कोरबा: कोरबा के कुसमुंडा क्षेत्र के खमरिया गांव में बुधवार सुबह ग्रामीणों की समस्या सुनने प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल पहुंचे थे. खमरिया गांव के मैदान में बैठक का आयोजन किया गया था. बैठक में कुसमुंडा कोयला खदान के जीएम संजय मिश्रा भी शामिल हुए. ग्रामीणों के सवाल के बीच से वो उठकर भाग खड़े हुए.
ये है पूरा मामला: दरअसल, बैठक के दौरान ग्रामीणों की मौजूदगी में सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. ग्रामीण अपनी 4 दशक पुरानी मांगों को लेकर सवाल पूछना शुरू किए. मंत्रीजी ने भी उनसे सवाल पूछा कि ग्रामीणों की समस्याओं का हल किए बिना, उन्हें जमीन से बेदखल क्यों किया जा रहा है. इतने में कुसमुंडा जीएम संजय मिश्रा बैठक से उठकर चल दिए.
बैठक से जाने का कारण पूछने पर नहीं दिया जवाब: बैठक में उपस्थित मीडियाकर्मियों ने भी मिश्रा से बीच बैठक से उठकर जाने का कारण पूछा. हालांकि उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. जीएम ने यह जरूर कहा कि मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं.
क्या था सवाल: मौके पर मौजूद जीएम संजय मिश्रा से मंत्री ने सवाल पूछा कि "ग्रामीणों को यहां से हटाया जा रहा है. क्या उनकी मांगें पूरी हो गई है?" जीएम ने कहा कि "मांगों पर विचार चल रहा है, ग्रामीणों का ध्यान रखा जाता है." इस पर ग्रामीणों ने भी बीच में विरोध जताया और कहा कि "अधिकारी गुंडागर्दी कर रहे हैं, वह जबरदस्ती जमीनों को हथियाना चाहते हैं".
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इन मांगों को सुनकर भाग खड़े हुए जीएम: इतने में मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने जीएम मिश्रा को एक पत्र दिखाया जो कि 11 मई का है, जिसे कलेक्टर कोरबा ने एसईसीएल कुसमुंडा के महाप्रबंधक को लिखा है. इसमें 6 बिंदुओं पर खमरिया गांव के विस्थापितों और भू स्वामियों के समस्याओं के समाधान के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं. मांगों को पूरा करने की बात कही गई है. पत्र में इसमें संपत्ति का मूल्यांकन कर मुआवजा दिया जाना, पात्र भूस्वामी को विस्थापन का लाभ दिया जाना है. पुरानी बस्ती में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही 18 वर्ष से ऊपर हो चुके लोगों को रोजगार देने को कहा गया है. मंत्री ने कहा कि यह मांगें तो अब भी अधूरी है. इन मांगों के विषय में जैसे ही चर्चा शुरू हुई जीएम वहां से उठकर भाग निकले.
नहीं चलने देंगे अधिकारियों की गुंडागर्दी : इस मामले में राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कहा कि "हम अधिकारियों की गुंडागर्दी किसी कीमत पर नहीं चलने देंगे. एसईसीएल की कोयला खदान केंद्रीय सरकार का उपक्रम है. हम लोकतांत्रिक और प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आंदोलन करेंगे. लेकिन किसी कीमत पर ग्रामीणों का नुकसान नहीं होने देंगे. ग्रामीणों की रोजगार,पुनर्वास और मुआवजा की मांग दशकों पुरानी है. एसईसीएल के अधिकारियों ने बिना इसे पूरा किये ग्रामीणों को उनकी जमीन से बेदखल करना शुरू कर दिया है. अधिकारी जबरदस्ती मशीन लेकर ग्रामीणों को जमीन से बेदखल कर रहे हैं. यह बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं है. हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं."
हाई कोर्ट के स्टे के बाद भी जमीन से बेदखल: खमरिया गांव के ग्रामीण राजेश ने बताया कि "जिस स्थान पर हम रह रहे हैं. यहां लगभग 85 परिवार हैं. बीते 40 सालों से परिवार बढ़ रहा है. हममें से कुछ ग्रामीण हाईकोर्ट की शरण में भी जा चुके हैं. हाईकोर्ट ने जुलाई 2023 में अंतिम सुनवाई की तिथि निर्धारित कर दी है, जिसमें अब लगभग 1 महीने का समय बचा है. इसके बावजूद एसईसीएल के अधिकारी इतनी जल्दबाजी में हैं कि वह हाईकोर्ट के स्टे की भी अवहेलना कर हमें जमीन से बेदखल करना चाहते हैं. हम बेहद परेशान हैं. नौकरी, मुआवजा और पुनर्वास की मांग वर्षो से पूरी नहीं हुई है. अब हमारे घर की छत को भी उजाड़ा जा रहा है."
40 साल पहले हुआ था अधिग्रहण: कुसमुंडा खदान के पास 40 वर्ष पहले इस भूमि का अधिग्रहण एचपीसीएल ने किया था. एक भाग में वैशाली नगर का पुनर्वास ग्राम भी है. यहां विस्थापित ग्रामीण को एसईसीएल ने बसाहट दी है. अब एकाएक 40 वर्ष साल बाद यहां के लोगों को हटाया जा रहा है. अधिकारियों को ग्रामीणों का विरोध भी झेलना पड़ रहा है. ग्रामीणों का आरोप है कि प्रबंधन द्वारा बिना बताए उनके मकानों को तोड़ा जा रहा है. प्रबंधन ने अस्थाई नौकरी, मुआवजा देने की बात कही थी. पुराने प्रकरणों का निपटारा भी करने की बात कही थी. अब तक आधे दर्जन जेसीबी के माध्यम से खेतों के मेड़ों को बराबर करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है. लगभग 100 से 150 एकड़ भूमि समतल की का चुकी है. यहां लगभग 400 एकड़ जमीन को एसईसीएल प्रबंधन ने चिन्हित किया है.