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korba latest news: धधक रहे छत्तीसगढ़ के जंगल, पेड़ पौधों की प्रजातियों पर संकट, जागरूक नहीं हुए लोग, तो परिणाम होंगे घातक ! - बॉटनी विभाग की एचओडी रेणुबाला शर्मा

fire in forests of Chhattisgarh जंगल में लगने वाली आग गर्मियों का मौसम शुरू होते ही धधक उठी है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार देशभर के 23 राज्यों के जंगल जल रहे हैं. 42 हजार से अधिक स्थानों पर आग लगी हुई है. जिन्हें बुझाने वाला कोई नहीं है, वन विभाग अपनी तरफ से प्रयास तो करता है, लेकिन मैदानी अमला इतना सक्षम नहीं है कि इस आग को बुझा सके. गर्मियों में जंगल की आग से वनस्पतियों और जीव जंतुओं को बड़ा नुकसान होता है. जिसकी भरपाई कर पाना लगभग असंभव है.

fire in forests of Chhattisgarh
धधक रहे छत्तीसगढ़ के जंगल
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Published : Mar 15, 2023, 11:04 PM IST

छत्तीसगढ़ के जंगल में आग से वन्य प्रजातियों पर संकट

कोरबा: गर्मी का मौसम शुरू होते ही जंगल में आग लगने की घटनायें लगातार सामने आने लगी हैं. इससे वनस्पतियों को तो नुकसान होता ही है. जीव जंतुओं को भी इससे बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ता है. वनक्षेत्र को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है. जिसे कंपार्टमेंट कहा जाता है, प्रत्येक कंपार्टमेंट की जिम्मेदारी वनरक्षक की होती है. आग लगने पर सबसे पहले सूचना इन्हें ही मिलती है. जिसके आधार पर ही एक्शन प्लान तैयार किया जाता है.

छत्तीसगढ़ एक वनप्रधान राज्य है. जहां 59 हजार 816 वर्ग किलोमीटर में घने वन मौजूद हैं. जोकि छत्तीसगढ़ की कुल भूमि का 44. 25 फ़ीसदी है. यह देश के कुल वनक्षेत्र का 7.71% है.

बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी आग: कोरबा वनमंडल एसडीओ आशीष खेलवार कहते हैं कि "गर्मी के मौसम में बड़े पैमाने पर आग लगती है. फील्ड सर्वे और जीआईएस के सेटेलाइट इमेज से भी जानकारी मिलती है. हम मैदानी अमले और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से हमेशा इसे रोकने का प्रयास करते हैं. जंगल में आग लगने से वन्य प्राणियों को बहुत नुकसान होता है. पेड़ जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे उनकी ग्रोथ नहीं हो पाती. इसके साथ ही वन्य जीव जो काफी धीमी गति से चलते हैं, उनकी मौत हो जाती है."

कोरबा वनमंडल एसडीओ आशीष खेलवार ने बताया कि "कुछ पक्षी जमीन पर अपने बच्चे देते हैं. वह पूरी तरह से जलकर मर जाते हैं. वन विभाग की तरफ से हम आम लोगों को जागरूक भी करते हैं. लेकिन असामाजिक तत्व कई बार माचिस, सिगरेट, बीड़ी पीकर जंगल में आग लगा देते हैं."

यह भी पढ़ें: Godhan Nyay Yojana: छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना कितनी फायदेमंद, जानिए


पेड़ ही नहीं होंगे, तो हमें ऑक्सीजन देगा कौन: शासकीय ईवीपीजी अग्रणी महाविद्यालय में बॉटनी विभाग की एचओडी रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "जंगल में जो लोग महुआ बीनने जाते हैं या जो लोग तेंदूपत्ता का काम करते हैं. वह कई बार माचिस जंगल में छोड़ देते हैं, एक चिंगारी से सूखे पत्तों से आकर शुरुआत होती है. जो कि बाद में बृहद रूप ले लेती है."

रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "हम यह भी देखते हैं कि जंगल में रहने वाले लोग हैं या शहर के लोग हैं. इनको रिक्त स्थान चाहिए होता है, तो स्थानों को रिक्त करने के लिए भी कई बार जंगल में आग लगाकर स्थान खाली किया जाता है. लोग अपनी जगह बनाने के लिए जंगल को आग में झोंक देते हैं. लोग अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को आग लगाते हैं. जबकि इसे पूरी तरह से स्वार्थहीन होना चाहिये. यदि पेड़ ही नहीं होंगे तो ऑक्सीजन कौन देगा?"


रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "कोरबा में तो वैसे भी प्रदूषण बहुत ज्यादा है. हम अगर बात करें "दावानल" की तो यह केवल बांस के जंगल में ही होते हैं. बांस जब आपस में टकराते हैं, तब उनके चिकने सरफेस से चिंगारी पैदा होती है. यह दावानल बांस के जरिए ही संभव है. बाकी इमारती लकड़ियों में खुद ब खुद आग कभी नहीं लगती. इसे लोगों द्वारा ही लगाया जाता है."

यह भी पढ़ें: CG assembly Election: सिंहदेव को मनाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, भाजपा की बाबा पर पैनी नजर


छत्तीसगढ़ के जंगल में भी लगी आग: कोरबा वन विभाग के अनुसार बीते 40 दिनों में लगभग 17 वर्ग किलोमीटर के 8 हजार छोटे-बड़े जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई हैं. प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी से लेकर 15 जून के बीच का समय आग लगने के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है. इस दौरान वन कर्मचारी मुस्तैदी से कार्य करते हैं. वर्तमान में विभाग के कुछ मैदानी कर्मचारी हड़ताल पर भी चल रहे हैं. इसकी वजह से भी आग पर काबू पाने मैं थोड़ी मुश्किल पैदा हो रही है.

अब भी नहीं चेते तो घातक होंगे परिणाम: वन विभाग के अधिकारी हो या फिर एक्सपर्ट, सभी इस बात पर बल देते हैं कि जंगल में दावानल की घटनाएं बहुत कम होती है. ज्यादातर आग असामाजिक तत्व या फिर वनोपज प्राप्त करने जंगल के भीतर जाने वाले ग्रामीणों द्वारा लगाई जाती है. जंगल में आग कई बार अनजाने में की गई गलती से लगती है. तो कई बार असामाजिक तत्व जानबूझकर जंगल की सतह पर आग लगा देते हैं. जो कि बढ़ते बढ़ते पूरे जंगल को ही अपने चपेट में ले लेती है. जंगल में लगने वाली आग से पेड़ पौधों की कई प्रजातियां पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं. कई जीव जंतु भी आग की चपेट में आकर मर जाते हैं.

छत्तीसगढ़ के जंगल में आग से वन्य प्रजातियों पर संकट

कोरबा: गर्मी का मौसम शुरू होते ही जंगल में आग लगने की घटनायें लगातार सामने आने लगी हैं. इससे वनस्पतियों को तो नुकसान होता ही है. जीव जंतुओं को भी इससे बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ता है. वनक्षेत्र को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है. जिसे कंपार्टमेंट कहा जाता है, प्रत्येक कंपार्टमेंट की जिम्मेदारी वनरक्षक की होती है. आग लगने पर सबसे पहले सूचना इन्हें ही मिलती है. जिसके आधार पर ही एक्शन प्लान तैयार किया जाता है.

छत्तीसगढ़ एक वनप्रधान राज्य है. जहां 59 हजार 816 वर्ग किलोमीटर में घने वन मौजूद हैं. जोकि छत्तीसगढ़ की कुल भूमि का 44. 25 फ़ीसदी है. यह देश के कुल वनक्षेत्र का 7.71% है.

बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी आग: कोरबा वनमंडल एसडीओ आशीष खेलवार कहते हैं कि "गर्मी के मौसम में बड़े पैमाने पर आग लगती है. फील्ड सर्वे और जीआईएस के सेटेलाइट इमेज से भी जानकारी मिलती है. हम मैदानी अमले और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से हमेशा इसे रोकने का प्रयास करते हैं. जंगल में आग लगने से वन्य प्राणियों को बहुत नुकसान होता है. पेड़ जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे उनकी ग्रोथ नहीं हो पाती. इसके साथ ही वन्य जीव जो काफी धीमी गति से चलते हैं, उनकी मौत हो जाती है."

कोरबा वनमंडल एसडीओ आशीष खेलवार ने बताया कि "कुछ पक्षी जमीन पर अपने बच्चे देते हैं. वह पूरी तरह से जलकर मर जाते हैं. वन विभाग की तरफ से हम आम लोगों को जागरूक भी करते हैं. लेकिन असामाजिक तत्व कई बार माचिस, सिगरेट, बीड़ी पीकर जंगल में आग लगा देते हैं."

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पेड़ ही नहीं होंगे, तो हमें ऑक्सीजन देगा कौन: शासकीय ईवीपीजी अग्रणी महाविद्यालय में बॉटनी विभाग की एचओडी रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "जंगल में जो लोग महुआ बीनने जाते हैं या जो लोग तेंदूपत्ता का काम करते हैं. वह कई बार माचिस जंगल में छोड़ देते हैं, एक चिंगारी से सूखे पत्तों से आकर शुरुआत होती है. जो कि बाद में बृहद रूप ले लेती है."

रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "हम यह भी देखते हैं कि जंगल में रहने वाले लोग हैं या शहर के लोग हैं. इनको रिक्त स्थान चाहिए होता है, तो स्थानों को रिक्त करने के लिए भी कई बार जंगल में आग लगाकर स्थान खाली किया जाता है. लोग अपनी जगह बनाने के लिए जंगल को आग में झोंक देते हैं. लोग अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को आग लगाते हैं. जबकि इसे पूरी तरह से स्वार्थहीन होना चाहिये. यदि पेड़ ही नहीं होंगे तो ऑक्सीजन कौन देगा?"


रेणुबाला शर्मा कहती हैं कि "कोरबा में तो वैसे भी प्रदूषण बहुत ज्यादा है. हम अगर बात करें "दावानल" की तो यह केवल बांस के जंगल में ही होते हैं. बांस जब आपस में टकराते हैं, तब उनके चिकने सरफेस से चिंगारी पैदा होती है. यह दावानल बांस के जरिए ही संभव है. बाकी इमारती लकड़ियों में खुद ब खुद आग कभी नहीं लगती. इसे लोगों द्वारा ही लगाया जाता है."

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छत्तीसगढ़ के जंगल में भी लगी आग: कोरबा वन विभाग के अनुसार बीते 40 दिनों में लगभग 17 वर्ग किलोमीटर के 8 हजार छोटे-बड़े जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई हैं. प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी से लेकर 15 जून के बीच का समय आग लगने के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है. इस दौरान वन कर्मचारी मुस्तैदी से कार्य करते हैं. वर्तमान में विभाग के कुछ मैदानी कर्मचारी हड़ताल पर भी चल रहे हैं. इसकी वजह से भी आग पर काबू पाने मैं थोड़ी मुश्किल पैदा हो रही है.

अब भी नहीं चेते तो घातक होंगे परिणाम: वन विभाग के अधिकारी हो या फिर एक्सपर्ट, सभी इस बात पर बल देते हैं कि जंगल में दावानल की घटनाएं बहुत कम होती है. ज्यादातर आग असामाजिक तत्व या फिर वनोपज प्राप्त करने जंगल के भीतर जाने वाले ग्रामीणों द्वारा लगाई जाती है. जंगल में आग कई बार अनजाने में की गई गलती से लगती है. तो कई बार असामाजिक तत्व जानबूझकर जंगल की सतह पर आग लगा देते हैं. जो कि बढ़ते बढ़ते पूरे जंगल को ही अपने चपेट में ले लेती है. जंगल में लगने वाली आग से पेड़ पौधों की कई प्रजातियां पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं. कई जीव जंतु भी आग की चपेट में आकर मर जाते हैं.

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