मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: चार दिनों तक चले कठिन व्रत के बाद छठ व्रत का समापन हो गया. सूर्य उगने से पहले ही छठ व्रती नदी और तालाब के घाटों पर पहुंच गए थे. जैसे ही सूर्योदय हुआ छठ व्रती महिलाओं ने सबसे पहले भगवान भास्कर को जल और गाय के दूध से अर्घ्य दिया. अर्घ्य अर्पित होने के बाद छठ व्रतियों ने घाट पर परिजनों को फल और प्रसाद बांटे.
उदयाचल सूर्य को दिया अर्घ्य: छठ व्रतियों के सुबह का अर्घ्य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ का महापर्व संपन्न हो गया. मान्यता है कि छठी माई से जो भी मंगल कामना की जाती है वो मां पूरी करती हैं. इस बार महिलाओं ने परिजनों की खुशहाली और देश प्रदेश में समृद्धि की कामना की. छठ महापर्व वैसे तो उत्तर भारत का मुख्य त्योहार है. धीरे धीरे उत्तर भारत का ये त्योहार पूरे देश में मनाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय रहते हैं. उत्तर भारतीय की वजह से छठ महापर्व अब छत्तीसगढ़ में भी लोकप्रिय पर्व हो चुका है. खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने छठ पर्व की लोगों को बधाई दी है.
महापर्व सम्पन्न: छठ पूजा को प्रकृति पूजा से भी जोड़कर देखा जाता है. इस पूजा में व्रत रखने वाली महिलाएं या भक्त भगवान सूर्य की भी पूजा करता है और प्रकृति की भी. चार दिनों तक कठिन व्रत के दौरान डूबते सूर्य से लेकर उगते सूर्य की पूजा की जाती है. पूजा के दौरान साफ सफाई का भी ध्यान रखा जाता है. घर को पवित्र करने के लिए गाय के गोबर से आंगन को लीपा जाता है. नहाए खाए और खरना से शुरु होने वाले महापर्व का समापन चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्य देवता को अर्घ्य देने के साथ खत्म होता है. घाट से लौटते ही व्रती महिलाएं व्रत खोलती हैं जिसे पारण कहा जाता है.