व नियंत्रण की शक्ति उल्लेख है.

नारायणपुर: रावघाट परियोजना के प्रभावितों ने काम की गारंटी मांगी

  • अनुसूचित क्षेत्रों में गांव के लोग अपनी प्रशासनिक शक्ति को स्वपूर्ति मजबूत कर रहे हैं, जिससे देश और गांव क्षेत्र में मजबूत होगा.
  • रावघाट लोहा अयस्क खनन परियोजना रकबा लगभग 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. जिसमें क्षेत्रीय एवं ग्रामवासियों गांव गणतंत्र सरकार से अनुमति लिया जाए. मतलब पर्यावरण को संरक्षित किया जाए. जिसमें देवी देवता, रावबाबा, नदी नाला को देखते हुए स्थानांतरण न किया जाए.
  • कोई भी सरकार रावघाट लोहा खदान में आउटसोर्सिंग पूर्णता बंद करे. जैसे गुड़गांव में देव माइनिंग महिंद्र कंपनी और बैयहासाले भट क्षेत्र में एसीबी कंपनी लीज में दिया गया है इसे रद्द किया जाए.
  • रावघाट माइनिंग क्षेत्र को आदर्श ग्राम में विकसित किया जाए.

क्या है पेसा कानून

पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक और परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर असाधारण जोर देता है. इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना और सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी शामिल है. कानून की धारा 4 (अ) और 4 (द) के मुताबिक किसी राज्य की पंचायत से संबंधित कोई विधि उनके प्रथागत कानून, सामाजिक और धार्मिक रीतियों के साथ सामुदायिक संसाधनों के परंपरागत प्रबंध, व्यवहारों के अनुरूप होगी. हर ग्राम सभा लोगों की परंपराओं और प्रथाओं के संरक्षण, संवर्द्धन, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवादों को प्रथागत ढंग से निपटाने में सक्षम होंगी.

नारायणपुर: उत्तर बस्तर के कांकेर और नारायणपुर जिले में स्थित रावघाट की पहाड़ियों में लौह अयस्क के छह ब्लॉक हैं. जिनमें 712.48 मिलियन टन लौह अयस्क होने का अनुमान है. BSP के ड्रीम प्रोजेक्ट रावघाट में आयरन ओर की माइनिंग शुरू हो गई है. प्रबंधन को यह उपलब्धि करीब 12 साल के संघर्ष के बाद हासिल हुई है. रावघाट अगले 50 साल तक BSP के आयरन ओर की डिमांड पूरी करेगा. रावघाट संघर्ष समिति के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के ग्रामीणों की मांग है कि क्षेत्र के लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और बेरोजगार युवक-युवतियों को रोजगार उपलब्ध कराएं. लेकिन कई महीनों के संघर्ष के बाद भी अब तक BSP और शासन-प्रशासन ने ग्रामीणों को ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई है. जिसे लेकर ग्रामीणों में नाराजगी देखी जा रही है. अब ग्रामीण पांचवी अनुसूची क्षेत्र के पेसा कानून अंतर्गत अपने हक की लड़ाई लड़ने उग्र होकर सामने आ रहे हैं.

रावघाट संघर्ष समिति की बैठक

ग्रामीणों का कहना है कि वे BSP के गोद ग्राम के अंतर्गत आते हैं. जिसमें 22 से ज्यादा गांव शामिल हैं. रावघाट माइनिंग क्षेत्र के ग्रामीण सुविधाओं और अधिकार के संबंध में कई बार ज्ञापन और अन्य माध्यम से शासन प्रशासन को अवगत करा चुके हैं. कई महीनें बीत गए लेकिन इसमें अब तक कोई समस्या का समाधान नहीं हो रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि वे दूसरे कानूनी तरीके से लड़ाई लड़ेंगे. क्योंकि अब शासन प्रशासन से लड़ना कोई मतलब का नहीं है.

बैठक में रखी गई मांगें:

  • पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा रावघाट माइंस क्षेत्र में संवैधानिक अनुच्छेद का उल्लेख कर संविधान के प्रति आदिवासियों के द्वारा अपनी अधिकार की बात करते हुए संवैधानिक अधिकारों के संबंध में चर्चा किया.
  • ग्राम सभा को अपने गांव पर नियंत्रण की शक्ति मिली है. खासकर अनुसूचित क्षेत्र में जो कि विधानसभा के अनुच्छेद 13(3)(2) के तहत पांचवी अनुसूची क्षेत्र में सुशासन व नियंत्रण की शक्ति उल्लेख है.

नारायणपुर: रावघाट परियोजना के प्रभावितों ने काम की गारंटी मांगी

  • अनुसूचित क्षेत्रों में गांव के लोग अपनी प्रशासनिक शक्ति को स्वपूर्ति मजबूत कर रहे हैं, जिससे देश और गांव क्षेत्र में मजबूत होगा.
  • रावघाट लोहा अयस्क खनन परियोजना रकबा लगभग 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. जिसमें क्षेत्रीय एवं ग्रामवासियों गांव गणतंत्र सरकार से अनुमति लिया जाए. मतलब पर्यावरण को संरक्षित किया जाए. जिसमें देवी देवता, रावबाबा, नदी नाला को देखते हुए स्थानांतरण न किया जाए.
  • कोई भी सरकार रावघाट लोहा खदान में आउटसोर्सिंग पूर्णता बंद करे. जैसे गुड़गांव में देव माइनिंग महिंद्र कंपनी और बैयहासाले भट क्षेत्र में एसीबी कंपनी लीज में दिया गया है इसे रद्द किया जाए.
  • रावघाट माइनिंग क्षेत्र को आदर्श ग्राम में विकसित किया जाए.

क्या है पेसा कानून

पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक और परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर असाधारण जोर देता है. इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना और सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी शामिल है. कानून की धारा 4 (अ) और 4 (द) के मुताबिक किसी राज्य की पंचायत से संबंधित कोई विधि उनके प्रथागत कानून, सामाजिक और धार्मिक रीतियों के साथ सामुदायिक संसाधनों के परंपरागत प्रबंध, व्यवहारों के अनुरूप होगी. हर ग्राम सभा लोगों की परंपराओं और प्रथाओं के संरक्षण, संवर्द्धन, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवादों को प्रथागत ढंग से निपटाने में सक्षम होंगी.

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