कोरबा: ऊर्जाधनी के नाम पर कोरबा जिले को बिजली उत्पादन का कीर्तिमान भले ही मिला हो लेकिन लोगों को इसकी अच्छी खासी कीमत चुकानी पड़ रही है. पावर प्लांट से निकलने वाले धुएं, कोयला खदानों से निकाला कोल डस्ट, भारी वाहन और फ्लाई ऐश की डंपिंग का असर लोगों के स्वास्थ्य पर दिख रहा है. हालत यह है कि ओपीडी में आने वाले लगभग 60 फीसदी मरीजों में अस्थमा जैसे गंभीर रोग के लक्षण दिख रहे हैं.
एसएचआरसी की रिपोर्ट में 400 से ज्यादा था AQI : कुछ समय पहले स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर छत्तीसगढ़ ने कोरबा में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स को लेकर चिंता जाहिर की थी. शहर के संजय नगर, कुसमुंडा और कुछ इलाकों से सैंपल लिए गए थे. जिसमें एक्यूआई 400 से ज्यादा पाया गया. यह अत्यधिक घातक स्तर का एक्यूआई है. जिसमें सांस लेना बेहद हानिकारक है. इससे स्वास्थ्य पर बेहद विपरीत प्रभाव पड़ता है. एक्यूआई 50 के भीतर हो तब इसे अच्छा माना जाता है. 51 से 100 के बीच यह संतोषजनक है. लेकिन कोरबा में AQI का स्तर काफी चिंताजनक है. हाल फिलहाल में कोरबा शहर का एक्यूआई 190 के आसपास दर्ज किया गया है.
कोरबा में प्रदूषण बढ़ने के कारण: पिछले कुछ समय से कोरबा में पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश की काफी मात्रा में डंपिंग की जा रही है. बालको, सीएसईबी व अन्य पवार प्लांट से निकलने वाले राख को सड़क पर फेंक कर छोड़ दिया जाता है. जिसके कारण यहां से धूल उड़कर हवा में जम जाता है. इसी प्रदूषित हवा में लोग सांस ले रहे हैं. जिससे एक तरफ कोरबा का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स लगातार गिर रहा है तो दूसरी तरफ लोग सांस और छाती की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.
कोरबा के लोगों को प्रदूषण से होने वाली दिक्कतें: लंबी सर्दी-खांसी, बुखार, चलते हुए थक जाना, छाती से सीटी जैसी आवाज आना, सांस फूलने जैसे लक्षण लोगों में ज्यादा दिखाई दे रहे हैं हैं. जो साइनस और अस्थमा के लक्षण हैं.
ठंड के मौसम में और बढ़ जाती है परेशानी : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में छाती रोग विशेषज्ञ व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शशिकांत भास्कर बताते हैं "ठंड के मौसम में धुंध और कोहरा दोनों ही हवा में मौजूद होते हैं. इस दौरान हवा में धूल के कण जिन्हें पार्टिकुलर मैटर कहा जाता है. वह जम जाते हैं, ऐसे में जिन मरीजों को एलर्जी है. जो धूल डस्ट से परेशान रहते हैं. साइनस या अस्थमा के मरीज हो या किसी न किसी तरह के छाती रोग से ग्रसित हैं. उनकी परेशानी बढ़ जाती है. वह जब इस तरह के दूषित हवा में सांस लेते हैं तब उन्हें पंप की आवश्यकता भी पड़ती है. उन्हें लगातार सर्दी, बुखार, सांस लेने में दिक्कत होती है. ऐसे लोगों को कोरोना के समय बनाए गए कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की सलाह भी दी जाती है.
राख की बेतरतीब डंपिंग कोयला, खदान और पावर प्लांट डाल रहे आग में घी : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में छाती रोग विशेषज्ञ व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शशिकांत भास्कर कहते हैं कि कोरबा में कई पावर प्लांट संचालित हैं. कोयला खदान भी है. यहां से जो प्रदूषण पैदा होता है. वह लोगों को बीमार बना रहा है. धूल डस्ट के कारण पार्टिकुलर मैटर की संख्या हवा में काफी ज्यादा है. दूषित हवा में लोग सांस ले रहे हैं. जिससे मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है. लोग साइनस और अस्थमा जैसे रोग से ग्रसित हो रहे हैं. कई मरीजों में शुरुआती स्तर है. जबकि कई मरीज इससे पूरी तरह से ग्रसित हो चुके हैं. जिनके स्वास्थ्य पर प्रदूषण का प्रभाव पड़ा है. हमारे पास आने वाले ज्यादातर मरीजों को प्रदूषण से जुड़ी परेशानी है.
एक अलग वार्ड बनाने की भी है तैयारी : मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन ओपीडी की संख्या 700 से 750 के करीब रहती है. अस्पताल से मिले आंकड़ों के अनुसार छाती रोग विशेषज्ञ और नाक कान गला विभाग काफी व्यस्त है. ओपीडी में आने वाले 700 में से 500 मरीजों को छाती रोग से संबंधित परेशानी है, या फिर वह साइनस से पीड़ित हैं. जो प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण बीमार पड़ रहे हैं. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट गोपाल कंवर ने बताया कि ऐसे मरीजों के लिए एक अलग वार्ड बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. ताकि उनका बेहतर तरीके से इलाज किया जा सके.