कोरबा : साल 2001 में आमिर खान और ग्रेसी सिंह अभिनीत एक फिल्म आई थी, लगान. आपको उस फिल्म का वह दृश्य तो जरूर याद होगा, जिसमें बल्लेबाज जब बल्ले से गेंद मारता है तो सारे खिलाड़ी एक ही दिशा में भागने लगते हैं. यह उदाहरण हम आज इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में जिले का स्वास्थ्य अमला (Korba Health Department) भी लगान फिल्म के उन्हीं क्षेत्ररक्षकों की तरह कार्य कर रहा है. कोरोना से बचाव के लिए प्रशासन के निर्देश पर कोविड वेक्सीनेशन का विशेष अभियान (special campaign of corona vaccination in korba) चलाया जा रहा है. जो कि ठीक भी है, लेकिन समस्या यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने शहर से लेकर ग्रामीण तक के मैदानी अमले की ड्यूटी कोविड वेक्सिनेशन में लगा दी है. इस कारण राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान (national vaccination campaign) के तहत 0 से लेकर 6 वर्ष और 16 वर्ष तक के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती माताओं को लगाए जाने वाला बेहद जरूरी टीकाकरण का काम (Routine vaccination of newborns and pregnant women stopped) ठप हो गया है.
अधिकतर क्षेत्रों में रूटीन राष्ट्रीय टीकाकरण ठप
स्वास्थ्य विभाग द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार को तय रूटीन के तहत जरूरतमंद शिशुओं और गर्भवती महिलाओं को यह जरूरी टीके लगाए जाते हैं. लेकिन कोविड वेक्सीनेशन के विशेष अभियान के तहत मैदानी अमले को मंगलवार और शुक्रवार के टीकाकरण का शेड्यूल ही नहीं मिला. इस कारण जिले के अधिकतर क्षेत्रों में मंगलवार और शुक्रवार का रूटीन राष्ट्रीय टीकाकरण लगभग ठप पड़ गया है.
कोरोना वैक्सीनेशन भी जरूरी, लेकिन राष्ट्रीय टीकाकरण की अनदेखी की शर्त पर नहीं
कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रोन (Corona new Omicron variant in chhattisgarh) की चर्चा जोरों पर है. अब इससे बचने के लिए वैक्सीनेशन ही कारगर उपाय है. जिले में इसके लिए लगातार वैक्सीनेशन ड्राइव चलाया जा रहा है. प्रशासन ने इसके लिए जगह-जगह शिविर का आयोजन भी किया है. साथ ही विशेष अभियान चलाकर लोगों को खासतौर पर दूसरा डोज दिया जा रहा है. यह पहल निःसंदेह प्रशंसनीय है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग का पूरा फोकस इस विशेष अभियान पर केंद्रित होकर रह गया है. इससे भारत सरकार द्वारा जारी किये गए राष्ट्रीय टीकाकरण के तहत पोलियो, हैपेटाइटिस और बीसीजी जैसे टीकों की अनदेखी की जा रही है.
यह टीके यदि किसी शिशु को समय पर नहीं लगे तो उन्हें दूसरी बीमारियों का खतरा भी हो सकता है. इससे उनमें अपंगता और जान जाने तक की नौबत भी पैदा हो सकती है.
0 से 6 वर्ष तक की जनसंख्या 2 लाख से अधिक
2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल जनसंख्या 12 लाख 6 हजार 640 है. इनमें 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 1 लाख 72 हजार 16 है. साल 2021 जाते-जाते जिले में बच्चों के इस आयुवर्ग की जनसंख्या लगभग 2 से 2.5 लाख के मध्य है. यही बच्चे टीकाकरण के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील होते हैं. जिन्हें संक्रामक बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है. इनका टीकाकरण समय पर नहीं होने का मतलब यह होगा कि इन्हें जान-बूझकर संक्रामक बीमारियों की चपेट में धकेला जा रहा है.
गरीबों के पास महंगे प्राइवेट टीकाकरण का विकल्प नहीं
शिशुओं को लगाए जाने वाले टीके प्राइवेट अस्पताल भी लगाए जाते हैं, लेकिन डेढ़ माह के बच्चों को लगने वाले पांच से छह प्रकार के टीकों की प्राइवेट में कीमत 3 से 4 हजार रुपये तक वसूले जाते हैं. जबकि सरकार टीकाकरण अभियान के तहत यह टीके मुफ्त में लगाती है. गरीबों के पास इतने पैसे नहीं है कि वह निजी अस्पतालों में जाकर यह टीके लगवा सकें. उनके पास कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं होता. स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले द्वारा उप स्वास्थ्य केंद्रों में यह टीके लगाए जाते हैं. फील्ड में जाकर एएनएम भी बच्चों को टीके लगाती हैं. माह में एक बार किसी एक विशेष क्षेत्र का नंबर लगता है. संबंधित तिथि को टीकाकरण नहीं हुआ तो यह तय है कि अगली बार उस क्षेत्र का नंबर एक माह बाद ही आएगा. इसका नतीजा यह होगा कि बच्चा सुरक्षा कवच से दूर रह जाएगा.
अफसरों को पता नहीं फील्ड में हो क्या रहा
इस बारे में जिला टीकाकरण अधिकारी कुमार (Korba District Immunization Officer) पुष्पेश को कोई जानकारी ही नहीं है. पहले तो उन्होंने यह मानने से ही इंकार कर दिया कि रूटीन में टीकाकरण बंद है, लेकिन जब फील्ड से जानकारी ली गई तब पता चला कि जिले के गोपालपुर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और पूरे दर्री क्षेत्र में मंगलवार और शुक्रवार का टीकाकरण पूरी तरह ठप है. उन्होंने कहा कि इसे दिखाया जाएगा और टीकाकरण का सुचारू क्रियान्वयन किया जाएगा. इतना ही नहीं विभाग के पास टीकाकरण के आंकड़े भी उपलब्ध नहीं है. शहरी क्षेत्र का यह हाल है तो ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति कितनी बदतर होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
दरअसल मंगलवार और शुक्रवार को ही स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले को संख्या के अनुसार टीके प्रदान किये जाते हैं. इसके लिए उन्हें शेड्यूल मिलता है. लेकिन चूंकि सभी की ड्यूटी कोविड वेक्सीनेशन के विशेष ड्राइव के लिए लगा दी गई थी तो पिछले कुछ हफ्तों से उन्हें शेड्यूल ही नहीं दिया जा रहा है. इससे रूटीन का टीकाकरण पूरी तरह ठप पड़ गया है.
राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत बच्चों को लगने वाले टीके
- जन्म के वक्त : पोलियो, हैपेटाइटिस बी और Bcg का टीका.
- डेढ़ माह की आयु में : opv-1, penta-1, rota-1, pvc-1, Ipv-1 का टीका.
- ढाई माह की आयु में पोलियो के लिए : opv2, रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए penta-2 और rota-2 का टीका.
- साढ़े 3 माह की आयु में : opv-3, penta- 3, rota-3, pvc-2, Ipv-2 का टीका.
- 9 माह की आयु में : MR-1, विटामिन A1 और PVC Booster का टीका.
- 16 से 24 माह के मध्य : DPT Booster-1, Vitamin A-2, MR- 2, JE-1, JE-2 और OPV Booster का टीका.
- इसके अलावा 5, 10 और 16 वर्ष में भी एक-एक टीका लगाया जाता है.
गर्भवती माताओं को भी लगता है टीका
रूटीन टीकाकरण के अलावा गर्भवती महिलाओं को भी टिटनेस का टीका दिया जाता है. इसके अलावा और राष्ट्रीय अभियान के तहत सरकार द्वारा नियमित अंतराल पर अन्य टीके भी लगाए जाते हैं. यह सब टीके स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले द्वारा अपने क्षेत्र में लगाए जाते हैं.