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महासमुंद के इस गांव में 47 लाख का बंदरबांट, शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई - Mahasamund Collector Karthikeya Goyal latest statement

महासमुंद में फर्जी काम दिखाकर शासकीय राशि का बंदरबाट का मामला सामने आया है, जिसकी शिकायत ग्रामीणों ने कई बार की है, लेकिन अब तक संबंधित सरपंच पर कार्रवाई नहीं की गई है. हालांकि कलेक्टर ने जांच के बाद राशि की रिकवरी और इसमें शामिल कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई करने की बात कही गई है.

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महासमुंद के इस गांव में 47 लाख की राशि का बंदरबांट,
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Published : Oct 28, 2020, 12:53 PM IST

Updated : Oct 28, 2020, 4:52 PM IST

महासमुंद: जिले में शासकीय राशि के बंदरबाट का मामला सामने आया है. जहां दस्तवेजों पर 47 लाख के फर्जी काम दिखाकर राशि निकाल ली गई है, लेकिन निकाली गई राशि से शासकीय जमीन पर एक भी काम नहीं हुआ है.

महासमुंद के इस गांव में 47 लाख की राशि का बंदरबांट

ग्रामीणों ने इसकी शिकायत कई बार प्रशासनिक अधिकारियों से की, जिस पर जांच भी हुई है, लेकिन जांच में प्रमाणित होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही है. न्याय के लिए दर-दर भटक रहे ग्रामीणों के लिए मीडिया ने पहल की थी, जिसके बाद जिला पंचायत के सीईओ ने अब जाकर कार्रवाई की बात कहीं है.

10 साल में एक ही परिवार को लोग बने सरपंच

महासमुंद जिले के पिथौरा विकासखंड के टेका ग्राम पंचायत की आबादी 3 हजार है. इस आदिवासी और पिछड़ा वर्ग बहुल्य ग्राम पंचायत के आश्रित गांव डोगरीपाली , कैलाशपुर और सेवैया कला था. साल 2015 - 16 में पंचायत परिसीमन में डोगरीपाली को अलग पंचायत और टेका को अलग पंचायत बना दिया गया. साल 2010 - 11 से 2019 तक एक ही परिवार के दुलीकेशन साहू और उनकी पत्नि किरण दुलीकेशन साहू सरपंच रहे.

10 सालों में इन कामों के लिए निकाले गए पैसे

इन दस सालों में सरपंच ने 13 वें वित्त, 14 वें वित्त आयोग से मूलभूत और मनरेगा के लिए आए फंड से 47 लाख रूपए निकाल लिए. जिसमें कामों के नाम पर पहुंच मार्ग निर्माण, पुलिया निर्माण, शौचालय निर्माण, नाली निर्माण, पानी टंकी निर्माण, चबूतरा निर्माण, समतली करण, 4 पहुंच मार्ग और 7 पुलिया निर्माण की बात कहीं गई थी, लेकिन जांच के बाद पता चला कि इनमें से एक भी काम ग्राम पंचायत में नहीं कराया गया है. यह काम सिर्फ दस्तवेजों तक ही सीमित है.

ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

इसकी जानकारी जब ग्रामीणों को हुई थी, तो इसकी शिकायत उन्होंने पिथौरा जनपद पंचायत में की. जिसको लेकर प्रशासन ने इसकी जांच भी कराई, जिसमें राशि के बंदरबाट का मामला सही पाया गया, लेकिन फिर भी संबंधित सरपंच पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद ग्रामीणों ने इसकी शिकायत जिला पंचायत CEO से की. जिन्होंने ग्रामीणों को कार्रवाई का भरोसा दिलाया है.

पढ़ें: करोड़ों के धान गबन मामले में दो आरोपी गिरफ्तार, आधारकार्ड में नाम बदलकर होटल में छिपा था आरोपी

महासमुंद कलेक्टर कार्तिकेय गोयल का कहना है कि पंचायतों की राशि का इस तरह दुरुपयोग बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. पंचायतों में राशि और पंचायतों की देखरेख के लिए सचिव और जिम्मेदार अधिकारी को रखा जाता है, जिनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे इस पर ध्यान रखें, क्योंकि जो भी राशि निकलती है वह अधिकारियों की जानकारी में होती है, जिसने भी इस पैसे का बंदरबांट किया है उससे पहले रिकवरी की जाएगी. साथ ही इसमें शामिल कर्मचारियों के पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

पढ़ें: बेमेतरा: कोरोना के राहत राशन में घोटाला, ग्रामीणों को नहीं मिला 5 किलो अतिरिक्त चावल

पंचायती राज का सपना गांवों के विकास के लिए देखा गया था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण गांवों का विकास सिर्फ कागजों तक ही सीमित हो रहा है.

महासमुंद: जिले में शासकीय राशि के बंदरबाट का मामला सामने आया है. जहां दस्तवेजों पर 47 लाख के फर्जी काम दिखाकर राशि निकाल ली गई है, लेकिन निकाली गई राशि से शासकीय जमीन पर एक भी काम नहीं हुआ है.

महासमुंद के इस गांव में 47 लाख की राशि का बंदरबांट

ग्रामीणों ने इसकी शिकायत कई बार प्रशासनिक अधिकारियों से की, जिस पर जांच भी हुई है, लेकिन जांच में प्रमाणित होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही है. न्याय के लिए दर-दर भटक रहे ग्रामीणों के लिए मीडिया ने पहल की थी, जिसके बाद जिला पंचायत के सीईओ ने अब जाकर कार्रवाई की बात कहीं है.

10 साल में एक ही परिवार को लोग बने सरपंच

महासमुंद जिले के पिथौरा विकासखंड के टेका ग्राम पंचायत की आबादी 3 हजार है. इस आदिवासी और पिछड़ा वर्ग बहुल्य ग्राम पंचायत के आश्रित गांव डोगरीपाली , कैलाशपुर और सेवैया कला था. साल 2015 - 16 में पंचायत परिसीमन में डोगरीपाली को अलग पंचायत और टेका को अलग पंचायत बना दिया गया. साल 2010 - 11 से 2019 तक एक ही परिवार के दुलीकेशन साहू और उनकी पत्नि किरण दुलीकेशन साहू सरपंच रहे.

10 सालों में इन कामों के लिए निकाले गए पैसे

इन दस सालों में सरपंच ने 13 वें वित्त, 14 वें वित्त आयोग से मूलभूत और मनरेगा के लिए आए फंड से 47 लाख रूपए निकाल लिए. जिसमें कामों के नाम पर पहुंच मार्ग निर्माण, पुलिया निर्माण, शौचालय निर्माण, नाली निर्माण, पानी टंकी निर्माण, चबूतरा निर्माण, समतली करण, 4 पहुंच मार्ग और 7 पुलिया निर्माण की बात कहीं गई थी, लेकिन जांच के बाद पता चला कि इनमें से एक भी काम ग्राम पंचायत में नहीं कराया गया है. यह काम सिर्फ दस्तवेजों तक ही सीमित है.

ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई

इसकी जानकारी जब ग्रामीणों को हुई थी, तो इसकी शिकायत उन्होंने पिथौरा जनपद पंचायत में की. जिसको लेकर प्रशासन ने इसकी जांच भी कराई, जिसमें राशि के बंदरबाट का मामला सही पाया गया, लेकिन फिर भी संबंधित सरपंच पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद ग्रामीणों ने इसकी शिकायत जिला पंचायत CEO से की. जिन्होंने ग्रामीणों को कार्रवाई का भरोसा दिलाया है.

पढ़ें: करोड़ों के धान गबन मामले में दो आरोपी गिरफ्तार, आधारकार्ड में नाम बदलकर होटल में छिपा था आरोपी

महासमुंद कलेक्टर कार्तिकेय गोयल का कहना है कि पंचायतों की राशि का इस तरह दुरुपयोग बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. पंचायतों में राशि और पंचायतों की देखरेख के लिए सचिव और जिम्मेदार अधिकारी को रखा जाता है, जिनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे इस पर ध्यान रखें, क्योंकि जो भी राशि निकलती है वह अधिकारियों की जानकारी में होती है, जिसने भी इस पैसे का बंदरबांट किया है उससे पहले रिकवरी की जाएगी. साथ ही इसमें शामिल कर्मचारियों के पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

पढ़ें: बेमेतरा: कोरोना के राहत राशन में घोटाला, ग्रामीणों को नहीं मिला 5 किलो अतिरिक्त चावल

पंचायती राज का सपना गांवों के विकास के लिए देखा गया था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण गांवों का विकास सिर्फ कागजों तक ही सीमित हो रहा है.

Last Updated : Oct 28, 2020, 4:52 PM IST
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