कोरबा: कोरोना वायरस से उपजी विपरीत परिस्थितियों ने पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है, लेकिन इस आपदा के कुछ सकारात्मक पहलू भी देखने को मिले. लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक से लेकर सड़कों पर मोटर वाहनों के जरिए होने वाला प्रदूषण बड़ी मात्रा में घटा है. पर्यावरण के दृष्टिकोण से असंतुलन भरी परिस्थितियां काफी हद तक सामान्य हुई. कोरोनाकाल में पर्यावरण को बेहद फायदा पहुंचा है. जिसमें कोरबा जिले का केंदई जलप्रपात भी है.
10 साल पहले था ऐसा नजारा
छत्तीसगढ़ की कपिलधारा
केंदई को छत्तीसगढ़ की कपिलधारा भी कहा जाता है, क्योंकि मध्यप्रदेश की मशहूर कपिलधारा की तरह ही केंदई जलप्रपात भी झरने के मुहाने पर चट्टानों की मौजूदगी के कारण 2 धाराओं में बंटकर नीचे की ओर बहती है.
केवल सड़क मार्ग ही विकल्प
केंदई जलप्रपात कोरबा जिले के कटघोरा से अंबिकापुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है.जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 90 किलोमीटर है. केंदई पहुंचने के लिए कोई भी हवाई या रेलमार्ग मौजूद नहीं है. बिलासपुर या रायपुर से आने पर कटघोरा पहुंचकर अंबिकापुर मार्ग पकड़ना होगा, जहां से कोरबा जिले की अंतिम छोर पर मोरगा के पास केंदई गांव में केंदई जलप्रपात स्थित है. जबकि सरगुजा की ओर से आने वाले पर्यटकों को अंबिकापुर मार्ग पर केंदई जलप्रपात के मनोरम दर्शन होंगे.जिले की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार केंदई जलप्रपात की ऊंचाई 75 फीट है. ये खूबसूरत झरने के तौर पर पूरे छत्तीसगढ़ में बेहद मशहूर है. केंदई जलप्रपात का नाम केंदई नामक गांव में इस झरने के निर्मित होने के कारण पड़ा, जहां एक पहाड़ी नदी करीब 75 फीट की ऊंचाई से गिरकर एक खूबसूरत जलप्रपात का निर्माण करती है. जलप्रपात के इर्द-गिर्द कई बड़े पत्थर हैं. केंदई जलप्रपात हसदेव नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित है.
पर्यटकों के लिए खास इंतजाम नहीं
केंदई जलप्रपात वैसे तो छत्तीसगढ़ में अपनी खूबसूरती के लिए प्रख्यात है. लेकिन बात करें पर्यटकों के लिए इंतजाम की तो यहां कोई भी होटल है या रेस्टोरेंट मौजूद नहीं है. यहां ठहरने की किसी भी तरह की कोई व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है. इसलिए यहां घूमने जाने का अगर प्लान है भी तो सुबह यहां पहुंच कर शाम को वापस लौटना होगा. हालांकि केंदई जलप्रपात के ऊपर स्वामी भजनानंद का एक आश्रम है. जहां प्रत्येक वर्ष नि:शुल्क सामूहिक विवाह का आयोजन होता आया है. लेकिन इस आश्रम में सामान्य लोगों के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है. केंदई के समीप ही मडई में एक छोटा सा टापरीनुमा होटल है, जहां के पेड़े और रबड़ी खासे मशहूर हैं. इसलिए केंदई जा रहे हैं, तो मड़ई में रुक कर वहां का देसी पेड़ा खाना ना भूलें.
बुका और टिहरीसरई का भी ले सकते हैं लुत्फ
केंदई जलप्रपात के पास ही मशहूर पर्यटन स्थल बुका और गोल्डन आईलैंड के नाम से मशहूर टिहरीसरई का भी लुत्फ उठा सकते हैं. बुका में ग्लास हाउस और समंदर जैसा नीला पानी दूर तक फैला हुआ है, जहां मोटर बोट भी संचालित हैं, तो वहीं टिहरीसरई में बांगो बांध के डुबान क्षेत्र का पानी बड़ी मात्रा में मौजूद है. छोटे-छोटे भूखंड आईलैंड की तरह दिखाई पड़ते हैं, सुबह जब सूर्य की किरणें इन पर पड़ती है, तो ये सुनहरे रंग की तरह चमकने लगते हैं. छोटे टापू जैसे नजारे के कारण ही टिहरीसरई को गोल्डन आईलैंड कहा जाता है. केंदई से निकलकर कटघोरा बिलासपुर मार्ग पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर पाली का भी भ्रमण किया जा सकता है.
सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी
केंदई जलप्रपात जितना खूबसूरत है, सुरक्षा के मामले में यह उतना ही खतरनाक भी है. केंदई जलप्रपात की ऊंचाई से देखने के लिए पथरीले रास्तों पर चलना होगा, लेकिन यहां सुरक्षा के कोई खास इंतजाम नहीं है. इसलिए केंदई जलप्रपात का लुत्फ उठाते वक्त सावधानी बरतना बेहद जरूरी है. बरसात और ठंड के मौसम में यहां सैकड़ों सैलानी आते हैं, हालांकि प्रशासन के पास इस तरह का कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि यहां कितने सैलानी आते हैं.
एनीकट के कारण जलधारण क्षमता हुई कम
जलप्रपात के ऊपर एक छोटे से एनीकट का निर्माण किया गया है. इस एनीकट के कारण भी केंदई जलप्रपात की जलधारण क्षमता काफी हद तक कम हुई है. बीते कुछ सालों में झरने का स्वरूप पूरी तरह से गायब था.
स्थानीय राजेश मेहरा की माने तो केंदई जलप्रपात छत्तीसगढ़ का अद्भुत जलप्रपात हैं. यहां पहुंचने वाले यहां के मनोरम दृश्य से मंत्रमुग्ध हो जाते है. हालांकि इनका मानना है कि संरक्षण के अभाव में इसका विकास रुक गया है.जानकार शैलेंद्र नामदेव बताते हैं कि केंदई का नाम पूरे छत्तीसगढ़ में मशहूर है, उनका कहना है कि मूलभूत सुविधाओं में इजाफा करने से ना सिर्फ केंदई को नया स्वरूप मिलेगा बल्कि पर्यटन बढ़ने के साथ ही यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
कोविड ने रोकी केंदई के विकास की रफ्तार
केंदई के विकास को लेकर पुरातत्व विभाग के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्रि का कहना है कि कोविड के कारण केंदई जलप्रपात के विकास का काम रुक गया है. पेंडमिक कम होने के बाद जलप्रपात को संवारने का काम शुरू किया जाएगा. उनका कहना है कि गेस्ट हाउस बनाने की भी योजना है जिसे जल्द शुरू किया जाएगा.
बारिश पर निर्भर होती है जलप्रपात की जलधारण क्षमता
जिले के पीजी कॉलेज के प्रोफेसर बलराम कुर्रे का कहना है कि किसी भी जलप्रपात की जल धारण क्षमता पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होती है. बीते कुछ सालों में कम बारिश का ही परिणाम था कि केंदई जलप्रपात का खूबसूरत स्वरूप नहीं दिख रहा था, लेकिन इस साल हसदेव नदी का जल धारण क्षेत्र और जहां से नदी का उद्गम होता है वहां कोरिया के साथ-साथ कोरबा जिले में भी अच्छी बारिश हुई है. लॉकडाउन का ये एक तरह से सकारात्मक पहलू है कि केंदई जलप्रपात वर्तमान में अपने सर्वोत्तम स्वरूप में है.