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अद्भुत आमचो बस्तर: 1200 साल बाद आदिवासियों के भगवान का होगा पुनर्जन्म

नारायणपुर में इन दिनों एक पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. जिसमें आदिवासी अपने प्रमुख देव पाटराजाल पेन का पुनर्जन्म की रस्म अदा कर रहे हैं.

God of tribals will be reborn
परंपरा निभाते आदिवासी
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Published : Jan 14, 2021, 10:04 PM IST

नारायणपुर: अबूझमाड़ क्षेत्र में लोग आज भी अपनी आदिम सभ्यता और विशेष संस्कृति को संजोये हैं. ऐसी ही एक पुरानी परंपरा का इन दिनों निर्वहन किया जा रहा है. जिसमें आदिवासी अपने प्रमुख देव पाटराजाल पेन का पुनर्जन्म की रस्म अदा कर रहे हैं. परंपरा के मुकताबिक यह रस्म 12 पीढ़ियों के बाद निभाई जाती है. कहते हैं वे लोग बेहद ही सौभाग्शाली होते हैं जो इस रस्म के साक्षी बनते हैं.

God of tribals will be reborn
परंपरा निभाते आदिवासी

यह रस्म अदायगी अबूझमाड़ के एक गांव किया जा रहा है. इस रस्म को पूरा करने के लिए कुम्हार समुदाय के लोग नया हांडी, अनुसूचित जाति के समुदाय के लोगधागा और लोहार समुदाय के लोग नया लोहा लाकर टंगिया, चैनी बनाते हैं. यह सभी समुदाय मिलकर अपने देवता को नया रूप देकर प्राणप्रतिष्ठा करते हैं.

बारह पीढ़ियों बाद रस्म अदायगी

आदिवासी समाज में रीति-रिवाज के अनुसार कुल और गोत्र में एक पेन (देव) और आंगा ( प्रतीकात्मक चिन्ह) रूप में अपने पूर्वजों को देवता के रूप में स्थापित करते हैं. आदिवासी समाज में रावोड़ एक पवित्र स्थान होता है. जहां पर गोत्र देवता का स्थान होता है. परंपरा के अनुसार उस देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह को 12 पीढ़ियों में लगभग 1200 वर्ष बाद नया बनाया जाता है. जिसे स्थानीय बोली में 'पेन पुठिना' कहा जाता है. जिसका मतलब देवता का जन्म होना होता है. पारंपरिक ज्ञान के अनुसार गोत्र के देवताओं का प्रमुख पाटराजा देवता हैं. पाटराजा देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह बनाकर बारह पीढ़ी यानी 1200 वर्ष पूरा हो गया है. इसलिए पाटराजा देवता का पेन पुठिना का कार्यक्रम पोचावाड़ा (ओरछा) ग्राम पंचायत के रायनार विरान गांव में किया जा रहा है. ये रस्म यहां करीब 3 महीने तक चलेगा. इस रस्म में सैकड़ों लोग शामिल होंगे.

God of tribals will be reborn
परंपरा निभाते आदिवासी

पढ़ें: लंबे इंतजार के बाद जगदलपुर पहुंची 'कोविशिल्ड' की पहली खेप

लोहार और कुम्हार समाज के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका

ग्रामीणों ने बताया कार्यक्रम में सबसे पहरे लोहार समाज के लोग लोहो को आग की भट्टी में गलाकर एक कुल्हाड़ी, बसोला, चैनी तैयार करते हैं. जिसके बाद इन औजारों की मदद से लकड़ी काटी जाएगी. जिसे देवता का स्वरूप दिया जायेगा. इसके लिए लोहार कोंडागांव जिले के बेचा गांव से आयेंगे. इसके बाद कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी का मटका लाएंगे. जिसमें खाना पकाया जाएगा. कुम्हार परिवार गीदम के बारसुर से आएंगे. इस रस्म में अनूसूचित जाति के वर्ग के लोग भी शामिल होते हैं.

सदेवताओं के पुजारी करेंगे 'पेन पुठीना'

कार्यक्रम में शामिल होने वाले देवता माड़ामर (थुलथुली), विसरमर (आदेर), नड़पर (छोटेटोन्डाबेड़ा), पुगेंरटेका (गुदाड़ी), डुमे (मालेम), मुल्ले, बोमड़ा, रायगुंडा, दुखारिटे (कोड़ेर), राजकोयो, मुयमेकोला, डोलबाड़ी, पुटिगकोला देवताओं के पुजारी आकर पेन पुठीना का रस्म अदा करेंगे. रस्म आदायगी में बारह मुंडा के सभी गोत्र के देवता को भी कार्यक्रम में शामिल होंगे.

नारायणपुर: अबूझमाड़ क्षेत्र में लोग आज भी अपनी आदिम सभ्यता और विशेष संस्कृति को संजोये हैं. ऐसी ही एक पुरानी परंपरा का इन दिनों निर्वहन किया जा रहा है. जिसमें आदिवासी अपने प्रमुख देव पाटराजाल पेन का पुनर्जन्म की रस्म अदा कर रहे हैं. परंपरा के मुकताबिक यह रस्म 12 पीढ़ियों के बाद निभाई जाती है. कहते हैं वे लोग बेहद ही सौभाग्शाली होते हैं जो इस रस्म के साक्षी बनते हैं.

God of tribals will be reborn
परंपरा निभाते आदिवासी

यह रस्म अदायगी अबूझमाड़ के एक गांव किया जा रहा है. इस रस्म को पूरा करने के लिए कुम्हार समुदाय के लोग नया हांडी, अनुसूचित जाति के समुदाय के लोगधागा और लोहार समुदाय के लोग नया लोहा लाकर टंगिया, चैनी बनाते हैं. यह सभी समुदाय मिलकर अपने देवता को नया रूप देकर प्राणप्रतिष्ठा करते हैं.

बारह पीढ़ियों बाद रस्म अदायगी

आदिवासी समाज में रीति-रिवाज के अनुसार कुल और गोत्र में एक पेन (देव) और आंगा ( प्रतीकात्मक चिन्ह) रूप में अपने पूर्वजों को देवता के रूप में स्थापित करते हैं. आदिवासी समाज में रावोड़ एक पवित्र स्थान होता है. जहां पर गोत्र देवता का स्थान होता है. परंपरा के अनुसार उस देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह को 12 पीढ़ियों में लगभग 1200 वर्ष बाद नया बनाया जाता है. जिसे स्थानीय बोली में 'पेन पुठिना' कहा जाता है. जिसका मतलब देवता का जन्म होना होता है. पारंपरिक ज्ञान के अनुसार गोत्र के देवताओं का प्रमुख पाटराजा देवता हैं. पाटराजा देवता का प्रतीकात्मक चिन्ह बनाकर बारह पीढ़ी यानी 1200 वर्ष पूरा हो गया है. इसलिए पाटराजा देवता का पेन पुठिना का कार्यक्रम पोचावाड़ा (ओरछा) ग्राम पंचायत के रायनार विरान गांव में किया जा रहा है. ये रस्म यहां करीब 3 महीने तक चलेगा. इस रस्म में सैकड़ों लोग शामिल होंगे.

God of tribals will be reborn
परंपरा निभाते आदिवासी

पढ़ें: लंबे इंतजार के बाद जगदलपुर पहुंची 'कोविशिल्ड' की पहली खेप

लोहार और कुम्हार समाज के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका

ग्रामीणों ने बताया कार्यक्रम में सबसे पहरे लोहार समाज के लोग लोहो को आग की भट्टी में गलाकर एक कुल्हाड़ी, बसोला, चैनी तैयार करते हैं. जिसके बाद इन औजारों की मदद से लकड़ी काटी जाएगी. जिसे देवता का स्वरूप दिया जायेगा. इसके लिए लोहार कोंडागांव जिले के बेचा गांव से आयेंगे. इसके बाद कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी का मटका लाएंगे. जिसमें खाना पकाया जाएगा. कुम्हार परिवार गीदम के बारसुर से आएंगे. इस रस्म में अनूसूचित जाति के वर्ग के लोग भी शामिल होते हैं.

सदेवताओं के पुजारी करेंगे 'पेन पुठीना'

कार्यक्रम में शामिल होने वाले देवता माड़ामर (थुलथुली), विसरमर (आदेर), नड़पर (छोटेटोन्डाबेड़ा), पुगेंरटेका (गुदाड़ी), डुमे (मालेम), मुल्ले, बोमड़ा, रायगुंडा, दुखारिटे (कोड़ेर), राजकोयो, मुयमेकोला, डोलबाड़ी, पुटिगकोला देवताओं के पुजारी आकर पेन पुठीना का रस्म अदा करेंगे. रस्म आदायगी में बारह मुंडा के सभी गोत्र के देवता को भी कार्यक्रम में शामिल होंगे.

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