महासमुंद: दिवाली के कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज मनाया जाता है. इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस दिन बहने अपने भाइयों को टीका लगाकर पूजा करती हैं. बहन की रक्षा के साथ ही भाई बहन का यह अटूट रिश्ता हमेशा बना रहे इसके लिए भी बहने कामना करती हैं.
दिवाली के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भाई दूज मनाया जाता है. भाई दूज मनाए जाने के पीछे यह मान्यता है कि आज के दिन यमदूत की बहन यमुना ने अपने भाई का तिलक चंदन कर आवाभगत की. तब यमदूत प्रसन्न होकर अपनी बहन यमुना से बोले कि तुम्हें आज जो चाहिए मुझसे मांग लो, तब बहन यमुना ने कहा कि आज के दिन किसी भी बहन के भाई को यमुना ना छोड़ना पड़े, तब यमदूत ने कहा कि तथास्तु उसके बाद से आज के दिन को भाई दूज के रुप में मनाते हैं या भाई दोस्त अल्पायु से भाइयों को बचाने के लिए भी आज बहने व्रत कर भाइयों को तिलक चंदन आरती कर उनके लंबी उम्र की कामना भी करती हैं.
क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की दो संतानें थी. एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना. संज्ञा भगवान सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छाया मूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र और पुत्री को सौंपकर वहां से चली गईं. छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव नहीं था. लेकिन यम और यमुना में बहुत प्रेम था.
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यम से नाराज थीं यमुना
यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्यार करते थे, लेकिन ज्यादा काम होने के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे. जिससे यमुना नाराज हो गई थीं. एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए उनसे मिलने चले गए. यमुना अपने भाई को देखकर खुश हो गईं. भाई के लिए खाना बनाया और उनका आदर सत्कार किया. बहन का प्यार देखकर यमराज इतने खुश हुए कि उन्होंने यमुना को खूब सारी भेंट दी. यम जब बहन से मिलने के बाद विदा लेने लगे तो बहन यमुना से वरदान मांगने के लिए कहा. यमुना ने उनके इस आग्रह को सुनकर कहा कि अगर आप मुझे वर देना ही चाहते हैं, तो वहीं वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे. कहा जाता है कि इसी के बाद से हर साल भाई दूज का यह पर्व मनाया जाता है.
भाई की लंबी उम्र की कामना
इस पूजा में गाय के गोबर से भौरा और जौरा के प्रतीकात्मक पुतले बनाकर बहनें उसे मूसल, ईंट और पत्थरों से कूटती हैं. भाइयों के दुश्मन के प्रतीक के रूप में यह रिवाज किया जाता है. इस पूजा के बाद बहने भाई को नारियल, मिठाई और चने का प्रसाद खिलाती हैं और तिलक लगाकर आरती उतारकर भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं.