कोरबा: 1 फरवरी को देश का बजट पेश होने वाला है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2021-22 का बजट पेश करने जा रही हैं. कोरोना काल में आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे आम लोगों को भी इस बजट से काफी उम्मीदें हैं. छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के लोग इस बजट से काफी उम्मीद लगाये बैठे हैं. सबसे पहले तो यहां के लोगों ने यातायात के लिए ट्रेनों को फिर से शुरू करने की मांग की है. कोरबा को सरगुजा और रायगढ़ से सीधे जोड़ने के लिए भी लोग मांग कर रहे हैं.
कोरोना के बाद जिले से संचालित 8 एक्सप्रेस यात्री गाड़ियों को बंद कर दिया गया है. कोरबावासी इसे फिर से चालू करने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा कई ऐसी ट्रेनें भी है, जो बीते कई सालों से ये बंद हैं. जिसे लेकर आम लोगों में गुस्सा है. वर्तमान में कोरबा से राजधानी रायपुर तक का सफर ट्रेन से करने के लिए भी पर्याप्त साधन नहीं है. लोगों की मांग है कि फिलहाल सभी बंद ट्रेनों को फिर से शुरू किया जाए. उन्होंने अपनी प्रमुख मांग में कोरबा को सरगुजा और रायगढ़ से सीधे जोड़ने की मांग की है.
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आम लोगों की खास मांगें
- 12 साल पहले शुरू किए गए पिट लाइन का काम अभी भी अधूरा है.
- यात्री ट्रेनों के रख-रखाव की सुविधा का अभाव है.
- यात्रियों की सुविधा के लिए एटीवीएम को शुरू करने की मांग की जा रही है.
- पड़ोसी जिले से कोरबा के रेल नेटवर्क को जोड़ने की मांग की जा रही है.
- कोरबा से पेंड्रा रेल लाइन का काम अब भी अधूरा है.
- कोरबा से सरगुजा की कनेक्टिविटी की मांग की गई है.
- कोरबा से बीकानेर के लिए यात्री ट्रेन की सुविधा की मांग की गई है.
- कटनी रूट से कोरबा को जोड़ना के लिए मांग.
- सेकंड एंट्री में टिकट घर के साथ ही सभी सुविधाओं का विस्तार की मांग.
रेलवे से खास मांग
कोरबा में 1960 के दशक में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ था. तभी से कोरबा को रेलवे लाइन बिलासपुर से जोड़ा गया था. लेकिन इतने सालों के बाद भी कोरबा को कटनी रूट से नहीं जोड़ा जा सका. पड़ोसी जिले कोरबा को भी रायगढ़ से नहीं जोड़ा जा सका है. वर्तमान में कोरबा से प्रतिदिन औसतन 40 से 45 रैक कोयले का डिस्पैच देश के अलग-अलग राज्यों में किया जाता है. इसे बढ़ाकर अब प्रतिदिन 60 रैक करने की भी योजना पर काम चल रहा है. माल ढुलाई में कीर्तिमान रचने के लिए भिलाई से कोरबा के बीच देश की सबसे लंबी ट्रेन वासुकी का सफल संचालन कर टेस्टिंग पूरी हो चुकी है. लेकिन यात्री सुविधाओं को बढ़ावा देने के मामले में कोई नई पहल नहीं हो रही है. जो सुविधाएं दी गई थी, उसे भी बंद कर दिया गया है. वर्तमान में सरकार को कोरबा से करोड़ों रुपए सालाना राजस्व प्राप्त होता है. निकट भविष्य में इसके और बढ़ने की पूरी संभावना है.
'कोरबा में खदान का गढ़'
सरकार को हर साल माल ढुलाई के जरिए करोड़ों रुपए का राजस्व देने वाली ऊर्जाधानी में रेल सुविधाओं का सूखा पड़ा हुआ है. रेल सुविधाओं का विकास उस स्तर का नहीं हुआ जितना होना चाहिए था. कोरबा में एसईसीएल की देश की सबसे बड़ी खदाने संचालित हैं, जहां से बड़ी तादाद में कोयला उत्खनन कर रेलवे के जरिए देशभर में इसका परिवहन किया जाता है. इससे सरकार को देशभर में सर्वाधिक राजस्व प्राप्त होता है. आय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद कोरबा में रेल सुविधाओं का विस्तार रुका हुआ है.