नारायणपुर : सरकार विकास के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत पर हालात बद से बदतर हैं. इसकी गवाही नारायणपुर जिले का मरकाबेड़ा गांव दे रहा है. जहां आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी बुनियादी जरूरतों का कटोरा थामे ग्रामीण आज भी वहीं के वहीं खड़े हैं. यहां न तो सड़कें हैं न ही कोई अस्पताल है, जिससे मजबूर होकर ग्रामीण बैगाओं से झाड़ फूंक कराने को मजबूर हैं. ये तस्वीरें सरकार के मुंह पर तमाचा हैं. पहले तो इलाज मयस्सर नहीं और दूसरी तरफ ये अपना मरीज किसी डॉक्टर के पास नहीं बल्कि बैगा के पास ले जा रहे हैं.
ये तस्वीर मरकाबेड़ा गांव की है. आपको लकड़ी के झूलानुमा खाट पर कुछ लदा सा दिख रहा है. वो कोई सामान नहीं है. ये एक मरीज है, जिसको सरकारी सुविधाओं की कमी से झूलानुमा लकड़ी की खाट बनाकर इलाज के लिए ले जाया जा रहा है. हैरत की बात तो ये है कि ये अस्पताल नहीं बल्कि बैगा के घर झाड़ फूंक कराने ले जा रहे हैं. ये लोग अंधविश्वास के जाल में जकडे़ हुए हैं.
न तो सड़के हैं न ही पुल
इलाके में न तो सड़कें हैं और न किसी नदी पर पुल है. यहां सरकारी योजनाओं का अभाव है. एंबुलेंस तो दूर की बात है, असुविधाओं के कारण सकरे रास्तों से बाइक निकालना भी किसी जंग से कम नहीं है.
लोग झाड़ फूंक का सहारा लेने को हैं मजबूर
हाल ये है कि जब विकास की बात आती है, तो नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने का रोना जिम्मेदार रोते हैं. सुविधाओं के अभाव में न जाने कितने लोग ऐसे ही दम तोड़ रहे हैं. अस्पताल और डॉक्टर न होने की वजह से या तो ये लोग झाड़ फूंक का सहारा लेते हैं या फिर मरीज को जान से हाथ धोना पड़ता है. पता नहीं सरकारी नुमाइंदों की नजर इस तरफ कब पड़ेगी.