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SPECIAL : कबीर दास जयंती पर जानें छत्तीसगढ़ सम्प्रदाय से जुड़े कुछ अनछुए पहलू

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Published : Jun 17, 2019, 10:21 AM IST

Updated : Jun 17, 2019, 2:42 PM IST

कुदुरमाल धाम के महंत मोती दास ने कबीर दास जयंती पर उनकी जीवनी का जिक्र करते हुए बताया कि कबीर पंथ के पहले वंशगुरु कहलाए मुक्तामणि साहब ने प्रदेश में कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की शुरुआत कोरबा जिले के ग्राम कुदुरमाल से की थी

कबीर दास

कोरबा : प्रदेशभर में आज कबीर जयंती मनाई जा रही. जगह-जगह तमाम तरह के आयोजन भी किए जा रहे है. वहीं जयंती को लेकर लोगो में काफी हर्ष उल्लास भी देखने को मिल रहा है.कबीर दास एक रचनाकार के साथ-साथ एक महापुरुष, सफल साधक और समाज सुधारक भी थे. आइए चलते है कबीर दास से जुड़े उस इतिहास की ओर जो कोरबा से जुड़ी है.

कबीर दास जयंती

कुदुरमाल धाम के महंत मोती दास ने कबीर दास जयंती पर उनकी जीवनी का जिक्र करते हुए बताया कि भारत में कबीर पंथ की मुख्य रूप से तीन शाखाएं हैं. जिसमें कबीरचौरा शाखा, भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ की शाखा है. छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ के पहले वंशगुरु कहलाए मुक्तामणि साहब ने प्रदेश में कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की शुरुआत कोरबा जिले के ग्राम कुदुरमाल से की थी.

मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के करीब बांधवगढ़ के रहने वाले संत दानी धर्मदास कबीर के प्रमुख शिष्य हुए. संत कबीर से गुरु दीक्षा लेकर धर्मदास ने अन्य जीवों को कबीर पंथ का पाठ पढ़ाया. लेकिन धर्मदास के बेटे नारायण दास कबीर को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने कबीर से दूसरे पुत्र की मांग की और फिर मुक्तामणि साहेब का जन्म हुआ.

क्या है कहानी-

  • मुक्तामणि साहेब ने धर्मदास के समाधि लेने के बाद कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की कमान संभाली. यहां के महंत बताते हैं कि मुक्तामणि साहेब का जब बांधवगढ़ में राजतिलक हो रहा था तब नारायण दास विरोध में खड़ा हो गया. इस विरोध के बाद मुक्तामणि साहेब बांधवगढ़ छोड़कर छत्तीसगढ़ के कुदुरमल आ पहुंचे.
  • कबीरपंथ में बताई गई कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब ने कुदुरमल में हसदेव नदी के किनारे एक पीपल पेड़ के नीचे अपना आश्रय बना लिया. अचानक एक दिन भोर में पीपल पेड़ में लगी घड़ी घंटियां बजने लगी, जो कभी नहीं बजी थी. ग्रामीणों ने वहां मुक्तामणि साहेब को बैठे देखा. इसकी जानकारी ग्रामीणों ने कोरवा राजा को दी. राजा ने इस आश्चर्य के बाद उनका अपने राज महल में स्वागत सत्कार किया.
  • महंत मोती दास आगे बताते हैं कि कोरवा राजा और मुक्तामणि साहेब के बीच पानी में एक दूसरे को ढूंढने का खेल खेला गया. इस खेल में मुक्तामणि साहब तो कोरवा राजा को ढूंढने में सफल रहे, लेकिन कोरवा राजा मुक्तामणि साहेब को नहीं ढूंढ पाए.
  • कहा जाता है कि ये सब देखने के बाद कोरवा राजा ने उत्साह में मुक्तामणि साहब को 500 एकड़ जमीन दान कर दी. उनके लिए हवेली का निर्माण कराया और इसी हवेली के बाहर मुक्तामणि साहेब की समाधि है.
  • कबीरपंथ की कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब जब बांधवगढ़ से निकले थे तब उनके पास केवल एक दातुन था. मुक्तामणि साहेब का मानना था कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के लिए अपना एक अंश उस खास जगह पर छोड़कर जाना जरूरी है. कहा जाता है कि मुक्तामणि साहब ने अपनी दातुन वहीं छोड़ दिया था जो आज एक विशाल नीम का पेड़ बन चुका है. इतना ही नहीं बल्कि कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब ने जहां कुल्ला किया था, वहां आज एक तालाब है और वो कभी नहीं सूखता है. कहा ये भी जाता है कि इससे चर्म रोग ठीक हो जाता है.
  • इस तरह से छत्तीसगढ़ और देश में मुक्तामणि साहब कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के पहले वंशज कहलाए और इनके बाद से अब तक सोलवीं पीढ़ी जन्म ले चुकी है. सद्गुरु कबीर के अनुसार अटल 42 यानी कुल 42 पीढियां जन्म लेंगी जो इसे आगे ले जाएंगी.
  • कबीरपंथियों की सबसे प्राचीन और प्रथम धर्मिक स्थल पर बनी इस हवेली की दशा दयनीय हो गई. बीते 500 सालों से हवेली खड़ी है. जब से राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे अपनी देखरेख में लिया है. उसके बाद से एक रुपए इसके रखरखाव में खर्च नहीं किए गए. आलम यह है कि आस पास प्लांट और खदानें खोदी जा रही हैं, एक बड़ा ब्लास्ट या कोई बड़ी आपदा से इस हवेली का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.

कोरबा : प्रदेशभर में आज कबीर जयंती मनाई जा रही. जगह-जगह तमाम तरह के आयोजन भी किए जा रहे है. वहीं जयंती को लेकर लोगो में काफी हर्ष उल्लास भी देखने को मिल रहा है.कबीर दास एक रचनाकार के साथ-साथ एक महापुरुष, सफल साधक और समाज सुधारक भी थे. आइए चलते है कबीर दास से जुड़े उस इतिहास की ओर जो कोरबा से जुड़ी है.

कबीर दास जयंती

कुदुरमाल धाम के महंत मोती दास ने कबीर दास जयंती पर उनकी जीवनी का जिक्र करते हुए बताया कि भारत में कबीर पंथ की मुख्य रूप से तीन शाखाएं हैं. जिसमें कबीरचौरा शाखा, भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ की शाखा है. छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ के पहले वंशगुरु कहलाए मुक्तामणि साहब ने प्रदेश में कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की शुरुआत कोरबा जिले के ग्राम कुदुरमाल से की थी.

मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के करीब बांधवगढ़ के रहने वाले संत दानी धर्मदास कबीर के प्रमुख शिष्य हुए. संत कबीर से गुरु दीक्षा लेकर धर्मदास ने अन्य जीवों को कबीर पंथ का पाठ पढ़ाया. लेकिन धर्मदास के बेटे नारायण दास कबीर को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने कबीर से दूसरे पुत्र की मांग की और फिर मुक्तामणि साहेब का जन्म हुआ.

क्या है कहानी-

  • मुक्तामणि साहेब ने धर्मदास के समाधि लेने के बाद कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की कमान संभाली. यहां के महंत बताते हैं कि मुक्तामणि साहेब का जब बांधवगढ़ में राजतिलक हो रहा था तब नारायण दास विरोध में खड़ा हो गया. इस विरोध के बाद मुक्तामणि साहेब बांधवगढ़ छोड़कर छत्तीसगढ़ के कुदुरमल आ पहुंचे.
  • कबीरपंथ में बताई गई कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब ने कुदुरमल में हसदेव नदी के किनारे एक पीपल पेड़ के नीचे अपना आश्रय बना लिया. अचानक एक दिन भोर में पीपल पेड़ में लगी घड़ी घंटियां बजने लगी, जो कभी नहीं बजी थी. ग्रामीणों ने वहां मुक्तामणि साहेब को बैठे देखा. इसकी जानकारी ग्रामीणों ने कोरवा राजा को दी. राजा ने इस आश्चर्य के बाद उनका अपने राज महल में स्वागत सत्कार किया.
  • महंत मोती दास आगे बताते हैं कि कोरवा राजा और मुक्तामणि साहेब के बीच पानी में एक दूसरे को ढूंढने का खेल खेला गया. इस खेल में मुक्तामणि साहब तो कोरवा राजा को ढूंढने में सफल रहे, लेकिन कोरवा राजा मुक्तामणि साहेब को नहीं ढूंढ पाए.
  • कहा जाता है कि ये सब देखने के बाद कोरवा राजा ने उत्साह में मुक्तामणि साहब को 500 एकड़ जमीन दान कर दी. उनके लिए हवेली का निर्माण कराया और इसी हवेली के बाहर मुक्तामणि साहेब की समाधि है.
  • कबीरपंथ की कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब जब बांधवगढ़ से निकले थे तब उनके पास केवल एक दातुन था. मुक्तामणि साहेब का मानना था कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के लिए अपना एक अंश उस खास जगह पर छोड़कर जाना जरूरी है. कहा जाता है कि मुक्तामणि साहब ने अपनी दातुन वहीं छोड़ दिया था जो आज एक विशाल नीम का पेड़ बन चुका है. इतना ही नहीं बल्कि कहानी के अनुसार मुक्तामणि साहेब ने जहां कुल्ला किया था, वहां आज एक तालाब है और वो कभी नहीं सूखता है. कहा ये भी जाता है कि इससे चर्म रोग ठीक हो जाता है.
  • इस तरह से छत्तीसगढ़ और देश में मुक्तामणि साहब कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के पहले वंशज कहलाए और इनके बाद से अब तक सोलवीं पीढ़ी जन्म ले चुकी है. सद्गुरु कबीर के अनुसार अटल 42 यानी कुल 42 पीढियां जन्म लेंगी जो इसे आगे ले जाएंगी.
  • कबीरपंथियों की सबसे प्राचीन और प्रथम धर्मिक स्थल पर बनी इस हवेली की दशा दयनीय हो गई. बीते 500 सालों से हवेली खड़ी है. जब से राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे अपनी देखरेख में लिया है. उसके बाद से एक रुपए इसके रखरखाव में खर्च नहीं किए गए. आलम यह है कि आस पास प्लांट और खदानें खोदी जा रही हैं, एक बड़ा ब्लास्ट या कोई बड़ी आपदा से इस हवेली का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
Intro:भारत में कबीर पंथ की मुख्य रूप से तीन शाखाएं हैं। जिसमें कबीरचौरा शाखा, भगताही शाखा और छत्तीसगढ़ की शाखा है। छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ के पहले वंशगुरु कहलाए मुक्तामणि साहब ने प्रदेश में कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की शुरुआत कोरबा जिले के ग्राम कुदुरमाल से की थी।


Body:मध्यप्रदेश के उमरिया जिला के करीब बांधवगढ़ के रहने वाले संत दानी धर्मदास कबीर के प्रमुख शिष्य हुए। संत कबीर से गुरु दीक्षा लेकर धर्मदास जी अन्य जीवों को कबीर पंथ का पाठ पढ़ाने लगे। लेकिन धर्मदास के बेटे नारायण दास कबीर को नहीं मानते थे। इस बात से चिंतित होकर उन्होंने कबीर से दूसरे पुत्र की मांग की और फिर मुक्तामणि साहेब का जन्म हुआ।
मुक्तामणि साहेब ने धर्मदास के समाधि लेने के ततपश्चात कबीर पंथ के प्रचार प्रसार की कमान संभाली। मुक्तामणि साहेब का जब बांधवगढ़ में राजतिलक हो रहा था तब नारायण दास विरोध में खड़ा हो गया। इस विरोध को देखकर मुक्तामणि साहेब बांधवगढ़ छोड़कर छत्तीसगढ़ के कुदुरमल आ पहुंचे।
मुक्तामणि साहेब कि कुदुरमल पहुंचने के बाद हसदेव नदी के किनारे एक पीपल पेड़ के पास जाकर बैठ गए। अचानक एक दिन भोर में पीपल पेड़ में लगी घड़ी घंटियां बजने लगी। ग्रामीणों को आश्चर्य हुआ कि आज तक यह घड़ी घंटियां कभी नहीं बजे तो आज कैसे बजने लगी। ग्रामीण वहां पहुंचे तो उन्हें मुक्तामणि साहेब वहां बैठे दिखाई दिए। इसकी जानकारी ग्रामीणों ने कोरवा राजा को दी। कोरबा का नाम उस समय कोरवा हुआ करता था। राजा भी इस बात से आश्चर्यचकित होकर मुक्तामणि साहेब के चरणों में गिर पड़े और उनका अपने राज महल में स्वागत सत्कार किया।
अगले दिन कोरवा राजा ने मुक्तामणि साहेब से एक खेल खेलने की इच्छा जताई। यह वही खेल है जो सदगुरु कबीर ने गोरखनाथ जी के साथ खेला था। जिसमें पानी में एक दूसरे को ढूंढना था, और गोरखनाथ जी ने पानी में पहले डुबकी लगाई और मछली बन गए थे और सदगुरु कबीर उन्होंने ढूंढने में सफल हुए थे। लेकिन सदगुरु कबीर पानी में ऐसा मिल गए कि गोरखनाथ जी उन्हें ढूंढ नहीं पाए यही खेल कोरवा राजा ने भी मुक्तामणि साहब के साथ खेला।
इतना सब देखने के बाद कोरवा राजा अति उत्साहित हो गए और उन्होंने भेट में मुक्ता मणि साहब को 500 एकड़ जमीन दान कर दी। उनके लिए हवेली का निर्माण कराया और इसी हवेली के बाहर मुक्ता मणि साहेब की समाधि है। यह वही 500 एकड़ जमीन है जो वर्तमान में ग्राम कुदुरमाल है।
मुक्तामणि साहेब जब बांधवगढ़ से निकले थे तब उनके पास केवल एक दातुन था। मुक्तामणि साहेब का मानना था कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के लिए अपना एक अंश उस खास जगह पर छोड़ कर जाना जरूरी है। मुक्तामणि साहब ने अपनी दातुन वहीं छोड़ दी जो आज एक विशाल नीम का पेड़ बन चुका है। मुक्तामणि साहेब जहां कुल्ला किया था वहाँ आज एक तालाब है, और वो कभी नहीं सूखता है। कहा ये भी जाता है कि इससे चर्म रोग ठीक हो जाता है।
इस तरह से छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के पहले वंशज कहलाए मुक्तामणि साहेब और इन के बाद से अब तक सोलवीं पीढ़ी जन्म ले चुकी है। सद्गुरु कबीर के अनुसार अटल 42 यानी कुल 42 पीढियां इसे आगे बढ़ाएंगी।
कबीरपंथियों की सबसे प्राचीन और प्रथम धर्मिक स्थल पर बनी इस हवेली की दशा दयनीय हो गई। बीते 500 सालों से हवेली खड़ी है। जब से राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे अपनी देखरेख में लिया है उसके बाद से एक रुपए इसके रखरखाव में खर्च नहीं किए गए। आलम यह है कि आस पास प्लांट और खदानें खोदी जा रही हैं, एक बड़ा ब्लास्ट या कोई बड़ी आपदा से इस हवेली का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

बाइट- महंत मोती दास, महंत, कुदुरमाल धाम


Conclusion:
Last Updated : Jun 17, 2019, 2:42 PM IST
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