कोरबा: छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए 28 जिलों में लॉकडाउन लगाया गया. कई जिलों में लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है. कोरोना की मार से किसान पहले ही बेहाल थे, लेकिन लॉकडाउन ने तो किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है. कोरबा में 12 अप्रैल की दोपहर 3 बजे से लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. जिसे बाद में 27 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया. अब एक बार फिर लॉकडाउन 5 मई तक बढ़ा दिया गया है. कुछ दिन पहले डोर-टू-डोर सब्जी बेचने की छूट मिली, लेकिन सब्जी बाजार में पहुंचेगी कहां से, इसका ख्याल शासन-प्रशासन को नहीं आया?
नतीजा यह हुआ कि महज 20 से 25 किलोमीटर का फासला तय कर शहर तक पहुंचने में नाकाम रहने वाले किसान अब अपनी फसलों को फेंकने पर मजबूर हैं.
छत्तीसगढ़ के इन जिलों में बढ़ा लॉकडाउन
कोरकोमा गांव के किसान मेलाराम का कहना है कि लॉकडाउन ने कमर तोड़ कर रख दी है. लाखों का नुकसान हो गया है. प्रशासन को यह समझना चाहिए कि सब्जी की फसल यदि शहर तक नहीं पहुंचेगी तो गांव में पड़े-पड़े सड़ जाएगी. इस फसल को शहर तक नहीं पहुंचा पाया. कदम-कदम पर पुलिस तैनात है जो शहर जाने नहीं देती. कार्रवाई की धमकी देती है. मुझे शहर जाने की अनुमति नहीं मिली. मेरी सब्जी की फसल इंसानों के काम नहीं आ सकी, इसलिए मैने सोचा कम से कम जानवरों को ही इससे फायदा हो जाए. उन्होंने खीरे की लगभग 40 से 50 क्विंटल फसल सड़कों पर फेंक दिया है. जिसे गौमाता खाएगी और मुझे इसका आशीर्वाद तो मिलेगा.
जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर गांव कोरकोमा के मेलाराम की गिनती जिले के उन्नत किसानों में होती है.मेलाराम का कहना है कि 'उनके पास लगभग 5 एकड़ खेत है. जिसमें वे खीरा, करेला, टमाटर, बरबट्टी, ककड़ी जैसे सब्जियों की खेती करते हैं.फसल पूरी तरह से तैयार है. अब इन्हें मंडी में ले जाकर बेचने की तैयारी थी, लेकिन इस बीच लॉकडाउन की वजह से मंडी बंद है. हम अपनी फसलों को कहां बेचेंगे? गांव के कुछ इलाकों को कंटेनमेंट जोन बना दिया गया है. मैं मानता हूं कि कोरोना संक्रमण को रोकना जरूरी है. इंसान के जीवन की कीमत अधिक है, लेकिन हम किसानों के बारे में भी प्रशासन को कुछ विचार करना चाहिए. लॉकडाउन का मतलब यह नहीं है कि किसानों की कमर तोड़ दी जाए'.
शहर जाने की अनुमति नहीं
किसान मेलाराम का कहना है कि जगह-जगह पुलिस की तैनाती है, जो डंडा दिखाते हैं और कहते हैं कि घर में रहो. कहीं भी जाने नहीं दिया जाएगा. मार्केट में यदि फसल नहीं बिकेगा तो तो वे इसे कहां रखेंगे. सब्जी की फसल को तुरंत ग्राहक नहीं मिले तो यह सड़ जाएगी. इसलिए उन्होंने खीरे की फसल को तोड़कर सड़कों पर फेंक दिया ताकि इसे कम से कम गाय खा लें. 2 एकड़ में करेले की फसल लगाई है. फसल पक चुकी है. मेरे पास ना कोल्ड स्टोरेज है और ना लॉकडाउन में शहर जाने की अनुमति.करेले की फसल तैयार होने के बाद भी पेड़ पर ही लगी है. यही हाल दूसरी फसलों का भी है.
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करीब 10 लाख रुपये का नुकसान
मेलाराम कहते हैं कि लगभग 5 से 6 लाख रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है. अगर वे और भी सिस्टमैटिक तरीके से इसकी बिक्री करते और मेहनत करते तो इस वर्ष लगभग 10 लाख की कमाई होती. इसकी भरपाई कैसे कर सकूंगा, यह सबसे बड़ी चिंता है. क्षेत्र में और भी कई सब्जी किसान हैं, सभी के हालात ऐसे ही हैं.
किसान मेलाराम ने बयां किया दर्द
मेलाराम ने कहा कि प्रधानमंत्री किसानों की बात करते हैं. उन्हें किसानों के बारे में सोचना चाहिए. आज किसानों को कीड़े-मकोड़े की तरह समझा जा रहा है, लेकिन किसान कीड़ा-मकोड़ा नहीं है, वह अन्नदाता है. यही कारण है कि जिसकी वजह से एक किसान आत्महत्या करने को मजबूर होता है.