मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: छत्तीसगढ़ में आदिवासी संस्कृति का भंडार है. राज्य में सैकड़ों साल पुरानी सभ्यता की निशानियां आज भी मौजूद है. छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर के जंगलों में वन्य प्राणियों के साथ दुर्लभ भित्ति चित्र और जड़ी बूटियां देखने को मिलती है. इस नवगठित जिला ने अपने अंदर कई कहानियां समेटे हुए हैं. यहां के जंगलों के गुफाओं और तलहटियों में कई पत्थरों पर गुमनाम शैलचित्र मौजूद है, जो गहरे लाल, खड़िया और गेरू रंग में अंकित है. हालांकि शोध के अभाव में ये गुमनाम हो चुका है.
इतिहास के पन्नों में गुम: भरतपुर विकासखंड से 10 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत गाजर में घोड़ामाडा नाम से प्रसिद्ध चट्टान पर दुर्लभ भित्ति चित्र एक किलोमीटर तक बना हुआ है. वन परिक्षेत्र कुमारपुर में वन्य प्राणी, वनस्पति, जड़ी-बूटी, पत्थर-चट्टान, नदी-नाले के अलावा प्राचीन ऐतिहासिक दुर्लभ चीजें भी मौजूद है. दर्जन भर जगहों में प्राकृतिक रूप से गहरी खाई के ऊपर पत्थरों में शैलचित्र अंकित है, जिसमें प्राचीन मानव सभ्यता की पहचान दिखती है. इन भित्ति चित्रों की भाषा शैली को आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है. यही कारण है कि ये इतिहास के पन्नों में गुम है.
ये जगह घोड़ामाडा के नाम से प्रसिद्ध है. यह गुफा एक धार्मिक स्थल है. यहां अंकित चित्र काफी खास है. ये चित्र खुद मिट जाता है, फिर उभर कर आ जाता है. हमारे बुजुर्ग कहते थे कि गुफा के अंदर बहुत बड़ा खजाना है. यहां एक साधु भी हुआ करते थे, लेकिन वो अचानक गायब हो गए. उनके जाने के बाद लोग यहां तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए आते रहते हैं. -मोहन यादव, पर्यटक
शोध का विषय है ये चट्टान: ये चट्टान इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए शोध का विषय है. लेकिन जानकारी और प्रचार के अभाव के कारण इतिहास के पन्नों में ये स्थान अपनी जगह नहीं बना पाया है. इन पहाड़ी चट्टानों पर बने घोड़े, हाथी, देवी-देवता, शिकारी, पशु-पक्षी प्राकृतिक चित्र हस्त लिपिक है. इन चित्रों को देखकर लगता है कि पुराने जमाने के लोग एक दूसरे को संदेश पहुंचाने के लिए इस तरह के शैलचित्र का प्रयोग करते रहे होंगे. प्रकृति से लगाव रखने वाले पर्यटकों के लिए ये जगह बेस्ट है. यहां पहाड़ों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. साथ ही प्राचीनकाल में बनाए गए शैलचित्र भी देखे जा सकते हैं.
ये चट्टान मानव सभ्यता के विकास की कथा है. जब धरती पर मानव विकास की ओर बढ़ने लगा, उस समय अपने जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए कोई संसाधन नहीं था. कागज और कलम के अभाव में आदिमानव अपनी बात को रखने के लिए शैलचित्र का प्रयोग करते थे. अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने के लिए शैलचित्र जरिया था. जिन पशुओं से उनका सामना हुआ, उन सबका शैलचित्र यहां मिला है. सरगुजा संभाग के कई इलाकों में ऐसे शैलचित्र मिले हैं. कितने साल पहले ये बना है, ये कहना मुश्किल है, लेकिन मानव की उत्पत्ति के बाद ही ये बना है. जंगलों के कटने के दौरान शैलचित्र पाई जाने लगी है. -आरसी प्रसाद, इतिहासकार
विकसित करने की पहल की जा रही: इन पहाड़ियों पर जाने का कोई रास्ता नहीं है. पगडंडी विहीन जगहों के पत्थर चट्टानों पर भित्तिचित्र आरेखित हैं. इनके सरंक्षण, संवर्धन के साथ में इन्हें पर्यटक के रूप में विकसित करने की पहल की जा रही है. ताकि कई गुमनाम दुर्लभ भित्तचित्र और अन्य ऐतिहासिक चीजों की खोज हो सके. आप इन भित्तिचित्र के माध्यम से अंदाजा लगा सकते है कि हजारों साल पहले ये कला कितनी विकसित रही होगी. जो कि हजारों साल बाद भी जीवंत प्रमाण के तौर पर भित्तिचित्र में मौजूद हैं.
शोध के अभाव में गुमनाम हुआ: इन घने जंगल में राजा महाराजा या शिकारी के साथ भित्तचित्र के कलाकार भी आते रहे होंगे, जिन्होंने पत्थरों पर इस तरह के चित्र उकेरे हैं. बता दें कि इस जंगल में बेशकीमती पेड़-पौधों के अलावा जड़ी बूटियों का भंडार है. यहां रहने वाले बड़े-बुजुर्ग कई तरह की रहस्यमयी बातें यहां के बारे में कहते हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये जगह कितना खास रहा होगा. हालांकि शोध के अभाव में ये चट्टान और ये जगह गुमनाम हो चुका है.