कोरबा: 2020 की समाप्ति के साथ ही अब 2021 के आगमन की तैयारी हो रही है. नए साल के मौके पर लोग मस्ती और पिकनिक पार्टी के मूड में होते हैं. लोग नए साल को यादगार बना लेना चाहते हैं. जिले में कई पर्यटन स्थल मौजूद हैं. प्रदेश के सबसे ऊंचे बांगो बांध से लेकर छत्तीसगढ़ की नई पहचान बन चुके सतरेंगा तक के मनोरम दृश्य का आप इस नव साल पर आनंद उठा सकते हैं. कोरबा में प्रकृति की अनुपम छटा बाहें खोलें नए साल का स्वागत करने को तैयार है. ETV भारत इन पर्यटन स्थलों के बारे में आपको बता रहा है.
सतरेंगा के मनोरम नजारे
सतरेंगा कोरबा की नई पहचान बन चुका है. यहां महादेव के प्राकृतिक दर्शन केंद्र मौजूद हैं. यहां पहाड़ प्राकृतिक तौर पर शिवलिंग का आकार लिए हुए हैं. सतरेंगा सालों से पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचता रहा है. हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार के पर्यटन विभाग ने इसका अधिग्रहण किया है. सतरेंगा में अब वॉटर स्पोर्ट के साथ ही पानी पर तैरता हुआ फ्लोटिंग रेस्टोरेंट और ठहरने के लिए रिसोर्ट की भी व्यवस्था हो चुकी है. हालांकि इसके लिए आपको शुल्क भी चुकाना होगा. सतरेंगा में ही महासाल का वृक्ष भी मौजूद है. इसे भी वन विभाग ने संरक्षित किया है. यह 1400 साल पुराना वृक्ष छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने पेड़ों में से एक है.
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इको पर्यटन केंद्र बुका को है आपका इंतजार
कोरबा से लगभग 65 किलोमीटर दूर अंबिकापुर रोड पर स्थित इको पर्यटन और चेतना जागरण केंद्र बुका के नजारे बेहद सुकून पहुंचाने वाले हैं. यहां दूर-दूर तक फैले पानी प्रकृति के बीच हरे रंग का प्रतीत होता है. इसकी तुलना मॉरीशस से भी की जाती है. बुका में नौका विहार करना एक अलग अनुभव देता है. ठहरने के लिए ग्लास हाउस, हसदेव हाउस, लेक हाउस और टेंट हाउस मौजूद हैं. जहां आप आराम भरा समय बिता सकते हैं. ठंड के दिनों में कैंप फायर और हॉर्स राइडिंग का भी लुत्फ यहां उठाया जा सकता है.
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ऐतिहासिक चैतुरगढ़ है कोरबा की शान
पाली के समीप छत्तीसगढ़ के कश्मीर के नाम से पहचाने जाने वाला 3060 फीट ऊंचा पर्वत चैतुरगढ़ जिले की शान है. चैतुरगढ़ में 11वीं शताब्दी के कलचुरी शासक पृथ्वी देव प्रथम ने किले का निर्माण कराया था. इसके 3 मुख्य द्वार मेनका, हुंकरा और सिंह द्वार के अवशेष आज भी यहां जीर्ण अवस्था में मौजूद हैं. चैतुरगढ़ पहुंचकर पहाड़ के ऊपर से प्रकृति का जो नजारा दिखता है, उसकी तुलना कश्मीर के वादियों से की जाती है. चैतुरगढ़ में मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर भी है, और पाली के प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन भी आप यहां पहुंचने पर कर सकते हैं. इसकी दूरी कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर है.
केंदई फॉल अपने सर्वोत्तम रूप में
75 फीट की ऊंचाई से कल-कल बहता जल आंखों को सुकून देने वाला है. केंदई जलप्रपात इस वक्त अपने सर्वोत्तम स्वरूप में है. केंदई जलप्रपात कोरबा जिले के कटघोरा से अंबिकापुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 85 किलोमीटर है. जिले के मशहूर पिकनिक स्थलों में बेहद प्रख्यात है. केंदई जलप्रपात का नाम केंदई नाम के गांव में इस झरने के निर्मित होने के कारण पड़ा. यहां एक पहाड़ी नदी करीब 75 फीट की ऊंचाई से गिरकर एक खूबसूरत जलप्रपात का निर्माण करती है. जलप्रपात के इर्द-गिर्द कई बड़े पत्थर हैं. केंदई जलप्रपात हसदेव नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित है. केंदई को छत्तीसगढ़ की कपिलधारा भी कहा जाता है. मध्यप्रदेश के मशहूर कपिलधारा की तरह ही केंदई जलप्रपात भी झरने के मुहाने पर चट्टानों की मौजूदगी के कारण 2 धाराओं में बांटकर नीचे की ओर बहती है.
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देवपहरी में मौजूद है प्रभु राम के पद चिन्ह
जिला मुख्यालय से लेमरु की ओर जाने वाले मार्ग पर लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवपहरी भी प्रदेश में बेहद मशहूर है. यहां गोविंद झुंझ जलप्रपात बेहद प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान प्रभु राम यहां राम और सीता के साथ ठहरे थे. यहां आज भी राम के पद चिन्ह मौजूद हैं. देवपहरी से निकलने वाला जलप्रपात सालों से पर्यटकों को अपनी ओर खींचता रहा है. देवपहरी से कुछ ही दूरी पर स्थित नकिया का जलप्रपात भी अब बेहद मशहूर हो रहा है. नकिया के जलप्रपात में आप आराम से मजे ले कर स्नान कर सकते हैं. यहां बहने वाले छोटे से नाले की गहराई भी अधिक नहीं है.
हिडन वाटरफॉल रानी झरिया
कुछ दिन पहले ही कोरबा जिले में एक नए वाटरफॉल की खोज हुई है. जिले के अजगरबहार के समीप जंगल के भीतर यह जलप्रपात निर्मित होता है. पानी की एक पतली धारा लगभग 90 फीट की ऊंचाई से गिरकर झरने का निर्माण करती है. अगर आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो आपके लिए यह बेहद उपयुक्त स्थल है. रानी झरिया तक पहुंचने के लिए आपको 3 किलोमीटर का पैदल सफर करना होगा. रानी झरिया यह सफर बेहद रोमांचित है.