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REALITY CHECK : क्षेत्रफल में सबसे बड़ा है कोरबा नगरपालिका, क्यों आज भी गांवों जैसी है यहां की हालत ?

2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर शासन ने पांच महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की थी. इनमें शहरी क्षेत्रों में वार्ड कार्यालय एक अहम योजना थी. लेकिन इस योजना की शुरुआत के 2 साल बाद भी वार्डों में वार्ड कार्यालय धरातल पर नहीं उतर पाये हैं.

Korba Municipality Ward Office
कोरबा नगर पालिका वार्ड कार्यालय
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Published : Oct 2, 2021, 1:26 PM IST

Updated : Oct 2, 2021, 4:23 PM IST

कोरबा : शासन की फ्लैगशिप योजनाओं (Flagship Scheme) में शुमार वार्ड कार्यालय कोरबा, नगर पालिक निगम में फेल साबित हो रही है. 2 वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने वार्ड कार्यालयों को इस उद्देश्य से शुरू किया था कि सड़क मरम्मत, जल प्रदाय और स्ट्रीट लाइट मरम्मत के साथ ही संपत्ति कर और समेकित कर जैसी नगर निगम द्वारा प्रदाय की जाने वाली मूलभूत सुविधाएं इन वार्ड कार्यालयों के माध्यम से जनता तक पहुंच सकेंगी. उनकी तैयारी थी कि वार्ड में ही कार्यालय मौजूद हो और सुविधा जनता के और करीब पहुंचे. कई तरह के सर्टिफिकेट भी जनता तक उनके द्वार तक पहुंचाने की बात हुई थी, लेकिन वास्तविकता यह है कि नगर पालिक निगम कोरबा के 67 में से केवल 14 वार्ड में ही वार्ड कार्यालय (Ward Office in Only 14 wards out of 67 of Korba) खोले गए. और जहां वार्ड कार्यालय खोले भी गए तो वहां लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. नगरपालिक निगम के महापौर राज किशोर प्रसाद के वार्ड में ईटीवी भारत की टीम ने रियालिटी चेक की. इस दौरान साफ तौर पर दिखा कि महापौर के वार्ड में मौजूद वार्ड कार्यालय ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है. यहां आवेदन स्वीकार करने के लिए भी निगम के कर्मचारी मौजूद नहीं रहते, ज्यादातर लोगों को वार्ड कार्यालय की जानकारी ही नहीं है.

कोरबा नगर पालिका वार्ड कार्यालय

2 साल में मिले सिर्फ 4190 आवेदन

नगर पालिक निगम कोरबा में कुल 67 वार्ड हैं. क्षेत्रफल के लिहाज से यह प्रदेश का सबसे बड़ा नगर पालिक निगम है. इसलिए कोरबा में वार्ड कार्य की परिकल्पना को साकार करना और भी जरूरी हो जाता है. कई इलाके आज भी ग्राम पंचायतों जैसे लगते हैं, यहां के लोग मुख्यालय तक का सफर तय नहीं कर पाते. कोरबा नगर पालिक निगम में कुल 67 में से सिर्फ 14 वार्ड में ही वार्ड कार्यालय खोले गए, जिनमें से भी ज्यादातर कांग्रेसी पार्षदों के वार्ड में ही खुले हैं. वहीं विपक्ष का आरोप है कि साल 2019 में खानापूर्ति के लिए वार्ड कार्यालय खोले गए थे. आंकड़ों पर गौर करें तो सभी 14 वार्ड कार्यालयों के माध्यम से निगम के पास कुल 4 हजार 190 आवेदन पहुंचे हैं, जिनमें से सभी को निराकृत कर दिया गया. केवल ही 3 पेंडिंग हैं.

हफ्ते में दो दिन आना है कर्मियों को, लेकिन होती है कोताही

वार्ड कार्यालय में आवेदन की संख्या जहां कम है, वहीं वर्तमान में वार्ड कार्यालय ठीक तरह से काम नहीं कर रहे हैं. हफ्ते में 2 दिन निगम कर्मचारियों को यहां तैनाती की गई है, लेकिन इसमें भी कोताही बरती जाती है. वार्ड कार्यालय के फेल होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि नगर पालिक निगम में इसके लिए नोडल अधिकारी कौन है, यह 2 साल बाद भी स्पष्ट नहीं हो सका है. महापौर के वार्ड क्रमांक 14 में वार्ड कार्यालय स्थापित जरूर है, लेकिन यहां के लोगों का कहना है कि महापौर यहां सुबह बैठने भी आ जाया करते हैं. लेकिन ईटीवी भारत ने जब कार्यालय का दौरा किया, तब यहां कोई भी कर्मचारी मौजूद नहीं था. पूरा कार्यालय खाली था. यहां आवेदन स्वीकार करने और उसके निराकरण करने की क्या व्यवस्था है, यह भी स्पष्ट नहीं था.

नहीं होती साफ-सफाई, वार्ड में लगा है कचरे का अंबार

महापौर के वार्ड की निवासी दीपाली दास का कहना है कि उन्हें वार्ड कार्यालय की कोई जानकारी नहीं है. यहां के कुछ क्षेत्र एसईसीएल के अधीन हैं, जिसका सफाई का ठेका निरस्त हो चुका है. जबकि नगर निगम एसईसीएल के के अधीन आने वाले मकानों में सफाई का काम नहीं करता. इस कारण वर्तमान में न तो एसईसीएल और न ही नगर पालिक निगम के कर्मचारी ही यहां सफाई कर रहे हैं. मजबूरन लोग कचरा खुले में फेंकने को विवश हैं. वहीं महापौर के ही वार्ड के निवासी गोविंद देवदास का कहना है कि वह दिहाड़ी मजदूर हैं. लेकिन उनकी मां महापौर के वार्ड में निवास करती हैं. घर के सामने कचरे का अंबार लगा रहता है. नाले से पानी निकासी की व्यवस्था नहीं है. बरसात में पानी भर जाता है, तो पीने के पानी के लिए भी जो नल लगा हुआ है वहां प्रेशर बहुत कम आता है. लोग किसी तरह पीने के पानी के इंतजाम करते हैं.

जोन कमिश्नर को भी दी गई थी जिम्मेदारी

नगर पालिक निगम कोरबा कुल 8 जोन में विभाजित है. इसके अंतर्गत 67 वार्ड आते हैं. सभी जोन कमिश्नर को भी वार्ड कार्यालय का ठीक तरह से संचालन करने के साथ ही यहां आने वाले आवेदनों के निराकरण की जवाबदेही दी गई थी. जिला स्तर पर उपायुक्त पवन वर्मा को इसका नोडल अधिकारी बनाया गया था, लेकिन ठीक तरह से मॉनिटर नहीं हुई. व्यवस्था इतनी बदहाल रही कि 67 वार्डों में वार्ड कार्यालय की व्यवस्था ही नहीं हो पाई. 2 साल बाद भी वार्ड कार्यालयों की परिकल्पना धरातल पर पूरी तरह से उतर ही नहीं सकी.

नेता प्रतिपक्ष के वार्ड में ही नहीं खुल सका वार्ड कार्यालय

इस संबंध में नगर पालिक निगम में विपक्ष के नेता भाजपा पार्षद हितानंद अग्रवाल का कहना है कि मेरे वार्ड में कभी वार्ड कार्यालय खुला ही नहीं. पार्षद अपने स्तर पर कार्यालय खोलकर इसका संचालन करते हैं, लेकिन नगर पालिक निगम की वार्ड कार्यालय की परिकल्पना पूरी तरह से फेल है. हालांकि यह योजना बहुत अच्छी थी, यदि जूनियर इंजीनियर स्तर के भी एक अधिकारी को वार्ड कार्यालय का कंट्रोलिंग अधिकारी बना दिया जाता तो, वार्ड में जनता की समस्याओं का समाधान करने में आसानी होती. लेकिन कांग्रेस की सरकार सिर्फ घोषणा करके वाहवाही लूटने में विश्वास रखती है.

कोरबा : शासन की फ्लैगशिप योजनाओं (Flagship Scheme) में शुमार वार्ड कार्यालय कोरबा, नगर पालिक निगम में फेल साबित हो रही है. 2 वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने वार्ड कार्यालयों को इस उद्देश्य से शुरू किया था कि सड़क मरम्मत, जल प्रदाय और स्ट्रीट लाइट मरम्मत के साथ ही संपत्ति कर और समेकित कर जैसी नगर निगम द्वारा प्रदाय की जाने वाली मूलभूत सुविधाएं इन वार्ड कार्यालयों के माध्यम से जनता तक पहुंच सकेंगी. उनकी तैयारी थी कि वार्ड में ही कार्यालय मौजूद हो और सुविधा जनता के और करीब पहुंचे. कई तरह के सर्टिफिकेट भी जनता तक उनके द्वार तक पहुंचाने की बात हुई थी, लेकिन वास्तविकता यह है कि नगर पालिक निगम कोरबा के 67 में से केवल 14 वार्ड में ही वार्ड कार्यालय (Ward Office in Only 14 wards out of 67 of Korba) खोले गए. और जहां वार्ड कार्यालय खोले भी गए तो वहां लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. नगरपालिक निगम के महापौर राज किशोर प्रसाद के वार्ड में ईटीवी भारत की टीम ने रियालिटी चेक की. इस दौरान साफ तौर पर दिखा कि महापौर के वार्ड में मौजूद वार्ड कार्यालय ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है. यहां आवेदन स्वीकार करने के लिए भी निगम के कर्मचारी मौजूद नहीं रहते, ज्यादातर लोगों को वार्ड कार्यालय की जानकारी ही नहीं है.

कोरबा नगर पालिका वार्ड कार्यालय

2 साल में मिले सिर्फ 4190 आवेदन

नगर पालिक निगम कोरबा में कुल 67 वार्ड हैं. क्षेत्रफल के लिहाज से यह प्रदेश का सबसे बड़ा नगर पालिक निगम है. इसलिए कोरबा में वार्ड कार्य की परिकल्पना को साकार करना और भी जरूरी हो जाता है. कई इलाके आज भी ग्राम पंचायतों जैसे लगते हैं, यहां के लोग मुख्यालय तक का सफर तय नहीं कर पाते. कोरबा नगर पालिक निगम में कुल 67 में से सिर्फ 14 वार्ड में ही वार्ड कार्यालय खोले गए, जिनमें से भी ज्यादातर कांग्रेसी पार्षदों के वार्ड में ही खुले हैं. वहीं विपक्ष का आरोप है कि साल 2019 में खानापूर्ति के लिए वार्ड कार्यालय खोले गए थे. आंकड़ों पर गौर करें तो सभी 14 वार्ड कार्यालयों के माध्यम से निगम के पास कुल 4 हजार 190 आवेदन पहुंचे हैं, जिनमें से सभी को निराकृत कर दिया गया. केवल ही 3 पेंडिंग हैं.

हफ्ते में दो दिन आना है कर्मियों को, लेकिन होती है कोताही

वार्ड कार्यालय में आवेदन की संख्या जहां कम है, वहीं वर्तमान में वार्ड कार्यालय ठीक तरह से काम नहीं कर रहे हैं. हफ्ते में 2 दिन निगम कर्मचारियों को यहां तैनाती की गई है, लेकिन इसमें भी कोताही बरती जाती है. वार्ड कार्यालय के फेल होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि नगर पालिक निगम में इसके लिए नोडल अधिकारी कौन है, यह 2 साल बाद भी स्पष्ट नहीं हो सका है. महापौर के वार्ड क्रमांक 14 में वार्ड कार्यालय स्थापित जरूर है, लेकिन यहां के लोगों का कहना है कि महापौर यहां सुबह बैठने भी आ जाया करते हैं. लेकिन ईटीवी भारत ने जब कार्यालय का दौरा किया, तब यहां कोई भी कर्मचारी मौजूद नहीं था. पूरा कार्यालय खाली था. यहां आवेदन स्वीकार करने और उसके निराकरण करने की क्या व्यवस्था है, यह भी स्पष्ट नहीं था.

नहीं होती साफ-सफाई, वार्ड में लगा है कचरे का अंबार

महापौर के वार्ड की निवासी दीपाली दास का कहना है कि उन्हें वार्ड कार्यालय की कोई जानकारी नहीं है. यहां के कुछ क्षेत्र एसईसीएल के अधीन हैं, जिसका सफाई का ठेका निरस्त हो चुका है. जबकि नगर निगम एसईसीएल के के अधीन आने वाले मकानों में सफाई का काम नहीं करता. इस कारण वर्तमान में न तो एसईसीएल और न ही नगर पालिक निगम के कर्मचारी ही यहां सफाई कर रहे हैं. मजबूरन लोग कचरा खुले में फेंकने को विवश हैं. वहीं महापौर के ही वार्ड के निवासी गोविंद देवदास का कहना है कि वह दिहाड़ी मजदूर हैं. लेकिन उनकी मां महापौर के वार्ड में निवास करती हैं. घर के सामने कचरे का अंबार लगा रहता है. नाले से पानी निकासी की व्यवस्था नहीं है. बरसात में पानी भर जाता है, तो पीने के पानी के लिए भी जो नल लगा हुआ है वहां प्रेशर बहुत कम आता है. लोग किसी तरह पीने के पानी के इंतजाम करते हैं.

जोन कमिश्नर को भी दी गई थी जिम्मेदारी

नगर पालिक निगम कोरबा कुल 8 जोन में विभाजित है. इसके अंतर्गत 67 वार्ड आते हैं. सभी जोन कमिश्नर को भी वार्ड कार्यालय का ठीक तरह से संचालन करने के साथ ही यहां आने वाले आवेदनों के निराकरण की जवाबदेही दी गई थी. जिला स्तर पर उपायुक्त पवन वर्मा को इसका नोडल अधिकारी बनाया गया था, लेकिन ठीक तरह से मॉनिटर नहीं हुई. व्यवस्था इतनी बदहाल रही कि 67 वार्डों में वार्ड कार्यालय की व्यवस्था ही नहीं हो पाई. 2 साल बाद भी वार्ड कार्यालयों की परिकल्पना धरातल पर पूरी तरह से उतर ही नहीं सकी.

नेता प्रतिपक्ष के वार्ड में ही नहीं खुल सका वार्ड कार्यालय

इस संबंध में नगर पालिक निगम में विपक्ष के नेता भाजपा पार्षद हितानंद अग्रवाल का कहना है कि मेरे वार्ड में कभी वार्ड कार्यालय खुला ही नहीं. पार्षद अपने स्तर पर कार्यालय खोलकर इसका संचालन करते हैं, लेकिन नगर पालिक निगम की वार्ड कार्यालय की परिकल्पना पूरी तरह से फेल है. हालांकि यह योजना बहुत अच्छी थी, यदि जूनियर इंजीनियर स्तर के भी एक अधिकारी को वार्ड कार्यालय का कंट्रोलिंग अधिकारी बना दिया जाता तो, वार्ड में जनता की समस्याओं का समाधान करने में आसानी होती. लेकिन कांग्रेस की सरकार सिर्फ घोषणा करके वाहवाही लूटने में विश्वास रखती है.

Last Updated : Oct 2, 2021, 4:23 PM IST
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