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World Tourism Day: छत्तीसगढ़ का 'नालंदा', इसे देखने दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

छत्तीसगढ़ के सिरपुर में हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों के साथ ही विशाल बौद्ध विहार और मठ मौजूद है.

छत्तीसगढ़ का 'नालंदा'
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Published : Sep 26, 2019, 11:28 PM IST

महासमुंद : छत्तीसगढ़ में भी कई बेहतरीन पर्यटक स्थल मौजूद हैं और इन्हीं में से एक है महासमुंद जिले में मौजूद सिरपुर. ये न केवल एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है, बल्कि प्राचीन और पुरातात्विक धरोहर भी है. यहां हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों के साथ ही विशाल बौद्ध विहार और मठ मौजूद है, जो इस शहर के गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है.

छत्तीसगढ़ का 'नालंदा', इसे देखने दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

शिवपुर महानदी के तट पर बसा एक पुरातात्विक स्थल है, जिसका प्राचीन नाम श्रीपुरा है. श्रीपुरा दक्षिण कौशल कि सोमवंशी पांडूवंशी राजाओं की राजधानी थी यह एक विशाल नगर था. महानदी के किनारे बसे होने के कारण प्राचीन काल में यहां एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र मौजूद था, खुदाई के दौरान नदी किनारे मिले ये बाजार इसकी गवाही देते हैं.

खंडहर में तब्दील हुआ मंदिर
पांडूवंश के राजाओं के शासनकाल में यहां कई मंदिरों का निर्माण हुआ था. हर्ष गुप्त की पत्नी वसरादेवी ने अपने पति की स्मृति में प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर का निर्माण शुरू कराया था, जिसे बाद में उनके बेटे महाशिव गुप्त बाला अर्जुन ने पूरा कराया. छठी शताब्दी में बने लक्ष्मण मंदिर को देश में पहली बार ईंटों से बनाया गया है. लगभग 7 फीट ऊंचे पत्थरों से बने एक चबूतरे पर मंदिर का निर्माण हुआ है. लक्ष्मण मंदिर के पास ही राम मंदिर भी है लेकिन अब वो खंडहर हो चुका है.

गंगेश्वर रूप में पूजे जाते हैं शिव
सिरपुर का दूसरा प्रमुख पर्यटन स्थल गंगेश्वर महादेव का मंदिर है. महानदी के तट पर बने इस मंदिर में भगवान शिव की गंगेश्वर के रूप में पूजा होती है. नदी तट से लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. इसके बारे में एक देव कथा प्रचलित है कि, बाला अर्जुन हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं शिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं तब वाणासुर ने कहा कि 'भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं आप प्रकट होंगे तो कैसे पहचानूंगा. तब भगवान शंकर ने कहा कि 'जिस शिवलिंग से गंध का एहसास हो उसे ही स्थापित कर पूजा करो उत्तक से सिरपुर में शिव जी की पूजा गणेश्वर महादेव के रूप में होती है. अभी भी शिवलिंग से कभी सुमन तो कभी दुर्गंध का एहसास होता है, इसलिए ही यहां शिवजी को गंध ईश्वर के रूप में पूजते हैं.

देवी-देवताओं की मूर्ति के मिलते हैं अवशेष
सिरपुर धाम में मंदिरों की विशाल श्रंखला है. लक्ष्मण मंदिर, गंगेश्वर मंदिर के साथ ही यहां राधा कृष्ण, देवी दुर्गा के कई मंदिरों का निर्माण कराया गया था. खुदाई के दौरान यहां से कई मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष मिलते रहते हैं.

पर्यटन विभाग आयोजित करता है महोत्सव
सिरपुर को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने के लिए 2006 से लगातार पर्यटन विभाग द्वारा सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. महोत्सव की वजह से सिरपुर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिल रही है. सिरपुर के भव्य और शक्ल आयोजन में कई राज्यों से आने वाले कलाकारों को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति देते हैं.

पढ़ें- PROUD: 'हाफ ह्यूमन रोबो' चित्रसेन ने फतह किया किलिमंजारो

सुविधा का है अभाव
तमाम संभावनाओं के बावजूद सिरपुर अपनी वो पहचान नहीं बना पाया, जो होनी चाहिए थी. इसकी वजह यहां सुविधाओं का न होना है. वहीं इस मामले में कलेक्टर का कहना है कि इलाके में जल्द ही व्यवस्थाएं की जाएंगी अब देखना यह है कि सरकार कब इस धरोहर की सुध लेगी और यहां आने वाले पर्यटक हंसी खुशी यहां से वापस जाएंगे.

महासमुंद : छत्तीसगढ़ में भी कई बेहतरीन पर्यटक स्थल मौजूद हैं और इन्हीं में से एक है महासमुंद जिले में मौजूद सिरपुर. ये न केवल एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है, बल्कि प्राचीन और पुरातात्विक धरोहर भी है. यहां हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों के साथ ही विशाल बौद्ध विहार और मठ मौजूद है, जो इस शहर के गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है.

छत्तीसगढ़ का 'नालंदा', इसे देखने दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

शिवपुर महानदी के तट पर बसा एक पुरातात्विक स्थल है, जिसका प्राचीन नाम श्रीपुरा है. श्रीपुरा दक्षिण कौशल कि सोमवंशी पांडूवंशी राजाओं की राजधानी थी यह एक विशाल नगर था. महानदी के किनारे बसे होने के कारण प्राचीन काल में यहां एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र मौजूद था, खुदाई के दौरान नदी किनारे मिले ये बाजार इसकी गवाही देते हैं.

खंडहर में तब्दील हुआ मंदिर
पांडूवंश के राजाओं के शासनकाल में यहां कई मंदिरों का निर्माण हुआ था. हर्ष गुप्त की पत्नी वसरादेवी ने अपने पति की स्मृति में प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर का निर्माण शुरू कराया था, जिसे बाद में उनके बेटे महाशिव गुप्त बाला अर्जुन ने पूरा कराया. छठी शताब्दी में बने लक्ष्मण मंदिर को देश में पहली बार ईंटों से बनाया गया है. लगभग 7 फीट ऊंचे पत्थरों से बने एक चबूतरे पर मंदिर का निर्माण हुआ है. लक्ष्मण मंदिर के पास ही राम मंदिर भी है लेकिन अब वो खंडहर हो चुका है.

गंगेश्वर रूप में पूजे जाते हैं शिव
सिरपुर का दूसरा प्रमुख पर्यटन स्थल गंगेश्वर महादेव का मंदिर है. महानदी के तट पर बने इस मंदिर में भगवान शिव की गंगेश्वर के रूप में पूजा होती है. नदी तट से लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. इसके बारे में एक देव कथा प्रचलित है कि, बाला अर्जुन हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं शिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं तब वाणासुर ने कहा कि 'भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं आप प्रकट होंगे तो कैसे पहचानूंगा. तब भगवान शंकर ने कहा कि 'जिस शिवलिंग से गंध का एहसास हो उसे ही स्थापित कर पूजा करो उत्तक से सिरपुर में शिव जी की पूजा गणेश्वर महादेव के रूप में होती है. अभी भी शिवलिंग से कभी सुमन तो कभी दुर्गंध का एहसास होता है, इसलिए ही यहां शिवजी को गंध ईश्वर के रूप में पूजते हैं.

देवी-देवताओं की मूर्ति के मिलते हैं अवशेष
सिरपुर धाम में मंदिरों की विशाल श्रंखला है. लक्ष्मण मंदिर, गंगेश्वर मंदिर के साथ ही यहां राधा कृष्ण, देवी दुर्गा के कई मंदिरों का निर्माण कराया गया था. खुदाई के दौरान यहां से कई मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष मिलते रहते हैं.

पर्यटन विभाग आयोजित करता है महोत्सव
सिरपुर को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने के लिए 2006 से लगातार पर्यटन विभाग द्वारा सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. महोत्सव की वजह से सिरपुर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिल रही है. सिरपुर के भव्य और शक्ल आयोजन में कई राज्यों से आने वाले कलाकारों को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति देते हैं.

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सुविधा का है अभाव
तमाम संभावनाओं के बावजूद सिरपुर अपनी वो पहचान नहीं बना पाया, जो होनी चाहिए थी. इसकी वजह यहां सुविधाओं का न होना है. वहीं इस मामले में कलेक्टर का कहना है कि इलाके में जल्द ही व्यवस्थाएं की जाएंगी अब देखना यह है कि सरकार कब इस धरोहर की सुध लेगी और यहां आने वाले पर्यटक हंसी खुशी यहां से वापस जाएंगे.

Intro:एंकर - 27 सितंबर को पूरा विश्व पर्यटन दिवस मना रहा है ऐसे में हम आपको महासमुंद जिले में स्थित एक पर्यटन स्थल सिरपुर के बारे में बताने जा रहे हैं सिरपुर ना केवल एक पर्यटन स्थल है बल्कि यह स्थान प्राचीन और पुरातात्विक धरोहर को अपने में समेटे हुआ नगर है शिवपुर में हिंदू देवी देवताओं के अनेक मंदिरों के साथ ही विशाल बौद्ध विहार और मठ आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को दिखाता है जैसा कि हम बता चुके हैं कि पर्यटन दिवस के अवसर है तो पर्यटन की अपार संभावना वाले इस स्थान पर आज कई सुविधाओं की कमी है जिसके कारण यहां आने वाले पर्यटकों में कई असुविधा होती है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज 78 किलोमीटर और महासमुंद से 38 किलोमीटर दूरी पर बसे इस स्थान पर यातायात के साधनों की उतना पर्याप्त व्यवस्था नहीं है पर्यटकों के ठहरने के लिए एकमात्र मोटल है जिससे पर्यटन विभाग ने बनाए हैं लेकिन वह भी सफेद हाथी साबित हो रहा है पुरातात्विक साक्ष्य और स्थल पूरे नगर में अनेक स्थानों पर है ऐसे बस से घूमने आने वाले पर्यटकों को पूरा नगर घूमने के लिए किसी तरह के पर्यटक टैक्सी या अन्य सुविधा नहीं है ना कोई अच्छा होटल है ना जलपान ग्रह हैं सिरपुर ना केवल देश भर की सैकड़ों विदेशी पर्यटक भी आते हैं लेकिन खाने-पीने ठहरने की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण निराश होकर लौट जाते हैं।


Body:वीओ 1 - सिरपुर का इतिहास
शिवपुर महानदी के तट पर बसा एक पुरातात्विक स्थल है जिस का प्राचीन नाम श्रीपुरा है श्रीपुरा दक्षिण कौशल कि सोमवंशी पांडू वंशी राजाओं की राजधानी थी यह एक विशाल नगर था नदी के किनारे बसे होने के कारण यह प्राचीन काल में ही देश के साथ-साथ विदेशी व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था पांडू वंश के राजाओं के समय इस नगर का वैभव में अपने चरम पर था इनके शासनकाल में यहां कई मंदिरों का निर्माण हर्ष गुप्त की पत्नी व वसरादेवी जो कि मौखरी वंश के राजा सूर्य वर्मा की पुत्री थी उन्होंने हर्ष गुप्त की स्मृति में प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था बाद में इसे पुत्र महाशिव गुप्त बाला अर्जुन ने लक्ष्मण मंदिर का निर्माण पूरा कराया था।

गुप्तकालीन मंदिर
शिवपुर में स्थित लक्ष्मण मंदिर को उत्तर गुप्तकालीन कला वस्तु कला का उदाहरण है छठवीं शताब्दी में बनाया मंदिर भारत का सबसे पहले ईटों से बना मंदिर है लगभग 7 फीट उसी पत्थरों से बने एक चबूतरे पर मंदिर का निर्माण हुआ है जिसमें गर्भगृह अंतराल तथा मंडप बने हैं लक्ष्मण मंदिर के पास राम मंदिर भी लेकिन अब वह खंडार हो चुका है।

गंधेश्वर महादेव का मंदिर
सिरपुर का दूसरा प्रमुख मंदिर गंगेश्वर महादेव का मंदिर है सरस सलिल आ महानदी के पावन तट पर शिरपुर नगरी भगवान शंकर की पूजा गंगेश्वर के रूप में होती है नदी तट में बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में बाला अर्जुन के समय में बाणासुर के द्वारा कराया गया था जिसके बारे में एक देव कथा है कि वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आते थे एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो अब मैं शिरपुर में ही प्रकट हो रहा हूं तब बड़ा तू ने कहा कि भगवान में सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं आप प्रकट होंगे तो कैसे पहचान लूंगा तब भगवान शंकर ने कहा कि जिस शिवलिंग से गंध का एहसास हो उसे ही स्थापित कर पूजा करो उत्तक से सिरपुर में शिवजी की पूजा गणेश्वर महादेव के रूप में होती है अभी भी गर्भवती में शिवलिंग से कभी सुमन तो कभी दुर्गंध का एहसास होता है इसलिए ही यहां शिवजी को गंध ईश्वर के रूप में पूछते हैं गंगेश्वर मंदिर काफी पुराना मंदिर है सावन में जल लेकर दूर-दूर स्थानों से कांवरिया पैदल यहां आकर सावन महीने में जल चढ़ाते हैं यह मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने से हर मन्नता पूरी होती है।



Conclusion:वीओ 2 - सिरपुर स्थित घंटेश्वर मंदिर में प्रति वर्ष सावन माह में लाखों श्रद्धालु बम्ही महासमुंद जिसे सेतगंगा कहते हैं वहां से कांवर यात्रा कर बोल बम के नारे के साथ पैदल चल कर सिरपुर पहुंचकर भगवान को जल अर्पित करते हैं सिरपुर नगर ऐसा धाम है जहां मंदिरों की विशाल संखला है लक्ष्मण मंदिर गंगेश्वर मंदिर के साथ ही यहां राधा कृष्ण मंदिर देवी दुर्गा का के साथ हुई समुदाय के लोगों ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया है सिरपुर में आज भी खुदाई में कई मंदिर और देवी-देवताओं के अवशेष और मूर्तियां प्राप्त होते रहती है शिवपुर को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने के के लिए 2006 से लगातार पर्यटन विभाग द्वारा सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है मौसम से सिरपुर को अंतरराष्ट्रीय स्तर एक नई पहचान मिल रही है सिरपुर के भव्य और शक्ल आयोजन में कई राज्यों से आने वाले कलाकारों को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति देते हैं साथ ही छत्तीसगढ़ी लोकगीत और लोकनृत्य की भी विभिन्न शैलियों की मनमोहक प्रस्तुति की जाती है शिरपुर पुराने जमाने में विश्व व्यापार की जगह थी जहां पूरे विश्व से लोग व्यापार करने आते थे खुदाई के समय वह व्यापार का जगह भी मिला जो नदी के किनारे हैं जहाज से इराक ईरान कई जगहों से लोग यहां व्यापार करने आते थे गौरतलब है कि राज्य शासन ने अपनी पूरी ताकत लगा कर भी सिरपुर को विश्व धरोहर में शामिल नहीं कर पाया है फिर भी लगातार वह कयास लगा रहे हैं कि किसी तरह विश्व धरोहर में शामिल हो जाएं एकमात्र रिसोर्ट होने के कारण सही व्यवस्था नहीं मिल पा रही थी जिसे स्थानीय विधायक विनोद चंद्राकर और पर्यटन विभाग ने मिलकर प्राइवेट कंपनी को उस रिसोर्ट को लीज पर दे दिया है सौम्या रेस्टोरेंट एंड प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया गया है जो बहुत जल्द ही उसे डिवेलप कर सभी तरह के सुविधाएं देने की कोशिश कर रहा है इस रिसोर्ट में मात्र 19 रूम ही हैं उसे बढ़ाकर 20 रूम व टेंट सुविधा और स्विंग पुल जैसे नए कार्यों को बढ़ाया जा रहा है जिससे पर्यटकों को आने में कोई तकलीफ ना हो जिस से आने वाले पर्यटकों को सभी सुविधाएं भोजन रहने की सुविधा मिल सके और लोग सिरपुर के महत्व और इतिहास को समझ सके।

बाइट 1 - सैय्यद रईस अख्तर, महासमुंद निवासी, पहचान स्काय जैसे कलर में फुल शर्ट।

बाइट 2 - योगेश्वर चंद्राकर जनपद सदस्य सिरपुर, पहचान माथे में टिका क्रीम कलर का हाफ जैकेट और पीले कलर का कुर्ता।

बाइट 3 - धर्मदास महिलांग स्थानीय निवासी पहचान सफेद कलर का फुल शर्ट सफेद बाल और सामने के जेब में मोबाइल चश्मा रखा हुआ।

बाइट 4 - रवि सिंह रिजल्ट मैनेजर शिरपुर पहचान सफेद शर्ट।

बाइट 5 - सुनील कुमार जैन कलेक्टर महासमुंद पहचान चश्मा लगा हुआ और पीला हाफ शर्ट।

हकीमुद्दीन नासिर रिपोर्टर ईटीवी भारत महासमुंद छत्तीसगढ़ मो. 9826555052
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